Monday, September 6, 2010

राहत साहब की ताज़ा ग़ज़ल
















राहत इंदौरी साहब की कलम से ऐसा लगता है कि ज़िंदगी खु़द बोल रही हो। ख़याल सूफ़ीयों के से और लहज़ा दार्शनिकों जैसा । ऐसी शायरी वाहवाही के मुहताज़ नहीं बल्कि इसे सुनकर ज़िंदगी खु़द टकटकी लगा के देखना शुरू कर देती और धुँध के पार के उजालों को देखकर पलकें झपकती है और वापिस लौट आती है। मुलाहिज़ा कीजिए बहरे-खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल में ये ग़ज़ल-

ग़ज़ल

हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
चलिए! कुछ रोज़ जी के देखते हैं

नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं

रोज़ हम एक अंधेरी धुँध के पार
काफ़िले रौशनी के देखते हैं

धूप इतनी कराहती क्यों है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं

टकटकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं

बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं

18 comments:

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत खूब| राहत साहब को पढ़ना हमेशा विस्मयकारी होता है| कितनी खूबसूरती से ज़माने की नब्ज़ पकड़ी है इस ग़ज़ल में|बेहतरीन|
शुक्रिया राहत साहब की ग़ज़ल पढवाने के लिए|

डॉ० डंडा लखनवी said...

भाव संपन्न ग़ज़ल पढ़वाने हेतु आभार।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

संजीव गौतम said...

umda ghazal rooh ko rahat pahunchati hui.

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत खूब रही ..राहत साहब की क्या बात है!

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह...सतपाल जी..इतनी लाज़वाब ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...राहत इंदौरी जी की ग़ज़लों के फ़ैन हम भी है..
सुंदर शेर ....बधाई

समय चक्र said...

राहत साहब की ग़ज़ल पढवाने के लिए आभार...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

राहत साहब की ये ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार!!

निर्मला कपिला said...

राहत जी की गज़ल हमेशा ही कमाल की होती है। हर एक शेर लाजवाब। धन्यवाद उन्हें पढवाने के लिये।

नीरज गोस्वामी said...

नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है
ख्वाब अगली सदी के देखते हैं

सुभान अल्लाह....क्या गज़ब की शायरी है...हैरत अंगेज़...राहत साहब को पढना एक खूबसूरत एहसास से रूबरू होना है...खुदा उनसे बरसों बरस ऐसे शेर कहलवाता रहे...क्यूँ की वो खुद शेर नहीं कहते ऊपर वाला उनके माध्यम से हम तक अपने अशआर पहुंचाता है...
नीरज

अर्चना तिवारी said...

वाह! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल....

dheer said...

हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
चलिए! कुछ रोज़ जी के देखते हैं

bahut khoob!

गौतम राजऋषि said...

"नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है/ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं"

...आह! राहत साब जैसे मिस्रे बुनना....उफ़्फ़्फ़!
शुक्रिया सतपाल भाए इस ग़ज़ल के लिये।

आजकल आप मेल क्यों नहीं करते "आज की ग़ज़ल" पर लगने वाली नयी पोस्ट की बाबत? इसमें कुछ भी गलत नहीं है सर। अच्छी चीजों का प्रचार-प्रसार तो होना ही चाहिये सतपाल भाई, यहाँ लोग-बाग जाने किन ऊल-जलूल रचनाओं का प्रचार करते रहते हैं...उन सबसे परे आप जो ग़ज़ल के लिये कर रहे हैं, उसका तो कोई मुकाबला ही नहीं है। आप नहीं कर सकते हैं तो, जिस दिन पोस्ट लगना हो बस मुझे मेल कर दिया कीजिये प्लीज। मैं सबको सूचित करूँगा....

"अर्श" said...

नींद पिछली सदी से ज़ख्मी है
ख़ाब अगली सदी के देखते हैं !!

इस हासिले ग़ज़ल शे'र को पढ़ रहा हूँ और इस आलिशान ब्यक्तित्व के मालिक के बारे सोच रहा हूँ वाकई शे'र तो यही होते हैं ... राहत साब को पढना ,सुनना हमेशा से ही एक सुखद रहा है ! आज की ग़ज़ल पर भी दिनों बाद कोई पोस्ट आयी है ... इतनी देर ना करें सतपाल भाई ...


आपका
अर्श

Anonymous said...

rahat sahab ki ghazal ke liye shukriya......chilchilati dhoop mein chalte hue ghade ke thande pani sa sukoon hai....Anees

Anonymous said...

bahut hi khoobsurat ghazal hai.. shukriya padwaane ke liye....

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दिपाली "आब" said...

outstanding..

irshad said...

rahat sahb ne hindustani adab ko jo alahida mayar baksha hai vo rhatl dunya tak adab ki khushbo felata rahe ga

Unknown said...

La Jawab
La shani