Tuesday, September 14, 2010
राहत इंदौरी साहब की एक और ताज़ा ग़ज़ल
राहत साहब को जब भी sms करके पूछें कि सर, ये आपकी ताज़ा ग़ज़ल ब्लाग पर लगा सकता हूँ? तो तुरंत ..हाँ..में जवाब आ जाता है। सो इस नेक दिल शायर की एक और ग़ज़ल हाज़िर है। मुलाहिज़ा कीजिए -
ग़ज़ल
सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर
और सफ़र कोहसारों का है मौला खैर
दुशमन से तो टक्कर ली है सौ-सौ बार
सामना अबके यारों का है मौला खैर
इस दुनिया में तेरे बाद मेरे सर पर
साया रिश्तेदारों का है मौला खैर
दुनिया से बाहर भी निकलकर देख चुके
सब कुछ दुनियादारों का है मौला खैर
और क़यामत मेरे चराग़ों पर टूटी
झगड़ा चाँद-सितारों का है मौला खैर
(पाँच फ़ेलुन+ एक फ़े )
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11 comments:
धन्यवाद.
राहत जी की ग़ज़लों का फैन हूँ...गज़लें और उनकी अदायगी का अंदाज़ एकदम अलग है.
यही कहूँगा:
"राहत जी की ग़ज़लों में हैं जंतर मंतर सब.." :)
मकते से मतले तक का खूबसूरत सफर तय करना हो तो राहत साहब की ग़ज़ल पढ़ें..एक एक शेर करीने से जड़ा हुआ है ग़ज़ल में...
शुक्रिया आपका इस बेहतरीन ग़ज़ल को हम तक पहुँचाने के लिए...हम तो राहत साहब की शायरी के दीवाने हैं...ईमान से...
राहत साहब की गजल और उनका पढने का अंदाज; जहॉं जाते हैं कद्रदॉं यूँ ही तो नहीं उमड पडते।
दुशमन से तो ट्क्कर ली है सौ सौ बार,
समना अबके यारों का है मौला खैर्।
"राहत साहब " के अशआर पर कुछ कहना वैसे तो आफ़ताब को चिराग़ दिखाना होगा फ़िर भी उनकी उपरोक्त पक्ति मुझे बेहतरीन लगी।
rahat saheb ko padhana hamesha achcha lagta hai.. many many thanks..
आनन्द आ जता है जब भी राहत साहब को पढ़ते हैं/सुनते हैं.
आप तो एस एम एस करते रहा करिये उनको. :)
इस दुनिया में तेरे बाद मेरे सर पर
साया रिश्तेदारों का है मौला खैर
waah waah!
nayee ghazal par Rahat saHeb ko meree hazaar_haa daad!
Dheeraj Ameta "Dheer"
राहत जी की बात ही निराली है..बेहद सुंदर ग़ज़ल....बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
बढ़िया गज़ल
"RAAHAT" saahab kaa jawaab naheen.
राहत साहब ने गजल को जुल्फ और शराब से इतर एक आसमान दिया है । शुक्रिया यहां ऐ गजल पढवाने के लिए
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