Friday, October 14, 2011
अलविदा जगजीत
बात उस ज़माने से शुरू होती है जब मैं दसवीं ज़मात में था। मेरी दोस्ती हमेशा , उम्र में मुझ से बड़े लोगों के साथ रही है । एक दोस्त था मैं जब भी उससे मिलता था तो वो जगजीत सिंह की के बारे में बात करता था। एक दिन मैंने जगजीत साहब की कैसट उससे सुनने के लिए ली, नाम था "बिरहा दा सुल्तान" जिसमें शिव कुमार बटालवी के गीतों को चित्रा सिंह के साथ मिलकर जगजीत जी ने गाया था। सिलसिला कुछ ऐसा शुरू हुआ कि उसे मैनें कई सौ बार सुना। शिव बटालवी को प्रचलित करने में जगजीत जी का बहुत बड़ा योगदान है। इस कैसट में एक गीत था-
इह मेरा गीत किसे नहीं गाणा,इह मेरा गीत मैं आपे गाके भल्के ही मर जाणा- इसे आप भी सुनिए-
10 अक्तूबर की सुबह की सुबह जब जगजीत सिंह जी के निधन की ख़बर सुनी तो लगा कि कोई शरीर का हिस्सा अलग हो गया और आँखों नम हो गईं। रिशतेदार की शादी में था लिहाजा खु़द को संभाला और खुशी में शामिल रहा । लेकिन अंदर ही अंदर कुछ टूट गया जिसे मैं संभालता रहा और दर्द की वो किरचें आज अल्फ़ाज़ों में ढल गईं। दर्द पूरी दुनिया का सांझा होता है जिसे इसी गीत में शिव ने कहा कि-
किसे-किसे दे लेखीं हुंदा एडा दर्द कमाणा
सच है दर्द एक पूंजी भी हो जो किसी भी फ़नकार की आवाज़ या कलाम को अमर कर देती है। जगजीत साहब के पास भी ये दौलत थी, जवान बेटे की मौत और चित्रा की बेटी का खुदकुशी कर लेना। शोहरत और दुनियावी दौलत का कोई वारिस नहीं था। भगवान ने सब कुछ देके, बहुत कुछ छीन लिया था उनसे, वो दर्द उनकी आवाज़ से झलकता था।इसी कैसट में एक गीत था- शिकरा यार -
इक उडारी ऐसी मारी उह मुड़ वतनीं न आया
जगजीत साहब भी आज इस दुनिया से लंबी उडारी मार कर वहाँ चले गए जहाँ से वापसी मुमकिन नहीं। इस गीत को सुनिए-
लेकिन जगजीत सिंह ने करीब ४० साल अपनी आवाज़ के दम पर राज किया और एक बहुत ही उम्दा खज़ाना छोड़ कर गए हैं और आज ग़ज़ल गायकी अपाहिज़ हो गई है और एक युग का अंत हो गया। उन्होंने सिर्फ़ ग़ज़ल ही नहीं बल्कि बहुत अच्छे भजन और गुरूबानी भी गाई। एक शब्द जो बहुत ही खूबसूरत है,सुनिए-
मैं ही नही बल्कि बहुत से लोग आज उदास हैं और ग़ज़ल गायकी अनाथ सी हो गई है। मैनें शायरी का अपना सफ़र इस आवाज़ के साथ शुरू किया है और हर सफ़र की एक ही मंज़िल है और यही अंतिम सत्य लेकिन अपने पीछे वो एक बहुत ही सुरीला सरमाया छोड़ गए हैं जो कई सौ साल तक हमारे साथ रहेगा। मैं तो ऐसा मानता हूँ कि ऐसी आवाज़ें,ऐसे लोग एक बार ही पैदा होते हैं,एक तरह से देखें तो भगवान खु़द ही ऐसे लोगों की शक्लों में अवतरित होता है, कोई चाहकर या सोचकर,पढ़कर कभी भी ऐसा नहीं बन सकता।
यादों के झरोखे से-
"हैलो ज़िंदगी" के लिए जगजीत ने गुलज़ार के कलाम को गाया था जो बेहद पसंद किया गया था और इसी को सुनने के लिए मैं इसे देखता था, आप भी सुनिए-
दूरदर्शन पर "सुरभि" में जगजीत सिंह के साथ ये मुलाक़ात , जिसमें वो ग़ज़ल की बारीकियों के बारे में भी बात करते हैं। इसे सुनिए-
वो पहले ऐसे गायक थे जिन्होंने मल्टीट्रैक रिकार्डिंग की और अपना एक स्टूडिओ था और नई-नई तकनीक को सीखते थे और इस्तेमाल करते थे। पहली दफ़ा संतूर का इस्तेमाल ग़ज़ल गायकी में किया। भजन, शब्द,गीत, माहिए-टप्पे और ग़ज़ल को तो हर गली-कूचे तक पहुँचाया है और एक सुरीला दर्द छोड़कर गए हैं जो आने वाले कई सौ साल तक ज़िंदा रहेगा..अलविदा जगजीत... जीवन हो तो ऐसा हो , जाने के बाद भी सदियों तक अमर रहे..अलविदा जगजीत..विनम्र श्रदाँजलि
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7 comments:
सुर तुम्हारे गूंजेंगे, युग युग बनकर प्रीत
दमकोगे बन चाँद नभ, सदा सदा जगजीत.
सादर श्रद्धांजली...
sach kahaa ...unki aavaaj amar ho gaee ...aapne bhi achchha collection yaha prastut kiya hai .
यह सही है कि शिव बटालवी के गीत और जगजीत सिंह का स्वर एक अद्भुत मेल था भाव को जीने का।
दोनों का अपने अपने क्षेत्र में सदैव सम्मान से नाम लिया जाता रहा है और लिया जाता रहेगा।
बिलकुल सच एक युग का अंत हो गया है जगजीत जी के जाने से.
सादर श्रद्धांजली.
main bataa nahin saktaa aapke is post ne mujhe kyaa de diyaa hai. Shayad mujhe urdu poetry ka saath na miltaa agar Jagjit Singh nahi hota. is post ke liye aapkaa bahut bahut dhanyawaad
aabhar
Fani Raj
kya kahu ab jab bhi jagjeet ji ki baat hoti hai shbd khoe se lagte hai .aapne to jhakjhor sa diya
क्या कहें ....जगजीत जी का जाना एक खालीपन देकर गया और यह खालीपन अब किसी भी हालात में नहीं भरेगा ....!
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