Tuesday, June 11, 2013

दिनेश त्रिपाठी जी की दो ग़ज़लें


 












ग़ज़ल

जिस्म के ज़ख्म तो भर जाते हैं इक न इक दिन
मुददतें बीत गयीं रूह का छाला न गया .

रो न पड़तीं तो भला और क्या करतीं आँखें ,
ज़िंदगी इनसे तेरा दर्द संभाला न गया .

बस उजाले से उजाले का मिलन होता रहा
घुप अँधेरे से कभी मिलने उजाला न गया .

घर के भीतर न मिला चैन कभी दिल को मगर
पाँव दहलीज से बाहर भी निकाला न गया

प्रश्न क्यों प्रश्न रहे आज तक उत्तर न मिला
इक यही प्रश्न तबीयत से उछला न गया

हो के बेफ़िक्र चली आती हैं जब जी चाहे
इक तेरी याद का आना कभी टाला न गया

 ग़ज़ल

एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे
सिर्फ़ जीने भर को हम क्यों ज़िन्दगी कहते रहे

लोग प्यासे कल भी थे हैं आज भी प्यासे बहुत
फिर भी सब सहरा को जाने क्यों नदी कहते रहे

हम तो अपने आप को ही ढूंढते थे दर-ब-दर
लोग जाने क्या समझ आवारगी कहते रहे .

अब हमारे लब खुले तो आप यूं बेचैन हैं
जबकि सदियों चुप थे हम बस आप ही कहते रहे
.
रहनुमाओं में तिज़ारत का हुनर क्या खूब है
तीरगी दे करके हमको रोशनी कहते रहे


12 comments:

Unknown said...

Kabile-a- tareef....

Unknown said...

Kabile-a- tareef....

रजनीश 'साहिल said...

अब हमारे लब खुले तो आप यूं बेचैन हैं
जबकि सदियों चुप थे हम बस आप ही कहते रहे

Bahut Badhiya.

Barun Sakhajee Shrivastav said...

bahut achha

ashokkhachar56@gmail.com said...

वाह बहुत खूब

गौतम राजऋषि said...

दिनेश जी जाने माने नाम हैं हिन्दी ग़ज़ल के... लेकिन एक उलझन सी थी कि पहली ग़ज़ल में टंकन त्रुटियाँ हैं या मेरी समझ की कमी| चूंकि ग़ज़ल दिनेश साब की है और पोस्ट सतपाल साब द्वारा की गई है और दोनों ही से बहर पर हुई त्रुटियों के बारे में सोचना भी पाप सा है .... तो उलझन में हूँ !

Rishi Kant Tripathi said...

Wah wah....Kya khoob likha hai...hamesha ki tarah lajawaab....

Rishi Kant Tripathi said...

Wah wah....Kya khoob likha hai...hamesha ki tarah lajawaab....

Anonymous said...

Hello. And Bye.

सतपाल ख़याल said...

gautam ji,

aap sahi soch rahe hain gautam jii matle me-

Na ko NAA ke vazn me liya gaya hai aur doosre she'r KYA ko fa(1) ke vazn me.....

truti to hai.........

सतपाल ख़याल said...

GAUTAM JI,

DINESH JI NE MANA HAI KI NA KO NAA KE VAZN ME LIYA HAI JO SUDHAR SAKTA HAI AUR KYA' KO FE(1) KE VAZN ME LIYA JA SAKTA HAI.

संतोष पाण्डेय said...

वाह साहब। उम्दा गज़ल।