१९४३ में "गया" बिहार में जन्में सैयद मोहम्मद शमीम अहमद उर्फ़ शमीम फ़ारूक़ी बहुत अच्छे शायर हैं और इनका एक ग़ज़ल संग्रह "ज़ायक़ा मेरे लहू का" प्रकाशित हो चुका है । बहुत से अवार्ड आपको मिल चुके हैं। इनके अशआर ही इनका परिचय हैं-
सच है कि अपना रुख भी बदलना पड़ा मुझे
मैं क़ाफ़िले के साथ था चलना पड़ा मुझे
ग़ज़ल
डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ
फिर बुलाती हैं किसी को बादबानी कश्तियाँ
एक अजब सैलाब सा दिल के निहां-ख़ाने में था
रेत, साहिल, दूर तक पानी ही पानी कश्तियाँ
मौजे-दरिया ने कहा क्या, साहिलों से क्या मिला
कह गईं कल रात सब अपनी कहानी कश्तियाँ
खामशी से डूबने वाले हमें क्या दे गए
एक अनजाने सफ़र की कुछ निशानी कश्तियाँ
एक दिन ऐसा भी आया हल्क़-ए- गरदाब में
कसमसा कर रह गईं ख़्वाबों की धानी कश्तियाँ
आज भी अश्कों के इस गहरे समुंदर में "शमींम"
तैरती फिरती हैं यादों की पुरानी कश्तियाँ
10 comments:
आज भी अश्कों के इस गहरे समुंदर में "शमींम"
तैरती फिरती हैं यादों की पुरानी कश्तियाँ
वाह साहब वाह।
क्या कहना ....लाजवाब
वाह! वाह!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल शमीम सर,
सादर बधाई....
bahut khoobsoorat...
मैं क़ाफ़िले के साथ था चलना पड़ा मुझे ...
इस नायाब और कामयाब मिसरे के ख़ालिक़
जनाब शमीम फारूकी साहब को पढ़ना , हमेशा हमेशा अपने आप में
इक नया और मालूमाती तज्रबा रहता है ....
उनकी शाईरी "शेर क्लब" , "फेस बुक" और ऐसी अन्य साइट्स पर
पढने को मिल जाती है ...
हर बार , हर रचना में क़रीब क़रीब हर मौज़ू पर
कुछ न कुछ नया लिखा मिल जाता है
उन्हें सलाम !
जनाब शमीम साहिब
आदाब
खूब लिक्खी है ग़ज़ल यह क्या करूँ तारीफ़ मैं
खूबसूरत सब कि सब हैं आसमानी कश्तियाँ
आज़र
आज भी अश्कों के इस गहरे समुंदर में "शमींम"
तैरती फिरती हैं यादों की पुरानी कश्तियाँ
bahut khoob !!
janab Shamim sb. ke liye kuchh kahna ya un ke ash'aar par tabsera karna sooraj ko charagh dikhane jaisa hoga,
un ko padhna har bar ek naya lutf de jata hai .
unko aur unkee takhleeqat ko mera salam !!
जनाब नजर-ए-सानी कर लें
इक अजब सैलाब-सा दिल के निहां-खाने में था
आज भी अश्कों के इस गहरे समुंदर में "शमींम"
तैरती फिरती हैं यादों की पुरानी कश्तियाँ
वाह...
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