Monday, March 19, 2012

चलो आओ चलें अब इस जहां से-सचिन अग्रवाल




















ग़ज़ल

बहुत महंगे किराए के मकां से
चलो आओ चलें अब इस जहां से

यूँ ही तुम थामे रहना हाथ मेरा
हमे जाना है आगे आसमां से

ये तुम ही हो मेरे हमराह वरना
मेरे पैरों में दम आया कहां से


मेरी आँखों से क्या ज़ाहिर नहीं था
मैं तेरा नाम क्या लेता जुबां से


सचिन अग्रवाल

6 comments:

yashoda Agrawal said...

सचिन भाई की लिखी...और मै न पढ़ूं....
मेरे पैरों में दम आया कहां से........
बहुत अच्छी पंक्ति.....
अब लिखूं तो क्या..... दीपक को रोशनी दिखाऊं?
सादर
यशोदा

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खुबसुरत ग़ज़ल... वाह!

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

बहुत ख़ूब

बहुत मँहगे किराए के मकाँ से
चलो आओ चलें अब इस जहाँ से
ये शे’र तो मारफ़त का है ।
यह तो वही कहलवा सकता है
जिसकी बदौलत ये हाथों पैरों में दम आता है.
बहुत ही उम्दा शायरी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

mridula pradhan said...

मेरी आँखों से क्या ज़ाहिर नहीं था
मैं तेरा नाम क्या लेता जुबां से
behad narm.....nazuk,achchi lagi.

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर गजल:-)