Tuesday, July 6, 2010
राजेश रेड्डी की दो ग़ज़लें
22 जुलाई 1952 को जयपुर मे जन्मे श्री राजेश रेड्डी उन गिने-चुने शायरों में से हैं जिन्होंने ग़ज़ल की नई पहचान को और मजबूत किया और इसे लोगों ने सराहा भी आप ने हिंदी साहित्य मे एम.ए. किया, फिर उसके बाद "राजस्थान पत्रिका" मे संपादन भी किया। आप नाटककार, संगीतकार, गीतकार और बहुत अच्छे गायक भी हैं.आप डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला सम्मान हासिल कर चुके हैं । जाने-माने ग़ज़ल गायक इनकी ग़ज़लों को गा चुके हैं । इनकी दो गज़लें हाज़िर हैं-
एक
गिरते-गिरते एक दिन आखिर सँभलना आ गया
ज़िंदगी को वक़्त की रस्सी पे चलना आ गया
हो गये हैं हम भी दुनियादार यानी हमको भी
बात को बातों ही बातों में बदलना आ गया
बुझके रह जाते हैं तूफ़ाँ उस दिये के सामने
जिस दिये को तेज़ तूफ़ानों में जलना आ गया
जमअ अब होती नहीं हैं दिल में ग़म की बदलियाँ
क़तरा-क़तरा अब उन्हें अश्कों में ढलना आ गया
दिल खिलौनों से बहलता ही नहीं जब से उसे
चाँद-तारों के लिए रोना मचलना आ गया
(रमल की मुज़ाहिफ़ सूरत)
दो
सोचा न कभी खाने कमाने से निकलकर
हम जी न सके अपने ज़माने से निकलकर
जाना है किसी और फ़साने में किसी दिन
आये थे किसी और फ़साने से निकलकर
ढलता है लगातार पुराने में नया दिन
आता है नया दिन भी पुराने से निकलकर
दुनिया से बहुत ऊब कर बैठे थे अकेले
अब जाएँ कहाँ दिल के ठिकाने से निकलकर
किस काम की यारब तेरी अफ़सानानिग़ारी
किरदार भटकते हैं फ़साने से निकलकर
चहरों की बड़ी भीड़ में दम घुट सा गया था
साँस आई मेरी आइनाख़ाने से निकलकर
कोशिश से कहाँ हमने कोई शे’र कहा है
आये हैं गुहर ख़ुद ही ख़ज़ाने से निकलकर
हज़ज की मुज़ाहिफ़ सूरत
मफ़ऊल मफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ालुन
22 11 22 11 22 11 22
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14 comments:
wahhhhhhhhhh bahut khoob
dilkash
राजेश रेड्डी मेरे पसंदीदा आधुनिक शायरों में से हैं। उन्हीं के शब्दों को मैं अच्छी शायरी का पैमाना मानता हूँ - और उसी के ज़िक्र से दाद अता करना चाहूँगा -
"कोशिश से कहाँ हमने कोई शे'र कहा है
आए हैं गुहर ख़ुद ही ख़ज़ाने से निकलकर"
बहुत उम्दा पोस्ट चुनी है आज आपने, ख़ासकर मेरे पसंदीदा शायर की चुनिंदा ग़ज़लें। बहुत बड़ा काम है ये - मैं तो कोई दो चुन ही न पाता - या यों कहें कि कोई भी दो चुन लेता। बधाई!
बेहद उम्दा गज़लें. लाजवाब.
dदोनो ही गज़लें बहुत अच्छी लगीं। राजेश जी को बधाई।
दिन खिलौनों से बहलता .... में शायद टंकण त्रुटि हुई है, यहॉं 'दिल' रहा होगा।
राजेश रेड्डी जी के बारे में हिमान्शु मोहन जी की राय से मैं भी सहमत हूँ, उम्दा अशआर इनकी ग़ज़लों की खूबसूरती रहे हैं और प्रस्तुत ग़ज़लें तो बस ट्रेलर हैं।
शाइरी के बारे में मेरी निजि राय हमेशा यही रही है कि आम बोलचाल के शब्दों से दूर नहीं जाना चाहिये, वही इनकी ग़ज़लों में दिखाई देता है।
राजेश रेड्डी की दोनों ग़ज़लें अच्छी लगीं।
-देवमणि पाण्डेय
बहुत अच्छी ग़ज़लें पढ़वाईं आपने. धन्यवाद
राजेश जी तो ‘राजेश‘ हैं ही.
उनको प़्ाढ़कर ऐसा लगता है जैसे अपनी ज़िन्दगी की फिल्म को देख रहे हों. फिर से आभार
my new blog- kabhi-to.blogspot.com
Rajesh saHeb kee ghazleN Satpal jii ne pehle bhee paDhwaayee haiN. aapkee qalam kaa lohaa to pehlee daf'h hee maan liyaa thaa. ab to meh'z daad o tahsin bachee hai so qabool kiijiye.
-Dheeraj Ameta "Dheer"
एक
ज़िंदगी को वक़्त की रस्सी पे चलना आ गया
जिन्दगी सैकड़ो हुनर सिखाती है ,एक यह भी ।
अच्छा तसव्वुर..
यह शेर भी वजनदार
बुझके रह जाते हैं तूफ़ाँ उस दिये के सामने
जिस दिये को तेज़ तूफ़ानों में जलना आ गया
दो
ढलता है लगातार पुराने में नया दिन
आता है नया दिन भी पुराने से निकलकर
शायद इसे ही रिसाइकिलिंग कहते है दानिशमंद
किस काम की यारब तेरी अफ़सानानिग़ारी
किरदार भटकते हैं फ़साने से निकलकर
वाह! वाह!! सही निशाना साधा है रेड्डी साहब ने !
कोशिश से कहाँ हमने कोई शे’र कहा है
आये हैं गुहर ख़ुद ही ख़ज़ाने से निकलकर
यक़ीनन! जनाब!! यह तो आला शायरों को ‘उसकी’ नेमतें हुआ करती हैं
ख्याल साहब का भी शुक्रिया कि उनके जरिये इतनी बेहतरीन ग़ज़(लें) पढ़नें मिलीं
बहुत उम्दा पोस्ट चुनी है
RAJESH JI KA SARA KALAM HI ACCHA HAI.KISHORE UMR MEIN JAIPUR P.N.T. COLONY MEIN REHTE THEE. US DOR MEIN AEH ABHAS BHI NA THAA KI EK DIN MUJHE UNKI SHYARI PER GARV HOGA
waah. kya baat hai. nischit hi aaj ke daur ke gazalkaron me rajeshji khas sthan rakhte hain.
राजेशजी आधुनिक ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर है.
उनका पता या संपर्क का कोई और जरिया बता सकें तो मेहरबानी.
sssskp@gmail.com
वो जाने क्या क्या कह जाता है मुझे
शुक्र है वो मेरी हर बात मान लेता है
प्रदीप कुमार दीवाना
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