Monday, November 22, 2010

सोच के दीप जला कर देखो-सातवीं क़िस्त

रंजन के इस खूबसूरत शे’र-

कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो


के साथ हाज़िर हैं तरही की अगली दो ग़ज़लें-

रंजन गोरखपुरी

नफ़रत बैर मिटा कर देखो
प्यार के फूल खिला कर देखो

गुंजाइश मुस्कान की है बस
बिगडी बात बना कर देखो

ग़ज़लें बेशक छलकेंगी फिर
बस तस्वीर उठा कर देखो

डोर जुडी हो अब भी शायद
वक्त की धूल उड़ा कर देखो

मुझसे सरहद अक्सर कहती
मसले चंद भुला कर देखो

राम को फिर वनवास मिला है
आज अयोध्या जा कर देखो

मिले बुलंदी बेशक साहेब
घर में वक्त बिता कर देखो

कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो

अरसे बाद मिले हो "रंजन"
कोई शेर सुना कर देखो

डा.अजमल हुसैन खान माहक

हाथ से हाथ मिला कर देखो
सपने साथ सजा कर देखो

दुनिया तकती किसकी जानिब
"ओवामा" तुम आ कर देखो

हैं नादाँ जो दीवाने से
उनको भी समझा कर देखो

सब अँधियारा मिट जायेगा
सोच के दीप जला कर देखो

बात नही ये रुकने वाली
"माहक" आस लगा कर देखो।

8 comments:

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

डोर जुड़ी हो अब भी शायद
बस तस्वीर उठा कर देखो।
रंजन साहेब को सलाम व बधाई।

daanish said...

रंजन अजमल की ये गज़लें
सब जन को समझा कर देखो
लफ़्ज़ों में पैग़ाम छिपा है
इक-इक शेर सुना कर देखो

है सब मश्क़ 'ख़याल' तुम्हारी
फिर भी 'जाग-जगा' कर देखो

निर्मला कपिला said...

आजमल हुसैन और रंजन जी की गज़लें बहुत अच्छी लगी दोनो को बधाई।
मुझसे सरहद अक्सर कहती
मसले चंद भुला कर देखो

राम को फिर वनवास मिला है
आज अयोध्या जा कर देखो
वाह बहुत खूब।
हाथ से हाथ मिला कर देखो
सपने साथ सजा कर देखो

हैं नादाँ जो दीवाने से
उनको भी समझा कर देखो

बहुत अच्छे शेर हैं। धन्यवाद। सतपाल जी आज 4-5 दिन बाद दिल्ली से आयी हूँ अभी पिछली पोस्ट पढनी हैं। बहुत अच्छा चल रहा है मुशायरा। धन्यवाद।

jogeshwar garg said...

दोनों ही शायरों ने बेहतरीन कलाम पेश किया है. बधाइयां !
"आज की ग़ज़ल" को धन्यवाद !

सतपाल ख़याल said...

है सब मश्क़ 'ख़याल' तुम्हारी
फिर भी 'जाग-जगा' कर देखो....daanish bhai...
sahi kaha aapne, kuch ghalatian kaii baar nazar nahi aatii. kuch maine sudhaar dii hain,kuch kaat dii hain.
is bahar me kai baar paRhne se SAKTA nahi pakRa jata,taqtii karke pata chalta hai..aap aise hi jagate rahiye.

तिलक राज कपूर said...

क्‍या बात है रंजन जी और डॉ अजमल हुसैन साहब बहुत अच्‍छे शेर कहे हैं।

kumar zahid said...

मुझसे सरहद अक्सर कहती
मसले चंद भुला कर देखो

राम को फिर वनवास मिला है
आज अयोध्या जा कर देखो

कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो
रंजन गोरखपुरी

हाथ से हाथ मिला कर देखो
सपने साथ सजा कर देखो
सब अँधियारा मिट जायेगा
सोच के दीप जला कर देखो
डा.अजमल हुसैन खान माहक

सृजन के अशआर रंजन जी के और उम्मीद के पैगाम डा.अजमल हुसैन खान माहक के ..वाह क्या बात है

Pratik Maheshwari said...

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ.. मज़ा आ गया.. :)