Thursday, November 25, 2010

सोच के दीप जला कर देखो-आठवीं क़िस्त

पहले शायर : कमल नयन शर्मा । आप द्विज जी के भाई हैं और एयर-फ़ोर्स में हैं। इस मंच पर हम इनका स्वागत करते हैं।









कमल नयन शर्मा

दुख को मीत बना कर देखो
खुद को सँवरा पा कर देखो

मिलता है वो, मिल जाएगा
मन के अंदर जाकर देखो

कब भरते हैं पेट दिलासे
असली फ़स्लें पाकर देखो

भर देंगे वो तेरी झोली
उनकी धुन में गा कर देखो

कब लौटे है जाने वाले
फिर भी आस लगाकर देखो

मत भटको यूं द्वारे-द्वारे
सोच के दीप जला कर देखो

आप 'कमल' खुद खिल जाओगे
जल से बाहर आकर देखो

दूसरे शायर हैं जनाब कवि कुलवंत जी









कुलवंत सिंह

सोच के दीप जला कर देखो
खुशियां जग बिखरा कर देखो

सबको मीत बना कर देखो
प्रेम का पाठ पढ़ा कर देखो

खून बने अपना ही दुश्मन
हक़ अपना जतला कर देखो

मज़मा दो पल में लग जाता
कुछ सिक्के खनका कर देखो

सिलवट माथे दिख जायेंगी
शीशे को चमका कर देखो

जनता उलझी है सालों से
नेता को उलझा कर देखो

खुद में खोये यह बहरे हैं
जोर से ढ़ोल बजा कर देखो

और शाइरा निर्मला कपिला जी का स्वागत है आज की ग़ज़ल पर।









निर्मला कपिला

मन की मैल हटा कर देखो
सोच के दीप जला कर देखो

सुख में साथी सब बन जाते
दुख में साथ निभा कर देखो

राम खुदा का झगडा प्यारे
अब सडकों पर जा कर देखो

लडने से क्या हासिल होगा?
मिलजुल हाथ मिला कर देखो

औरों के घर रोज़ जलाते
अपना भी जलवा कर देखो

देता झोली भर कर सब को
द्वार ख़ुदा के जाकर देखो

बिन रोजी के जीना मुश्किल
रोटी दाल चला कर देखो

12 comments:

शारदा अरोरा said...

वाह ये शेर तो कमाल के हैं ...

कब लौटे है जाने वाले
फिर भी आस लगाकर देखो

सिलवट माथे दिख जायेंगी
शीशे को चमका कर देखो

औरों के घर रोज़ जलाते
अपना भी जलवा कर देखो

सदा said...

औरों के घर रोज़ जलाते
अपना भी जलवा कर देखो ।


सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

तीनों गज़ल अच्छे और मुकम्मल है, कमल जी , कुलवंत जी और निर्मला जी का आभार।

विनोद कुमार पांडेय said...

bahut hi badhiya badhiya gazalen padhane ko mil rahi hai...kamal ji,kulwant ji aur nirmala ji ko bahut bahut badhai.....

daanish said...

"दुख को मीत बना कर देखो
खुद को सँवरा पा कर देखो"
"कब लौटे है जाने वाले
फिर भी आस लगाकर देखो"

कमल नयन जी के
इन शेरों ने मन मोह लिया ...

"सबको मीत बना कर देखो
प्रेम का पाठ पढ़ा कर देखो"
"मजमा दो पल में लग जाता
कुछ सिक्के खनका कर देखो"

कवि कुलवंत जी की शाइरी पर
जितनी भी तारीफ़ की जाए, कम है
उन्हें मुबारकबाद .

"लडने से क्या हासिल होगा?
मिलजुल हाथ मिला कर देखो"
"देता झोली भर कर सब को
द्वार ख़ुदा के जाकर देखो"

निर्मला जी की काव्य-कुशलता के तो
अब सब मुरीद होते जा रहे है
कविता, ग़ज़ल, आलेख ,
कुछ भी लिखती हैं,, मन से लिखती हैं .
अभिवादन .

निर्मला कपिला said...

कमल जी और कवि कुलवन्त जी की गज़लें कमाल की हैं।
कब लौटे है जाने वाले
फिर भी आस लगाकर देखो

सिलवट माथे दिख जायेंगी
शीशे को चमका कर देखो
बहुत खूब। कमल जी और कुलवन्त जी को बधाई।
सतपाल जी एक सलाह देना चाहूँगी कि आप कमेन्ट के लिये पाप अप विन्डो लगायें क्यों कि दूसरे पेज पर कमेन्ट करने के लिये शेर कोट करने मे मुश्किल आती है। धन्यवाद मेरी गज़ल लगाने के लिये।

तिलक राज कपूर said...

एक बार फिर बेहतरीन शेर।

Navneet Sharma said...

तीनों कलाम बहुत अच्‍छे लगे। कमल जी, कुलवंत जी और निर्मला कपिला जी को बहुत-बहुत बधाई। सतपाल जी को भी इस खूबसूरत मंच में और सितारों की वृद्धि करने के लिए।

Unknown said...

Papa thats very touching. kab lote hai jane vale, fir bhi aasss lga kar dekho................

Unknown said...

Kamal ji as usual, aapki ghazal kamaal ki hai. Specially as today is 26/11, words really shaked me completely.

#vpsinghrajput said...

शेर तो कमाल के हैं, सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

प्रदीप कांत said...

तीनो गज़ले अच्छी है

औरों के घर रोज़ जलाते
अपना भी जलवा कर देखो

जलवा कर देखो की जगह जला कर देखो होता तो शेर का वज़न और बढ़ जाता