Tuesday, December 4, 2012

ओम प्रकाश "नदीम" की एक ग़ज़ल













ग़ज़ल

सामने से कुछ सवालों के उजाले पड़ गए
बोलने वालों के चेहरे जैसे काले पड़ गए

वो तो टुल्लू की मदद से अपनी छत धोते रहे
और हमारी प्यास को पानी के लाले पड़ गए

जाने क्या जादू किया उस मज़हबी तक़रीर ने
सुनने वाले लोगों के ज़हनों पे ताले पड़ गए

भूख से मतलब नहीं, उनको मगर ये फ़िक़्र है
कब कहां किस पेट में कितने निवाले पड़ गए

जब हमारे क़हक़हों की गूंज सुनते होंगे ग़म
सोचते होंगे कि हम भी किसके पाले पड़ गए

रहनुमाई की नुमाइश भी न कर पाए ‘नदीम’
दस क़दम पैदल चले, पैरों में छाले पड़ गए

3 comments:

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही खुबसूरत गजल । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

Anonymous said...

dil ko chhu liya...

santosh pandey said...

waah sahab. aaj ke is dour me bhi itni umda gazal likhnewale mouzood hai.
allah aapko umra lambi kare.