सत्यप्रकाश शर्मा
तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है
खैरात जो देता है वही लूटता भी है
ईमान को अब लेके किधर जाइयेगा आप
बेकार है ये चीज कोई पूछता भी है?
बाज़ार चले आये वफ़ा भी, ख़ुलूस भी
अब घर में बचा क्या है कोई सोचता भी है
वैसे तो ज़माने के बहुत तीर खाये हैं
पर इनमें कोई तीर है जो फूल सा भी है
इस दिल ने भी फ़ितरत किसी बच्चे सी पाई है
पहले जिसे खो दे उसे फिर ढूँढता भी है
हज़ज की मुज़ाहिफ़ शक्ल
मफ़ऊल मफ़ाईल मुफ़ाईल मफ़ाईल
22 1 1221 1221 122(1)
शायर का पता-
२५४ नवशील धाम
कल्यान पुर-बिठुर मार्ग, कानपुर-१७
मोबाइल-07607435335
8 comments:
ईमान को लेकर किधर----- वाह्! बहुत अच्छी लगी गज़ल। सत्यप्रकाश जी को बधाई। आपका धन्यवाद।
अच्छी लगी गज़ल।
बाज़ार चले आये वफ़ा भी ख़ुलूस भी,
्भाव पक्छे हिसाब से सबसे अच्छा शे'र पर यही शे'र , बे-बहर भी है ।
Dear Mr Sanjay Dani,
Thanks for pointing out this I had discussed it with poet and Me too was aware, he honestly accept it and told that last Mu-faa-i-l is replaced with Faa-i-lun sometimes which is not allowed in meter but it is there.
and according to rules it is wrong..But I am impressed with the honesty of poet for accepting it open-heartedly I publish it only bcs I liked it so much.
वाह बेहतरीन ग़ज़ल लिखा है..
बहुत अच्छा लगा पढ़ के...
आभार
सत्यपाल शर्मा जी,
आपकी यह ग़ज़ल मनभावन है...बधाई! यूँ तो सभी शे’र सुन्दर हैं,लेकिन जो शे’र मुझे हासिले-ग़ज़ल लगा वह यह कि-
ईमान को अब लेके किधर जाइयेगा आप
बेकार है ये चीज कोई पूछता भी है?
और हाँ...एक बात यह कि मैं बिठूर रोड, कल्यानपुर (कानपुर) के पास कई साल तक रहा...तब आपके बारे में मुझे कभी पता ही नहीं चल पाया...!
बहुत ही बढ़िया गज़ल..
मतला बहुत अच्छा लगा."ईमान को अब ले के..", "बाज़ार चले आये.." शेर खास तौर पर पसंद आये.
wah wah...."Tasveer ka rukh ek nahin dusra bhi bhi hai,kairat jo deta hai wahi lutata bhi hai.....
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