इस क़िस्त में आज की ग़ज़ल पर पहली बार शाइरा डॉ कविता'किरण'की ग़ज़ल पेश कर रहे हैं। मैं तहे-दिल से इनका इस मंच पर स्वागत करता हूँ। इनका एक शे’र मुलाहिज़ा कीजिए जो शाइरा के तेवर और कहन का एक खूबसूरत नमूना है-
कलम अपनी,जुबां अपनी, कहन अपनी ही रखती हूँ,
अंधेरों से नहीं डरती 'किरण' हूँ खुद चमकती हूँ,
इससे बेहतर और क्या परिचय हो सकता है। खैर ! लीजिए मिसरा-ए-तरह "सोच के दीप जला कर देखो " पर इनकी ये ग़ज़ल-
डॉ कविता'किरण'
चाहे आँख मिला कर देखो
चाहे आँख बचा कर देखो
लोग नहीं, रिश्ते रहते हैं
मेरे घर में आकर देखो
रोज़ देखते हो आईना
आज नकाब उठा कर देखो
समझ तुम्हारी रोशन होगी
सोच के दीप जला कर देखो
दर्द सुरीला हो जायेगा
दिल से इसको गा कर देखो
और अब पेश है देवी नांगरानी जी की ग़ज़ल । आप तो बहुत पहले से आज की ग़ज़ल से जुड़ी हुई हैं।
देवी नांगरानी
चोट खुशी में खा कर देखो
गम में जश्न मना कर देखो
बात जो करनी है पत्थर से
लब पे मौन सजा कर देखो
बचपन फिर से लौट आएगा
गीत खुशी के गा कर देखो
बिलख रहा है भूख से बच्चा
उसकी भूख मिटा कर देखो
जीवन भी इक जंग है देवी
हार में जीत मना कर देखो
इस बहर के बारे में कुछ चर्चा करना चाहता हूँ। ये बड़ी सीधी-सरल लगने वाली बहर भी बड़ी पेचीदा है। मसलन इस बहर में कुछ छूट है जो बड़े-बड़े शायरों ने ली भी है लेकिन कई शायर या अरूज़ी इसे वर्जित भी मानते हैं। हिंदी स्वभाव कि ये बहरें हमेशा चर्चा का विषय बनी रहती हैं। चार फ़ेलुन की ये बहर है तो मुतदारिक की मुज़ाहिफ़ शक्ल लेकिन ये किसी मात्रिक छंद से भी मेल खा सकती है सो ये बहस का मुद्दा बन जाता है। और ये देखिए जिस ग़ज़ल से मिसरा दिया उसमें देखिए-
किसी अकेली शाम की चुप में
गीत पुराने गा कर देखो
इस शे’र में मिसरा 12 से शुरू हुआ है।
जाग जाग कर उम्र कटी है
नींद के द्वार हिला कर देखो
और यहाँ पर 21 21 से शुरू हुआ। सो हम ये छूट ले सकते हैं लेकिन जो लय फ़ेलुन(22) से बनेगी वो यकी़नन बेहतर होगी। इसीलिए मैं सारे मिसरों और शब्दों के फ़ेलुन में होने की गुज़ारिश करता हूँ।
13 comments:
मैं पहली बार इस ब्लॉग पर आया हूँ...
गजलें तो काफी सुनी और गाई हैं पर पता नहीं था कि गज़लों में भी इतनी तकनीक होती है..
अब आता रहूँगा..
आभार
सुंदर गज़ले पढने को मिलि. शुक्रिया!
डॉं कविता किरन जी ने बहुत खूबसूरत बात कही कि:
लोग नहीं, रिश्ते रहते हैं
मेरे घर में आकर देखो।
और जब देवी नागरानी जी कहती हैं कि:
बात जो करनी है पत्थर से
लब पे मौन सजा कर देखो।
तो बेसाख्त: दिल से आवाज़ आती है कि:
वो कभी उफ्फ नहीं करता है पता है उसको
मौन की आग से पत्थर भी पिघल जाते हैं।
दोनों देवियों की जुगलबंदी बहुत शानदार रही. बधाई और आभार !
दोनो ही गज़्ले बहुत शानदार हैं.....
डॉं कविता किरन जी, और देवी नागरानी जी, को बहुत बहुत मुबारकबाद.......
दर्द सुरीला हो जायेगा,दिल से इसको गा कर देखो।
( डा; कविता किरण)
बचपन फिर लौट आयेगा, गीत ख़ुशी के गा कर देखो।
( देवी नांगरानी), ख़ूबसूरत अशआर, मुकम्मल ग़ज़ल ,दोनों ग़ज़ल-गो को मुबारक बाद।
"लोग नहीं , रिश्ते रहते हैं,
मेरे घर में आ कर देखो"
"दर्द सुरीला हो जाएगा,
दिल से इसको गा कर देखो"
डॉ कविता किरण जी के क़लम से निकले
ये खूबसूरत बोल ही उनकी कामयाब शाईरी की
पहचान हैं ...
आज, देश के हर छोटे-बड़े मुशायरे में
डॉ कविता जी का मौजूद रहना
उस मुशायरे की कामयाबी का सबब होता है
उन्हें बधाई .
"बात जो करनी है पत्थर से,
लब पर मौन सजा कर देखो"
खुद ही एक बात कहता हुआ पुख्ता शेर
अपनी मिसाल आप बन गया है
"जीवन भी इक जंग है 'देवी',
हार में जीत मना कर देखो"
ज़िंदगी के अनबूझ फलसफे की जानिब
इशारा करती हुई
उम्दा सोच का ही नतीजा है ये शेर
इस में कोई शक नहीं कि
'देवी' नागरानी जी अंतर राष्ट्रीय स्तर पर
जानी-पहचानी विद्वान् साहित्यकार हैं
बढ़िया प्रस्तुति....
किरण जी और देवी दी की गज़लें बहुत अच्छी लगी।
लोग नहीं, रिश्ते रहते हैं
मेरे घर में आकर देखो। किरण जी के व्यक्तित्व को दर्शाता है ये शेर
"जीवन भी इक जंग है 'देवी',
हार में जीत मना कर देखो"
दी को पढ कर हमेशा सुखद अनुभूती होती है उनकी गज़लें हमेशा सकारात्मक सो लिये होती हैं। बहुत अच्छा लग रहा है मुशायरा।
मैने भी चंद शेर लिखे मगर फिर भूल गयी। देखती हूँ दोबारा । धन्यवाद।
डाॅ. कविता किरण जी के ये षेर दिल की गहराइयों उतरते चले गए...
लोग नहीं रिश्ते रहते हैं
मेरे घर में आकर देखो
इस बात पर अर्ज़ किया है..
आए थे खाली हाथ हम रिश्ते लिए गए
उस सख़्श की दहलीज़ के उस पार है जादू
और हासिले ग़ज़ल शेर ...माशाअल्लाह..
समझ तुम्हारी रोशन होगी
सोच के दीप जलाकर देखो
कहने को जी चाहता है..
कोई शिकवा नहीं रहा यारों
वो अंधेरा कहां गया यारों
बहुत असरदार हैं, दिल को छू गए देवी जी के अशआर....
चोट खुशी में खाकर देखो
ग़म में जश्न मना कर देखो
बिलख रहा है भूख से बच्चा
उसकी भूख मिटाकर देखो
वाह. क्या बात है.
किरण जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ. बहुत अच्छी गज़ल है.."रोज देखते हो आईना.." बहुत अच्छा है. गिरह भी बहुत अच्छी लगाई है.
देवी नागरानी जी को पहले पढ़ चुका हूँ. बहुत अच्छा लिखती हैं. मतला तो गजब है. "बिलख रहा है भूख से बच्चा.." शेर बहुत ही अच्छा बन पड़ा है.
सतपाल जी,
सचमुच बहर मुश्किल थी. मैंने तो कोशिश भी नहीं की. अगली बार कोशिश करूँगा.
मुशायरा बहुत अच्छा जा रहा है.
लोग नहीं, रिश्ते रहते हैं
मेरे घर में आकर देखो!
bahut khoob!
बात जो करनी है पत्थर से
लब पे मौन सजा कर देखो!
waah!
saadar
Dheeraj Ameta "Dheer"
लोग नहीं, रिश्ते रहते हैं
मेरे घर में आकर देखो।
किरण जी और देवी जी दोनों की गज़लें बहुत अच्छी लगीं....मजा आ गया पढ़कर
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