Saturday, June 18, 2011

अंजुम लुधियानवी की एक ग़ज़ल















अच्छी ग़ज़लें कहना खेल नहीं अंजुम
किरनें बुनकर चाँद बनाना पड़ता है

ग़ज़ल

तोड़ कड़ियाँ ज़मीर की अंजुम
और कुछ देर तू भी जी अंजुम

एक भी गाम चल न पायेगी
इन अँधेरों में रौशनी अंजुम

ज़िंदगी तेज़ धूप का दरिया
आदमी नाव मोम की अंजुम

जिस घटा पर थी आँख सहरा की
वो समंदर पे मर गई अंजुम

*क़ुलज़मे-खूं सुखा के दम लेगी
आग होती है आगही अंजुम

जिन पे सूरज की मेहरबानी हो
उन पे खिलती है चाँदनी अंजुम

सुबह का ख़्वाब उम्र भर देखा
और फिर नींद आ गई अंजुम

*क़ुलज़म-दरिया

बहरे-खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन

10 comments:

Ruchika Sharma said...

बेहद खूबसूरत

हंसी के फव्‍वारे में- हाय ये इम्‍तहान

दिलबागसिंह विर्क said...

behtrin

डॉ० डंडा लखनवी said...

"गज़ल आपकी, वाक़ई टाप की है।
सही तोल की है सही नाप की है॥"
सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

दिल को छू कर गुजर गए अशआर
ये हैं सच बेशक़ीमती अंजुम [जी]

शारदा अरोरा said...

क़ुलज़मे-खूं सुखा के दम लेगी
आग होती है आगही अंजुम

जिन पे सूरज की मेहरबानी हो
उन पे खिलती है चाँदनी अंजुम

सुबह का ख़्वाब उम्र भर देखा
और फिर नींद आ गई अंजुम
ye part to behad khoobsoorat...

daanish said...

अंजुम साहब की ग़ज़ल पढ़ कर
बहुत सुकून महसूस हुआ ...
ये शेर खास तौर पर पसंद आया

जिस घटा पर थी आँख सहरा की
वो समंदर पे मर गई अंजुम

तिलक राज कपूर said...

शायद पहली बार तख़ल्‍लुस को रदीफ़ में देख रहा हूँ। उम्‍दा शेर हैं।
ज़िंदगी तेज़ धूप का दरिया
आदमी नाव मोम की अंजुम

जिस घटा पर थी आँख सहरा की
वो समंदर पे मर गई अंजुम
बहुत खूबसूरत लगे।

देवमणि पाण्डेय said...

ग़ज़ल के इस अंजुमन में अंजुम जी की मौजूदगी अच्छी लगी। उनके इस ख़ूबसूरत प्रयोग से ग़ज़ल के मानी में इज़ाफ़ा हुआ है।

रजनीश तिवारी said...

सुबह का ख़्वाब उम्र भर देखा
और फिर नींद आ गई 'अंजुम'
बेहतरीन गज़ल ...

Narpat Ashiya"Vaitalik" said...

waaah. khoobsurat ghazal