Tuesday, April 12, 2011

पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" की ग़ज़ल










पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" की एक खूबसूरत ग़ज़ल आपकी नज़्र कर रहा हूँ । जनाब बहुत अच्छे ग़ज़लकार हैं और ग़ज़ल के मिज़ाज से वाक़िफ़ हैं। ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिए-

सूरज उगा तो फूल-सा महका है कौन-कौन
अब देखना यही है कि जागा है कौन-कौन

बाहर से अपने रूप को पहचानते है सब
भीतर से अपने आप को जाना है कौन-कौन

लेने के साँस यों तो गुनेहगार हैं सभी
यह देखिए कि शह्र में ज़िन्दा है कौन-कौन

अपना वजूद यों तो समेटे हुए हैं हम
देखो इन आँधियों में बिखरता है कौन-कौन

दावे तो सब के सुन लिए "आज़र" मगर ये देख
तारे गगन से तोड़ के लाता है कौन-कौन

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12
बहरे-मज़ारे की मुज़ाहिफ़ शक्ल

16 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही खूबसूरत गज़ल बधाई आज़र साहब

daanish said...

aazar sahab ki
khoobsurat gazal
padhvaane ke liye
bahut bahut shukriyaa .

तिलक राज कपूर said...

दावे तो सब के सुन लिए "आज़र" मगर ये देख
तारे गगन से तोड़ के लाता है कौन-कौन

वाह साहब वाह।
बधाई खूबसूरत ग़ज़ल के लिये।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

mza aa gya
bdhaai ho
sahityasurbhi.blogspot.com

Purshottam Abbi 'Azer' said...

जनाब जयकृष्ण राय तुषार जी, जनाब तिलक राज कपूर जी ,जनाब दानिश जी ,जनाब दिलबाग विर्क जी
आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ हौसला अफ्जाइश के लिए शुक्रिया !

आज़र

निर्मला कपिला said...

लेने के साँस ----- बहुत खूबसूरत शेर है। पूरी गज़ल ही लाजवाब है। आज़र साहिब को बधाई।

Purshottam Abbi 'Azer' said...

आदरणीय निर्मला कपिला जी आपका तहे दिल
से शुक्रगुजार हूँ हौसला अफ्जाइश के लिए शुक्रिया !


पिर्य दिनेश पारीख मेरा आशीर्वाद आपके साथ है
अगर हम इन पंक्तियों का अनुसरण कर लें तो जीवन सफल हो जाएगा !
धयवाद

Pawan Kumar said...

पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" की एक ग़ज़ल वाकई बहुत खूबसूरत है .ये ग़ज़ल उनके अच्छे ग़ज़लकार होने की निशानी है... मतला ता मक्ता हर शेर लाजवाब...... किस किस पर दाद दूं.....
सूरज उगा तो फूल-सा महका है कौन-कौन
अब देखना यही है कि जागा है कौन-कौन
आहा.....वाह वाह
बाहर से अपने रूप को पहचानते है सब
भीतर से अपने आप को जाना है कौन-कौन
दर्शन...... है भाई !!!!!
लेने के साँस यों तो गुनेहगार हैं सभी
यह देखिए कि शह्र में ज़िन्दा है कौन-कौन

usha said...
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Purshottam Abbi 'Azer' said...
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Purshottam Abbi 'Azer' said...

आपने वैज्ञानिक प्रार्थना’ के बारे में बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है !
पढ़ कर अपने शेइर याद आ गए !
दो शेइर पेश-ए-खिदमद हैं

मिलता कभी वो कैसे कि पूजा के वक्त भी
हमको तो अपनी फ़िक्र थी अपना ही ध्यान था

दुःख सभी के बाँट लूँ यह बात मुम्किन ही नहीं
देखना यह है कि किसके काम कितना आ सका

आज़र

Purshottam Abbi 'Azer' said...

जनाब सिहं साहिब आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ
हौसला अफ्जाइश के लिए शुक्रिया !
शेइर पेश-ए-खिदमद हैं
है क्या मेरी मजाल , कि तेरी मिसाल दूं
"आज़र"अभी तो खुद को भी मैं जानता नही

आज़र

Rajesh Kumari said...

Aajar ji ki ghazal first time padhi.bahut pasand aai.is behtreen ghazal ka link dene ka bahut shukriya.

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की जा रही है
कृपया पधारें
चर्चा मंच

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल पढवाने का शुक्रिया

Purshottam Abbi 'Azer' said...

मोहतरमा राजेश कुमारी जी व संगीता स्वरुप (गीत) जी का तहे दिल
से शुक्रगुजार हूँ हौसला अफ्जाइश के लिए शुक्रिया !