Tuesday, March 13, 2012

डा. अहसान आज़मी की एक ग़ज़ल




















ग़ज़लनशेमन तो नशेमन है चमन तक छोड़ देते हैं
हम अपने पेट की खातिर वतन तक छोड़ देते हैं

खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते हैं

अँधेरों से अगर आवाज़ देता है कोई बेकस
हम अपने सहन की उजली किरन तक छोड़ देते हैं

मुहब्बत से अगर दुशमन भी हमसे मांग ले पानी
दो-इक चुल्लू नहीं गंग-ओ-जमन तक छोड़ देते हैं

सुना "अहसान" कुछ बच्चे लिबासों को तरसते हैं
अगर ये बात है तो लो कफ़न तक छोड़ देते हैं

डा. अहसान आज़मी

7 comments:

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

बहुत खूब अहसान आज़मी साहब !


खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते हैं

जिंदाबाद !!!!!

Pratik Maheshwari said...

वाह वाह वाह!
हर एक पंक्ति गज़ब की है!

इस्मत ज़ैदी said...

अँधेरों से अगर आवाज़ देता है कोई बेकस
हम अपने सहन की उजली किरन तक छोड़ देते हैं

बहुत उम्दा ग़ज़ल है अहसान साहब ,,मुश्किल रदीफ़ के साथ बड़ी ख़ूबसूरती से निभाया आप ने
मुबारक हो

Unknown said...

खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते


सुना "अहसान" कुछ बच्चे लिबासों को तरसते हैं
अगर ये बात है तो लो कफ़न तक छोड़ देते हैं

kya baat hein !!

कविता रावत said...

खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते हैं

अँधेरों से अगर आवाज़ देता है कोई बेकस
हम अपने सहन की उजली किरन तक छोड़ देते हैं
..bahut sundar umda prastuti..

JAYESH DAVE said...

खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते हैं.

... आहा.... बेहद सुन्दर.... हर शेर लाजवाब.... इसे फेसबुक पर शेयर करना चाहूँगा.....

गुड्डोदादी said...

खु़दाया क्या इबादत के लिए इतना नहीं काफ़ी
बुलाता है हमें जब तू बदन तक छोड़ देते हैं.

गजब