Saturday, November 20, 2010

सोच के दीप जला कर देखो- छटी क़िस्त

इस ब्लागिंग के ज़रिये एक नया परिवार बन गया है-ग़ज़ल परिवार। जिनके मुखिया जैसे थे महावीर जी। उनका अचनाक चले जाना बहुत दुखद है। हम सब अब एक अनोखे से बंधन में बंध गए हैं। शब्दों और शे’रों का रिश्ता सा बन गया है आप सब से। है तो ये सब एक सपना सा ही लेकिन हक़ीकत से कम नहीं। खैर! ये तो रंग-मंच है। जब अपना क़िरदार ख़त्म हुआ तो परदे के पीछे चले जाना हैं। लेकिन खेल चलता रहता है , यही सब से बड़ी माया है। महावीर जी को आज की ग़ज़ल की तरफ से विनम्र श्रदाँजलि। तरही मुशायरे के क्रम को आगे बढ़ाते हैं।

मुशायरे के अगले शायर और शाइरा हिमाचल प्रदेश से हैं। मिसरा-ए-तरह" सोच के दीप जला कर देखो" पर इनकी ग़ज़लें मुलाहिज़ा कीजिए।











चंद्र रेखा ढडवाल

सूनी आँख सजा कर देखो
सपना एक जगा कर देखो

यह भी एक दुआ, पिंजरे से
पाखी एक उड़ा कर देखो

तपती रेत पे सहरा की तुम
दरिया एक बहा कर देखो

उसको भी हँसना आता है
मीठे बोल सुना कर देखो

वो भी जी का हाल कहेगा
अपना हाल सुना कर देखो

राह सिमट जाएगी पल में
बस इक पाँव बढ़ाकर देखो

अपना चाहा बहुत दिखाया
मेरा ख़्वाब दिखाकर देखो

धू-धू जलती इस बस्ती में
अपना आप बचाकर देखो

वक़्त बहुत धुँधला-धुँधला है
सोच के दीप जलाकर देखो

जान तुम्हारी के सौ सदक़े
ग़ैर की जान बचा कर देखो

जोग निभाना तो आसाँ है
रिश्ता एक निभा कर देखो










एम.बी.शर्मा मधुर

सोये ख़्वाब जगा कर देखो
दुनिया और बना कर देखो

हो जाएँगी सदियाँ रौशन
सोच के दीप जला कर देखो

रूठो यार से लेकिन पहले
मन की बात बता कर देखो

मिल जाएगा कोई तो अपना
सबसे हाथ मिलाकर देखो

शर्म-हया का नूर है अपना
यह तुम शम्अ बुझाकर देखो

सर टकराने वाले लाखों
तुम दीवार बनाकर देखो

सबका है महबूब तसव्वुर
पंख ‘मधुर’ ये लगाकर देखो

11 comments:

समयचक्र said...

स्वर्गीय महावीर जी एक तरह से ब्लागिंग के मुखिया ही थे .. आज दुनिया में नहीं हैं पर हमें उनकी गजलें पढ़ने मिलती रहेगी ....विनम्र श्रदाँजलि...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गजलें बहुत अच्छी हैं... महावीर जी के बारे में जानकर दुख हुआ और पाबला जी को मातृ शोक के बारे में भी..
लेकिन ब्लागिंग करने वाले एक परिवारी हैं! दर-असल यह व्यवहार कुशलता उस समय तक ही है, जब तक दूर हैं, साल में चार बार मिलना होता है, लेकिन जब वही ब्लागर पड़ोस में आ बसेगा तो यह सब छिन्न भिन्न हो जायेगा.. अपवादों को छोड़कर...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

दोनों ग़ज़ल बेहतरीन है ... हरेक शेर गजब का है ...

सदा said...

दोनों ही रचनाएं बहुत सुन्‍दर लगी ...।

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

दोनों अच्छी व मुकम्मल ग़ज़ल। दोनों ग़ज़ल गो को मुबारकबाद्।

Navneet Sharma said...

दोनों ग़ज़लें बहुत अच्‍छी। रेखा जी का शे'र :
जोग निभाना तो आसां है
रिश्‍ता एक निभा कर देखों

और जनाब मधुर साहब का :

हो जाएंगी सदियां रोशन
सोच के दीप जला कर देखो

नाचीज़ के ख्‍़याल से दोनों अश्‍आर हासिल-ए-ग़ज़ल हैं।

jogeshwar garg said...

बहुत सुन्दर ग़ज़लें !

"मेरे क़िस्से बहुत उछाले
अपनी बात चला कर देखो"

वाह चन्द्र रेखाजी !

"रूठो यार से लेकिन पहले
मन की बात बता कर देखो"

मधुरजी के क्या कहने !

daanish said...

दोनों गज़लें अच्छी हैं
ख़ास तौर पर रेखा जी का ये शेर ...
"जोग निभाना तो आसाँ है
रिश्ता एक निभा कर देखो"
बहुत ज्यादा प्रभावित करता है
और ....
"सदियाँ हो जाएँगी रौशन
सोच के दीप जला कर देखो"
कह कर तो
मधुरजी ने बहुत बढ़िया गिरह लगाई है.. वाह !

तिलक राज कपूर said...

चंद्र रेखा ढडवाल के शेर 'वो भी जी का हाल कहेगा अपना हाल सुना कर देखो' 'राह सिमट जाएगी पल में, बस इक पाँव बढ़ाकर देखो' और मधुर जी के 'हो जाएँगी सदियाँ रौशन, सोच के दीप जला कर देखो' तथा 'रूठो यार से लेकिन पहले मन की बात बता कर देखो' छू गये।

kumar zahid said...

यह भी एक दुआ, पिंजरे से
पाखी एक उड़ा कर देखो
अपना चाहा बहुत दिखाया
मेरा ख़्वाब दिखाकर देखो
चंद्र रेखा ढडवाल



सोये ख़्वाब जगा कर देखो
दुनिया और बना कर देखो

हो जाएँगी सदियाँ रौशन
सोच के दीप जला कर देखो
एम.बी.शर्मा मधुर



दोनों ग़ज़ल..अब तक की हर ग़ज़ल बेहतरीन..

प्यारे प्यार जताकर दखों
चेहरा ज़रा उठाकर देखो

सोच के अंधियारे से निकलो
सोच के दीप जलाकर देखो

आ जाएंगे सौ परवाने
शम्आ एक जलाकर देखो

तरही बज्म सजेगी सालों
सालों बज्म सजाकर देखो

निर्मला कपिला said...

दोनो गज़लें लाजवाब हैं। स्वर्गीय महावीर जी को विनम्र श्रद्धाँजली। रेखा जी व मधुर जी को बधाई।