Wednesday, October 7, 2015

बहरें और उनके उदाहरण



ग़ज़ल लेखन के बारे में आनलाइन किताबें -

ग़ज़ल की बाबत > https://amzn.to/3rjnyGk

बातें ग़ज़ल की > https://amzn.to/3pyuoY3

ग़ज़ल का व्याकरण > https://amzn.to/44nWmEY

इसलाह-ए-ग़ज़ल > https://amzn.to/3CXkJgO

ये किताबें आपके लिए उपयोगी सिद्द होंगी , इन्हें सामने दिए लिंक से आप ख़रीद सकते हैं |

बहरें और उनके उदाहरण

आठ बेसिक अरकान:
फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2)
मु-त-फ़ा-इ-लुन(1-1-2-1-2)
मस-तफ़-इ-लुन(2-2-1-2)
मु-फ़ा-ई-लुन(1-2-2-2)
मु-फ़ा-इ-ल-तुन (1-2-1-1-2)
मफ़-ऊ-ला-त(2-2-2-1)
फ़ा-इ-लुन(2-1-2)
फ़-ऊ-लुन(1-2-2)
***

फ़ारसी मे 18 बहरें:

1.मुत़कारिब(122x4) चार फ़ऊलुन
2.हज़ज(1222x4) चार मुफ़ाईलुन
3.रमल(2122x4) चार फ़ाइलातुन
4.रजज़:(2212) चार मसतफ़इलुन
5.कामिल:(11212x4) चार मुतफ़ाइलुन
6 बसीत:(2212, 212, 2212, 212 )मसतलुन फ़ाइलुऩx2
7तवील:(122, 1222, 122, 1222) फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन x2
8.मुशाकिल:(2122, 1222, 1222) फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
9. मदीद : (2122, 212, 2122, 212) फ़ाइलातुन फ़ाइलुनx2
10. मजतस:(2212, 2122, 2212, 2122) मसतफ़इलुन फ़ाइलातुनx2
11.मजारे:(1222, 2122, 1222, 2122) मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
12 मुंसरेह :(2212, 2221, 2212, 2221) मसतफ़इलुन मफ़ऊलात x2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
13 वाफ़िर : (12112 x4) मुफ़ाइलतुन x4 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
14 क़रीब ( 1222 1222 2122 ) मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
15 सरीअ (2212 2212 2221) मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मफ़ऊलात सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
16 ख़फ़ीफ़:(2122 2212 2122) फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में .
17 जदीद: (2122 2122 2212) फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
18 मुक़ातज़ेब (2221 2212 2221 2212) मफ़ऊलात मसतफ़इलुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
19. रुबाई
***
1.बहरे-मुतका़रिब:
1.मुत़कारिब(122x4) मसम्मन सालिम
(चार फ़ऊलुन )
*सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं.
*कोई पास आया सवेरे-सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे-सवेरे.
ये दोनों शे'र बहरे-मुतकारिब में हैं और ये बहुत मक़बूल बहर है. बहर का सालिम शक्ल में इस्तेमाल हुआ है यानि जिस शक्ल में बहर के अरकान थे उसी शक्ल मे इस्तेमाल हुए.ये मसम्मन बहर है इसमे आठ अरकान हैं एक शे'र में.तो हम इसे लिखेंगे: बहरे-मुतका़रिब मफ़रद मसम्मन सालिम.अगर बहर के अरकान सालिम या शु्द्ध शक्ल में इस्तेमाल होते हैं तो बहर सालिम होगी अगर वो असल शक्ल में इस्तेमाल न होकर अपनी मुज़ाहिफ शक्ल में इस्तेमाल हों तो बहर को मुज़ाहिफ़ कह देते हैं.सालिम मतलब जिस बहर में आठ में से कोई एक बेसिक अरकान इस्तेमाल हुआ हो. हमने पिछले लेख मे आठ बेसिक अरकान का ज़िक्र किया था जो सारी बहरों का आधार है.मुज़ाहिफ़ मतलब अरकान की बिगड़ी हुई शक्ल.जैसे फ़ाइलातुन सालिम शक्ल है और फ़ाइलुन मुज़ाहिफ़. सालिम शक्ल से मुज़ाहिफ़ शक्ल बनाने के लिए भी एक तरकीब है जिसे ज़िहाफ़ कहते हैं.तो हर बहर या तो सालिम रूप में इस्तेमाल होगी या मुज़ाहिफ़ मे, कई बहरें सालिम और मुज़ाहिफ़ दोनों रूप मे इस्तेमाल होती हैं. अरकानों से ज़िहाफ़ बनाने की तरकीब बाद में बयान करेंगे.हम हर बहर के मुज़ाहिफ़ और सालिम रूप की उदाहरणों का उनके गुरु लघू तरकीब से , अरकानों के नाम देकर समझेंगे जो मैं समझता हूँ कि आसान होगा , नहीं तो ये खेल पेचीदा हो जाएगा.
बहरे-मुतका़रिब मुज़ाहफ़ शक्लें:
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ (फ़ऊ या फ़+अल)
122 122 122 12
गया दौरे-सरमायादारी गया
तमाशा दिखा कर मदारी गया.(इक़बाल)
दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले.(मीर)(ये महज़ूफ ज़िहाफ़ का नाम है)
नबर दो:
फ़ऊल फ़ालुन x 4
121 22 x4
(सौलह रुक्नी)
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ न लेहु काहे लगाये छतियाँहज़ार राहें जो मुड़के देखीं कहीं से कोई सदा न आई.

_______________________________________________________________________________





बड़ी वफ़ा से निभाई तूने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई.नंबर तीन:फ़ऊल फ़ालुन x 2
121 22 x 2
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था.
हवाओं का रुख दिखा रहा था.
नंबर चार:फ़ालुन फ़ऊलुन x2
22 122 x2
नै मुहरा बाक़ी नै मुहरा बाज़ी
जीता है रूमी हारा है काज़ी (इकबाल)
नंबर पाँच:
फ़ाइ फ़ऊलुन
21 122 x 2
सोलह रुक्नी
21 122 x4
नंबर छ:22 22 22 22
चार फ़ेलुन या आठ रुक्नी.
इस बहर में एक छूट है इसे आप इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
211 2 11 211 22
दूसरा, चौथा और छटा गुरु लघु से बदला जा सकता है.
एक मुहव्ब्त लाख खताएँ
वजह-ए-सितम कुछ हो तो बताएँ.
अपना ही दुखड़ा रोते हो
किस पर अहसान जताते हो.(ख्याल)
नंबर सात:(सोलह रुक्नी)
22 22 22 22 22 22 22 2(11)
यहाँ पर हर गुरु की जग़ह दो लघु आ सकते हैं सिवाए आठवें गुरु के.
* दूर है मंज़िल राहें मुशकिल आलम है तनहाई का
आज मुझे अहसास हुआ है अपनी शिकस्ता पाई का.(शकील)
* एक था गुल और एक थी बुलबुल दोनों चमन में रहते थे
है ये कहानी बिल्कुल सच्ची मेरे नाना कहते थे.(आनंद बख्शी)
* पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है.(मीर)
और..
एक ये प्रकार है
22 22 22 22 22 22 22
इसमे हर गुरु की जग़ह दो लघु इस्तेमाल हो सकते हैं.
नंबर आठ:
फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन फ़े.
22 22 22 2
अब इसमे छूट भी है इस को इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं
211 211 222
* मज़हब क्या है इस दिल में
इक मस्जिद है शिवाला है
अब मुद्दे की बात करते हैं आप समझ लें कि मैं संगीतकार हूँ और आप गीतकार या ग़ज़लकार तो मैं आपको एक धुन देता हूँ
जो बहरे-मुतकारिब मे है. आप उस पर ग़ज़ल कहने की कोशिश करें. इस बहर को याद रखने के लिए आप चाहे इसे :
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
(122 122 122 122)
या
छमाछम छमाछम छमाछम छमाछम
या
तपोवन तपोवन तपोवन तपोवन
कुछ भी कह लें महत्वपूर्ण है इसका वज़्न, बस...
1.बहरे- मुत़कारिब
(122x4)
(चार फ़ऊलुन )एक बहुत ही मशहूर गीत है जो इस बहर मे है वो है.
अ- के ले- अ -के -ले क- हाँ जा- र- हे -हो
(1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2)
मु- झे सा- थ ले -लो य -हाँ जा र -हे हो.
(1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2)
2 .
हज़ज मसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन(1222x4)
ये सबसे मक़बूल और आसान बहर है.शायर इस बहर से ही अमूमन लिखना सीखता है.
उदाहरण:
अँधेरे चंद लोगों का अगर मकसद नही होते
यहाँ के लोग अपने आप मे सरहद नहीं होते(द्विज)
हज़ारों ख्वाहिशे ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.(गा़लिब)
नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मै शायर हूँ ज़बां मेरी कभी उर्दू कभी हिंदी
कि मैने शौक़ से बोली कभी उर्दू कभी हिंदी( सतपाल ख्याल)2 हज़ज मसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ मक़सूर महज़ूफ़:
मफ़ऊल मफ़ाईल मुफ़ाईल फ़लुन या मफ़ाईल
22 11 22 11 22 11 2 2 (1)
या यूँ 22 11 22 11 22 11 22
उदाहरण:
गो हाथ मे जुंबिश नहीं हाथों मे तो दम है
रहने दो अभी साग़रो-मीना मेरे आगे.(गालिब)
रंज़िश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिए से मुझे छोड़के जाने के लिए आ.( फ़राज़)
अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं
कुछ शे'र फ़कत तुमको सुनाने के लिए हैं.( जां निसार अखतर)
3 हज़ज मसम्मन मक़बूज़:
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 X4
ये बहुत ही सुंदर बहर है.
उदाहरण:
*सुना रहा है ये समां सुनी -सुनी सी दास्तां.
* जवां है रात साकिया शराब ला शराब ला.
* अभी तो मै जवान हूँ, अभी तो मै ज़वान हूँ.
4.हज़ज मसम्मन अशतर:
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
उदाहरण:
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयान अपना
बन गया रक़ीब आखिर था जो राज़दाँ अपना.(गालिब)
5.हज़ज अशतर मक़बूज़:
फ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़ाइलुन मफ़ाइलुन
212 1212 212 1212
6.हज़ज मुसद्द्स मक़सूर महज़ूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122.
उदाहरण:
*तेरे बारे मे जब सोचा नहीं था
मै तनहा था मगर इतना नही था.
*अकेले हैम चले आऒ कहाँ हो
कहाँ आवाज़ दें तुमको कहाँ हो.
* मुसाफिर चलते-चलते थक गया है
सफर जाने अभी कितना पड़ा है.
* दरीचा बेसदा कोई नही है
अगरचे बोलता कोई नहीं है
7.मुसद्दस अख़रब मक़बूज़ मक़सूर महज़ूफ़ :
मफ़ऊलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
222 212 122
या 2211 212 122
मिलती है ज़िंदगी कहीं क्या...
8. हज़ज मसम्मन अखरबमफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
उदाहरण:
*हंगामा है क्योम बर्पा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नही डाला चोरी तो नहीं की है.( अकबर अलाहाबादी)
3.बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम:फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन(212 212 212 212 )
उदाहरण:
या ख़ुदा तुम रखो अब मेरी आबरू
ग़श न आए मुझे जब वो हों रूबरु.
आपको देखकर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया.
दौड़ती भागती सोचती ज़िंदगी
हर तरफ़ हर ज़गह हर गली ज़िंदगी.( ख्याल)
हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.
सौलह रुक्नी:
212 x8
मसद्दस:
फ़ाइलुन X 3उदाहराण:
आज जाने की ज़िद न करो
यूँ ही पहलू मे बैठे रहो.
सारे सपने कहीं खो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए.
तुम ये कैसे जुदा हो गए
हर तरफ़ हर ज़गह हो गए.
मुज़ाहिफ़ शक्लें:
1.फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन22 x4
ये तरक़ीब मुतकारिब मे भी आती है.
2.फ़'इ'लुन .फ़'इ'लुन .फ़'इ'लुन .फ़'इ'लुन112 x4
और 112x8.
बहुत कम इस्तेमाल होता है
.
3.फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा और फ़'212 212 212 2 (1)
किस के ख्वाबे-निहां से है आई
गुलबदन तू कहाँ से है आई.
4.फ़ाइलुन फ़'इल फ़ाइलुन फ़'इल
212 12 212 12
5. 22 x 8 या 112x 8
***
4.
बहरे-रमल( मसम्मन सालिम)1.फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 x4
( बहुत कम इस्तेमाल होती है )
मुज़ाहिफ़ शक्लें:1.फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
सबसे आसान और मक़बूल बहर है.हर शायर इस्तेमाल करता है.
उदाहरण:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है
देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-कातिल मे है.
हो गई है पीर परबत सि पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.(दुशयंत)
आपकी कश्ती मे बैठे ढूँढते साहिल रहे
सरफ़रोशी का वो जज़्बा अब भि अपने दिल मे है
खौलता है खून हरदम चुप नहीं बैठेंगे हम.( ख्याल)
चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है.
2.फ़ाइलातुन .फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
(2122 2122 212 )
उदाहरण:
रंज़ की जब ग़ुफ़्तगू होने लगी
आप से तुम तुम से तू होने लगी.कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जि मे हमने ठानी और है.
जब सफ़ीना मौज़ से टकरा गया
नाख़ुदा की भी खु़दा याद आ गया.
दिल गया तुमने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें.3.
फ़ाइलातुन फ़'इ'लातुन फ़'इ'लातुन फ़'लान(फ़ालुन)
2122 1122 1122 112
या
2122 1122 1122 22
उदाहरण:
मुझसे मिलने को वो करता था बहाने कितने
अब ग़ज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने.
अपनी आँखों के समंदर मे उतर जाने दे
तेरा मुज़रिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे.
रस्मे-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएँ कैसे
मुझको इस रात की तनहाई मे आवाज़ न दो
जिसकी आवाज़ रुलादे मुझे वो साज़ न दो.
इतना टूटा हूँ कि छूने से बिखर जाउंगा...
4. बहरे-शिकस्ता.फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122
उदाहरण:
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता.
5. बहरे-मज़ारे: मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुनx2
(1222, 2122, 1222, 2122) सालिम शक्ल मे इसका इस्तेमाल नही होता .
सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
मुज़ाहिफ़ शक्लें:
1. फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
2212 122 2212 122
उदाहरण:
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलसितां हमारा
मत ज़िक्र कर तू सबसे मत पूछ हर कि्सी को
ज़ख्मों का तेरे मरहम मालूम है तुझी को.(ख्याल)
मुझको बता कि मैने ये क्या गुनाह किया है
चाहा है दिल तुमारा तुमको जो दिल दिया है.(रौशन)
2. मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12
उदाहरण:
मुद्द्त हुई है यार को महमां किये हुए
जोशे क़दा से बज़्म चरागां किए हुए.
आई हयात आए कज़ा ले चली चले
अपनि खुशि से आये न अपनि खु्शी चले.
वो और हैं जो मरते हैं बस देखकर तुझे
आशिक तो मै हूँ जो बिना देखे जीया नही.
जिस तरह हस रहा हूं मै पी-पी के अशके-ग़म
यूँ दूसरा हसे तो कलेजा निकल पड़े.( कैफ़ी आज़मी)
6.बहरे-रजज़ :मसम्मन सालिम
मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
उदाहरण:
ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया आवारगी
इस दश्त मे इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी.
ऐ मुझ से तुझ को सौ मिले तुझ सा न पाया एक मै
सौ- सौ कही तूने मगर मुंह पर न लाया एक मै.
मुजाहिफ़ शक्लें:
नं: 1.
मुफ़’त’इ’लुन म’फ़ा’इ’लुन मुफ़’त’इ’लुन म’फ़ा’इ’लुन
2 11 2 1212 2112 1212
उदाहरण:
दिल ही तो है न संगो-खिश्त दर्द से भर न पाये क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमे सताए क्यों,
शामे-फ़िराक अब ना पूछ आई और आके टल गई
दिल था कि फ़िर बहल गया जां थी कि फिर संभल गई.
नं:2.
मफ़’त’इ’लुन मफ़’त’इ’लुन मफ़’त’इ’लुन मफ़’त’इ’लुन
2112 2112 2112 2112
उदाहरण:
आज हो तौफ़ीके-मुलाकात तो कुछ बात बने
आएँ लबों तक मेरे जज़्बात तो कुछ बात बने.
* 7. बहरे-मजतसइस बहर की मुज़ाहिफ़ शक्लें ही इस्तेमाल होती हैं.सालिम का इस्तेमाल नहीं होता. इसके सालिम अरकान हैं: (1222, 2122, 1222, 2122) मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुनx2
मुज़ाहिफ़ शक्लें:
1. म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन
1212 1122 1212 22/ 112
उदाहरण:
सुना है लूट लिया है किसी को रहबर ने
ये वाक्या तो मेरी दास्तां से मिलता है.(22)
गज़ब किया तिरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात कयामत का इंतज़ार किया.(112)
वो मै नही था जो इक हर्फ़ भी न कह पाया
वो बेबसी थी कि जिसने तेरा सलाम लिया.
करूँ न याद उसे किस तरह भूलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे.
हरेक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है
तुमी कहो कि ये अंदाज़े-गुफ़्तगू क्या है.
**वो चीज़ जिस के लिए हमको हो बहिशत अज़ीज
1212 1122 1212 112
सिवाए वाद-ए-गुलफ़ामे-मिशकबू क्या है.
1212 1122 1212 22.
अंत मे 112 or 22 का इस्तेमाल हो सकता है.
आखिरी रुक्न 22 कि वजाए112/ 212/ 221/ 1121 मे से कोई भी हो सकता है.
नं: 8 बहरे-मुंसरेह :
मसतफ़इलुन मफ़ऊलात x2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत ही इस्तेमाल होती है.
(2212, 2221, 2212, 2221)
मुज़ाहिफ़ शक्लें:
1.मुफ़'त'इ"लुन फ़ा'इ'लुन(फ़ा'इ'ला'त) मुफ़'त'इ'लुन फ़ा'इ'लुन(फ़ा'इ'ला'त)
2112 212 (2121) 2112 212(2121)
उदाहरण:
सिलसिला-ए-रोज़ो-शब नक्शबारे-हादिसात
सिलसिला-ए-रोज़ो शब अस्ले-हयातो-मुमात (Iqbal)
2. मुफ़'त'इ'लुन फ़ा'इ'लात मुफ़'त'इ'लुन फ़े या फ़ा
2112 2121 2112 1 or 2.
उदाहरण:
आ के मेरी जान को करार नही है.
ताकते-बेदादे-इंतज़ार नही है.
3. मुफ़’त’इ’लुन फ़ाइलुन मुफ़’त’इ’लुन फ़ या फ़ा
2112 212 2112 1or 2
बहर नंबर: 9मुक़ातज़ेब
मफ़ऊलात मसतफ़इलुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरतें इस्तेमाल होती है.
(2221 2212 2221 2212)
मुज़ाहिफ़ सूरतें :
न:1
फ़ा’इ’ला’त मुफ़’त’इ’लुन फ़ा’इ’ला’त मुफ़’त’इ’लुन
2121 2 11 2 2121 211 2
बहुत कम इस्तेमाल होती है.
न: 2
फ़ा’इ’ला’त मफ़’ऊ’लुन फ़ा’इ’ला’त मफ़’ऊ’लुन
2121 222 2121 222
उदाहरण:
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना
बन गया रक़ीब आखिर था जो राज़दां अपना.
बहर न>10: बहरे-खफ़ीफ़
फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन
(2122 2212 2122)
सालिम रूप मे इस्तेमाल नही होती.सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ शक्लें इस्तेमाल होती हैं.
मुज़ाहिफ़ शक्लें:सिर्फ़ मुसद्दस शक्ल इस्तेमाल होती है.
न:1
फ़ा’इ’ला’तुन (फ़’इ’ला’तुन) म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन(फ़’इ’ला’न)
2122 (1122) 1212 22 (1121)
यानि ये बहर नीचे दिए दोनो प्रकार से इस्तेमाल हो सकती है.
फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन
( 2122 1212 22 ) ,
फ़’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़’इ’ला’न
( 1122 1212 1121)
उदाहरण:
इब्ने मरीयम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई.
जल बोझी शमा रौशनी के लिए
ये भी जीना हुआ किसी के लिए.
हर हक़ीकत मजाज़ हो जाए
काफ़िरों की नमाज़ हो जाए.
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है.गा़लिब के इस शे’र मे पहले मिसरे मे(दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है)
1122 1212 22
और दूसरे मे
2122 1212 22
का इस्तेमाल हुआ है.
नंबर: 11::बहरे-तवील:
फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन
122, 1222, 122, 1222
सालिम शक्ल का ही इस्तेमाल होता है केवल.
बहुत कम इस्तेमाल होती है लेकिन एक मिसरा लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.
सिर्फ़ समझने के लिए.
*कहो क्या है उस ज़ानिब ,चलो उस तरफ यारो.
**
बहर न:12:
बहरे-मदीद :मसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
(2122, 212, 2122, 212)
सिर्फ़ सालिम शक्ल मे इस्तेमाल होती है लेकिन बहुत कम.
एक मिसरा कहने की कोशिश कर रहा हूँ:
आशिकी है ज़िंदगी ज़िंदगी है आशिकी.
न:13
बहरे-बसीत:मसतलुन फ़ाइलुऩ मसतलुन फ़ाइलुऩ
(2212, 212, 2212, 212 )
सालिम शक्ल मे ये इस्तेमाल नही होती सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ शक्लें इस्तेमाल होती है.
लेकिन बहुत कम.
मुज़ाहिफ़ शक्ल:
1.मुफ़’त’इ’लुन फ़ा’इ’लुन .मुफ़’त’इ’लुन फ़ा’इ’लु्न
2112 212 2112 212
एक मिसरा कहने कि कोशिश करता हूँ सिर्फ़ समझने के लिए:
दिल ने कहा सच जिसे हमने कहा सच उसे.
न:14
बहरे-कामिल:(मसम्मन सालिम)ये मसद्दस शक्ल मे कम इस्तेमाल होती है.
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
(11212x4)
ये सालिम रूप मे इस्तेमाल होती है.
उदाहरण:
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
*11212 11212 11212 11212
वो जो हम मे तुम मे करा था तुझे याद हो कि न याद हो.
वो ही यानि वादा निबाह का तुझे याद हो कि न याद हो.
मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा मुझे दोस्त बनके दगा न दे
मैं हूँ दर्दे-इशक से जां-बलब मुझे ज़िंदगि कि दुआ न दे.न:15
बहरे- वाफ़िर :मुफ़ाइलतुन मुफ़ाइलतुन मुफ़ाइलतुन मुफ़ाइलतुन
(12112 x4)
सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ शक्ल इस्तेमाल होती है.न के बराबर इस्तेमाल होता है.
एक मिसरा कहने की कोशिश करता हूँ:
*कहाँ तू सनम कहाँ मै सनम कहा मैने क्या सुना तूने क्या.
16.बहरे-सरीअमसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मफ़ऊलात
2212 2212 2221
सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत इस्तेमाल होती है.
मुजाहिफ़ शक्ल:
मफ़’त’इ’लुन (मफ़’ऊ’लुन) मफ़’त’इ’लुन (मफ़’ऊ’लुन) फ़ा’इ’लुन( फ़ा’इ’लात)
2112 (222) 2112 (222) 212 (2121)
*मफ़’त’इ’लुन की जगह मफ़ऊलुन और फ़ाइलुन की जगह फ़ाइलात इस्तेमाल करने की छूट है.
उदाहरण:
दारस-ए-मुल्क अस्त मुहम्मद हाकिम
बिस्मिलाह इर-रहमान अर-रहीम.
17
बहरे-जदीद:फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन
(2122 2122 2212)
सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में इस्तेमाल होती है:
1.फ़’इ’ला’तुन फ़’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन
11 22 1122 1212
इस्तेमाल नही होती.
एक मिसरा लिखने की कोशिश करता हूँ
**न कहो कुछ, न सुनो कुछ ,न सहो कुछ
18. बहरे-क़रीबमुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन
( 1222 1222 2122 )
सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में इस्तेमाल होती है.
मुज़ाहिफ़ शक्ल:
म’फ़ा’ई’ल म’फ़ा’ई’ल फ़ाइलातुन
1221 1221 2122
फ़ारसी मे ज़्यादा इस्तेमाल होती है.
एक मिसरा समझने के लिए
कहो कु्छ तो सुनो कुछ तो ज़िंदगी है.
19.
बहरे-मुशाकिल
सालिम शक्ल इस्तेमाल नही होती और ये उर्दू मे इस्तेमाल नही होता.
मुज़ाहिफ़ शक्ल:
फ़ा'इ'लात मु'फ़ा'ई'ल मु'फ़ा'ई'ल
2121 1221 1221
एक मिसरा कहने की क ओशिश कर रहा हूँ सिर्फ़ समझने के लिए
ज़िंदगी ये मिरी शूल सी बिन तेरे

(Disclaimer- Affiliated links in article)

102 comments:

शारदा अरोरा said...

बहरें और अरकान अपनी समझ में ग़ज़ल की ए बी सी डी भी नहीं आई। यूँ लग रहा है कि ये व्याकरण के साथ कोई विधा है , मगर ये तो बहुत मुश्किल है ,शौक तो हमें भी बहुत है मगर सीखने की कोई सूरत नजर नहीं आती। शुक्रिया इतनी सारी जानकारी के लिए।

yashoda Agrawal said...

बेहतरीन समझाईश
समझने के लिए इसे
इतमीनान से
और
कई-कई बार
पढ़ना पड़ेगा
शुक्रिया ज़नाब सतपाल जी

ऋता शेखर 'मधु' said...

महत्वपूर्ण जानकारी...बहुत आभार !

ऋता शेखर 'मधु' said...
This comment has been removed by the author.
ऋता शेखर 'मधु' said...
This comment has been removed by the author.
ऋता शेखर 'मधु' said...
This comment has been removed by the author.
ऋता शेखर 'मधु' said...
This comment has been removed by the author.
अन्यत्र said...

जरूरी जानकारी मिली / शुक्रिया जनाब

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

शुकृया जनाब

JITENDRA said...

Oh great.. appreciable

JITENDRA said...

Oh great.. appreciable

uday jhanjhani said...

खूबसूरत समझाइस

Mukesh Shandilya "Chirag" said...

वाह

Bhardwaj Garry said...

आदरणीय बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने लेकिन अगर संभव हो तो कृपया बहरे-सरीअ एक बार फिर से समझ दीजिये।

sirsi tech said...

Mai apki koi madad ka

sitaram satpathy said...

Thanks a lot..

VineetMohanAudichya said...

बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी ग़ज़ल लिखने में में दिलचस्पी रखने वालों के लिए। सादर आभार।

सूर्यकरण सोनी 'सरोज' said...

Bahut sundar prastuti

Shri kumaar said...

आठ रुखनी का उदाहरण गिन कर समझाइये सर
एक था गुल वाला

Unknown said...

इतना अनुशासन थोड़ा अपच लगता है। तब तो लिखना और कठिन होगा ।

bindusai said...

बेहतरीन जानकारी इतने आसान तरीके से मुबारकवाद साधुवाद

Unknown said...

कई मर्तब्बह पढ़ना पड़ेगा तब समझ में आएगी ये बहरे ।।

बहुत शुक्रिया सतपाल जी।।

इस जानकारी से हमे बहुत कुछ सिखने को
मिलेगा और इनही शब्दों से हमारी ज़िन्दगी संवर जाएगी।।

PAWAN KUMAR TOMAR said...

ये बहरे मुश्किल तो ज़रूर है लेकिन अभ्यास से एक एक बहर पर पकड़ बनाकर ही आगे बढ़े तो मैं समझता हूँ काफ़ी हद तक इन पर काबू पाया जा सकता है ,या यूँ कहें कि इनका डर दूर भगाया जा सकता है,शौक और लगन हो तो फिर बात ही क्या.....

आयुष सिंह said...

घुंघरू के स्वर मंद रहेंगे
यदि ना चरण स्वक्छंद रहेंगे ।
काव्य की कला हृदय से उत्पन्न होती है व्याकरणीय नियमों में इसको बांधना उचित नही

Somabhai said...

हा जी मेरा भी यही हाल है।
लिखना पसंद है मुझे पर ये समझ नहीं आ रहा है क्या करू

sahir said...

बहुत अच्छा लगा मुझे तो

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

अब तक हम अपने को खब्बी खान समझते रहे और जो आया ग़ज़ल के नाम पर ठेलते रहे।
ये तो बड़ी कठिन विधा है मैं तो निकलता हूँ कुछ और सही।

Aadil said...

are jnab likhna to hum bhi cahah rhe pr samjh kuch nhi aaya

Ashok Jorasia said...

हमने भी बहुत सी गजल लिखी है मगर इस व्याकरण से हट कर ,

मो. कमरूद्दीन शेख ( QAMAR JAUNPURI ) said...

वाह बहुत उम्दा तरीके से समझाया गया है।
यूँ ही नादानी में कुछ भी लिखकर ग़ज़ल का नाम दे देता था। मगर 4 दिन पहले कुछ अच्छी तरह से लिखने का ख्याल आया तो सोचा पहले थोड़ा अध्ययन कर लिया जाय। खोजना शुरू किया तो एक खाका पता चला कि ग़ज़ल क्या होती है। यह पता चला कि इसका अपना एक छंद शास्त्र होता है। बहर, मीटर,काफिया, रदीफ़ इत्यादि का ध्यान रखना होता है।
जब मन लगाकर सीखने की कोशिश किया तो बहुत मुश्किल नही लग रहा है मीटर में लिखना।
बहुत से मित्र पढ़कर घबरा जा रहे हैं, उनसे निवेदन है कि बस इन मीटरों को अपनी किसी धुन में फिट कर लीजिये, फिर शायद इनमे लिखना असम्भव नही होगा।
मात्रा गिराने की बात अभी भी समझ नहीं आयी। अगर विस्तार से इस पर प्रकाश डालें तो कृपा होगी।
कहीं कहीं 32 बहर की चर्चा है। कृपया बताएं कि कुल कितनी बहर होती हैं।

Aap ka panna said...

अब मैं समझा मुकम्मल ग़ज़ल में बहर का मतलब
बखूबी क़लम पर बंदिशों की लगाम लगा रक्खी है।

अजय प्रसाद said...

Outstanding information FOR every one WHO wants to learn the technique of gazal writing.

Unknown said...

अगर आप इन सारी चीजों को वीडियो में बनाएंगे तो हमे समझने मे आसानी होंगी और आप को समझाने में

Unknown said...

2122 1122 1212 22 कोई बह्र है क्या?

Unknown said...

क्या कोई वीडियो लिंक भी है क्या आपका जिससे मात्राओं का गिनना पता चले बहर के हिसाब से

Rohtash Nimi said...

बहुत अच्छा लगा

Unknown said...

सर जी मेरी समझ में नहीं आता
कही गुरु की जगह लघु और लघु की जगह गुरु का प्रयोग है

Unknown said...

बहुत शुक्रिया इतनी अच्छी जानकारी के लिए।

Unknown said...

मैंने भी इन बहरों को समझने की कोशिश की है और कुछ ग़ज़लें कहने की कोशिश की है।

मनजीत शर्मा मीरा

Kumar Satendra said...

1222 1222 1222

इस तरह की कोई बहर है ?

Zohair Ahmad "Aziz" said...

Thank you very much sir.
It's very itresting topic I glad to say you that I compose many Ghazals without this details knowledge. Now I will write more and more.
Hassan tar hai to unme anaa zaruri hai,
Ho kuchbhi zahn me qadre wafa zaruri hai.
Zohair Ahmad "Aziz"

Zohair Ahmad "Aziz" said...

Hame to jo bhi Mike zakhm pattharo mile,
Ye aur baat hai patthar ko tum khuda samjho.
Zohair Ahmad "Aziz"

Anonymous said...

32 behero me he ghazal kahena zaruri hai ya arkano se nayi behar banayi jaskti hai?agar haan to uske rules kya hain..beher he ek bahot bada masla hai aor agar 32 he hain to aor mushkil..umeed karta hoon mujhe reply milega🙏🙏🙏

Dr Namrata Kulkarni said...

नमस्कार, क्या मुझे आप बता सकते है कि ग़ालिब की ग़ज़ल...देखिए पाते है उश्शाक़ बुतों से क्या फैज़, एक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है...ये कौनसे बहर में बैठती है ?
कुछ लिखने की कोशिश में हूँ, और आपकी ये पोस्ट बहुत काम आती है।
बहुत शुक्रिया
डॉ नम्रता कुलकर्णी

Sangeeta Sharma Kundra said...

Same here

Unknown said...

नियम हर जगह अपना एक अलग स्थान रखते है। ये छंद में गति तुक गुण आदि सही रखने में मदद करते है। वही उर्दू ग़ज़ल में ये शेर को वज़न देने के साथ साथ गाने लायक बनाते है।

रिशू said...
This comment has been removed by the author.
रिशू said...

32 बहरों का जिक्र इसलिए होता है क्योंकि ये सभी ज्यादातर इस्तेमाल होती हैं ..इनके अलावा और भी बहरें है...इनकी संख्या 70-80 के आसपास है

रिशू said...

ग़ज़ल इन्हीं मान्य बहरों में कहना ज़रूरी है...अरकान से नई बह्रें बनाना भी एक नए आविष्कार करने जैसा ही है..लेकिन इसके भी कुछ नियम हैं जो अरूज की किताबों में मिलेंगे लेकिन ऐसा करना लगभग नामुमकिन है क्योंकि जितनी बह्रें बननी थीं बन चुकीं...और वैसे भी किसी शख्स को ग़ज़ल कहने के लिए इतनी बहरें काफी है बशर्ते उसे पता हो कि मेरा मिसरा या पंक्ति किस बहर में फिट बैठ रही है

Unknown said...

जी है!

Sujeet said...

Han ji

DC tripathi age 52 said...

किसी भी तरह के ग़ज़ल के लेखन काफ़िया, रफ़ीद, बहर निहायत जरूरी होता है ।कुछ लिखने के लिए जानकारी आवश्यक है ।आप द्वारा प्रदत्त जानकारी सीखने के लिए इत्मीनान की जरूरत है ।हम प्रयास करते रहेंगे । आभार ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

अत्यंत उपयोगी......सार्थक पोस्ट..... शुक्रिया ।
www.kavitavishv.com

सुरेश भारद्वाज निराश said...

जो मिसरा 32 बह्रों में फिट न हो उसके लिये नयी बह्र बन सकती है, यदि नयी बह्र में ग़ज़ल कही गयी हो तो क्या वो मान्य होगी?

Amarsh Raj said...

फिर वो ख़्याल हुआ ग़ज़ल नही ग़ज़ल में बहर का होना बेहद जरूरी होता है🤗

Unknown said...

रेख़्ता में, शहर, बहर, ज़हर की वज़्न मात्रा बताइये
और हिंदी में भी शहर, बहर ज़हर की वज़्न मात्रा बताइये

साकेत रंजन प्रवीर said...

सतपाल 'ख़याल' जी संछेप में बह्र पे अच्छी कोशिश है
पहल का स्वागत है
साकेत

Unknown said...

غم زدہ ہے دل میرا مجھکو نا ستاؤ تم
بے وفا مجھے تنہا چھوڑ کر نا جاؤ تم

مینے دل کی دنیا میں تیرا گھر بنایا ہے
زندگی کی راہوں میں ایک بار آؤ تم

چھوڑ کر ہی جانا ہے تو چھوڑ کر چلے جاؤ
جھوٹی قسمیں کھا کر نا دل میرا دکھاؤ تم


میں تڑپتا رہتا ہوں ان اندھیری راتوں میں
اپنے پیار کی شمع میرے گھر جلاؤ تم

میری آنکھوں میں تیرا چہرا صاف دکھتا ہے
بے وفا قریب آکر نظریں تو ملاؤ تم

Unknown said...

غم زدہ ہے دل میرا مجھکو نا ستاؤ تم
بے وفا مجھے تنہا چھوڑ کر نا جاؤ تم

مینے دل کی دنیا میں تیرا گھر بنایا ہے
زندگی کی راہوں میں ایک بار آؤ تم

چھوڑ کر ہی جانا ہے تو چھوڑ کر چلے جاؤ
جھوٹی قسمیں کھا کر نا دل میرا دکھاؤ تم


میں تڑپتا رہتا ہوں ان اندھیری راتوں میں
اپنے پیار کی شمع میرے گھر جلاؤ تم

میری آنکھوں میں تیرا چہرا صاف دکھتا ہے
بے وفا قریب آکر نظریں تو ملاؤ تم

Unknown said...

बहरे-खफ़ीफ़ फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन
(2122 2212 2122) सालिम रूप मे ग़ज़ल नही हो सकती

Raz Nawadwi said...

2122-1122-1122-22/112

"योगी" योगेश शुक्ला said...

सच कहूं मुझे आज तक ग़ज़ल की ना तो मात्रा गिनने का तरीका समझ आया और ना ही ग़ज़ल की बहर समझ आई

Tara kumari said...

शुक्रिया।

Arhat said...

2222 2222 2222 222 इस बहर का क्या नाम है? कृपया बताएं

Unknown said...

बहुत बहुत शुक्रिया आपने इतनी जानकारी दी bahuबहुत कुछ सीखा हमने इससे.....आभार 🙏

Kausar said...

बाज़ीचा ए अतफाल है दुनियां मेरे आगे की कौन सी बह्र है? कोई सज्जन बताएंगे?

Mukesh singhania said...

212 1212 1212 2 कोई बहर है क्या
यदि है तो इस पर कोई फिल्मी धुन हो तो बताईये

हितेश said...
This comment has been removed by the author.
harshit mishra said...

आग़ाज़
उर्दू शायरी सीखने वालो के लिए विश्व की पहली हिंदी ऐप जो उर्दू ग़ज़ल सीखने वालो को अत्मविश्वासी तथा आत्मनिर्भर बनाती है , इसके माध्यम से आप किसी भी मिसरे की बहर, वज़्न और अरकान आसानी से हिंदी लिपि मे टाइप करके मालूम कर सकते हैं

नए सीखने वाले जिन्हे उर्दू शायरी की मूलभूत जानकारी जैसे तक़्ती (मात्रा गणना) रुक्न या बहर आदि की जानकार न हो वो इस ऐप के "Beginner" सेक्शन के माध्यम से अपने ख्याल को बहर में लिख सकते है |
शायर CHOOSE BEHER सेक्शन के द्वारा अपनी पसंदीदा बहर सेलेक्ट कर के भी ग़ज़ल कह सकते हैं |

एक खास फ़ीचर FIND BEHER भी दिया गया है जिससे नए सीखने वाले अपने कहे हुए मिसरे या किसी भी शायर के मिसरे की बहर अरकान तक़्ती वग़ैरह की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

एक बार जब आप अपनी ग़ज़ल पूरी कर लेते हैं उसके बाद उसे रिव्यु (मज़ीद इस्लाह) के लिए
Review section में भी भेज सकते हैं |

आज ही डाउनलोड करे गूगल प्ले स्टोर से
आग़ाज़ ; पहली शायरी लर्निंग एप्लीकेशन
https://play.google.com/store/apps/details?id=co.wl.aaghaz

और फॉलो करे फेसबुक पर :https://www.facebook.com/aaghazapp
Website: https://aaghaz.in/

Pundit Ayushya Chaturvedi said...

आपने बेहर हजज़ मशतर मकबूज़ का कोई उदाहरण नहीं दिया। मेरे पास एक है सम्मिलित कर लें





आब आब दिल हुआ देख गुल ग़ुलाब का,
खार खार हम रहे जग हुआ गुलाब का

- पंडित आयुष्य चतुर्वेदी

जावेद जहद said...

👍💐

Unknown said...

Aap mujhe contact kariye me aapko sikhaaunga inshaallah free of cost 8094991022 it's my watsupp number please watsupp only don't call

Unknown said...

Likhna bohut aasan hai agar likhne ki chaah ho to

साहित्यकार ज्ञानेश किरतपुरी said...

मफ़-ऊ-ला-त फ़ा-इ-ला-तुन फ़ा-इ-लुन
२२२१ २२२१ २१२२ २१२
मिलने आज वो हमसे मित्र पुराने आए हैं।
वो फिर हमसे नज़दीकियाँ बढ़ाने आए हैं।।
महोदय, जानकारी देने का कष्ट करें। कि क्या यह कोई बहर है?
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी

Unknown said...

अच्छी है ग़ज़ल, फिर इनकार कैसा,
मिलती है ख़बर, फिर इंतजार कैसा



Unknown said...

2212,2212,2212 इस बहर की धुन बताओ ना

Unknown said...

122 122 1222 1222 क्या ये कोई बहर है या नहीं कृपया जवाब दें।। धन्यवाद

Unknown said...

122 122 1222 1222 क्या ये कोई बहर है या नही ं

Unknown said...

नही

Unknown said...

नज्जर,और जिक्र,किया काफिया हो सकते है,और नज्जर और जिक्र में कितनी मात्राएँ हैं ,क्रप्या बताईयेगा🙏

Mukesh singhania said...

2122 1122 1212 22 कोई बह्र है क्या

Amit joshi said...

1222 1222 1222 12 ye koi behar h ????

अनुपिन्द्र सिंह अनूप said...

हाँ रमल
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाए

Be positive and helthy said...

Agar aapko wakai seekhni hai to aap mujhe contact kar sakte hai 8094991022 par hum aapko sikha denge inshallah

Raahul said...

Aap rythem me likhe bas khatam khel

Reetesh Khare said...

22 22 22 22 22
इस बह्र पर कोई फ़िल्मी नग्मे बताइये
शुक्रिया

Unknown said...

Aap muje contect kre m aapko sb sikha dunga

Unknown said...

Aap muje @manish9hwar instagram p sms kro m wha aapko sb sikha dunga

Unknown said...

Aap sabhi muje insta gram @manish9hwar pe sms kro m aapko sb sikha dunga

Unknown said...

Sir aap ne hame wo ilm de deya is k zariye se jo mai pichhle 14 saal se apne ustado se poncha krti thi..

Sahab said...

Jise bahar samajh nahi aayi wo mujhe contact kare main sikhaunga, 9891997786

मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद' said...

बहुत अच्छी जानकारी है। निश्चित रूप से हर गजल लिखने वाले के लिए यह लेख लाभदायक है।

Anonymous said...

Kya do alag alag shabdo ke do laghu see deergh banana uchit h

Shayar faizan taj quraishi said...

Aap me se jisko bhi isme se samjh nhi aa rha hai vo Google par jakar राज़ नवादवी ji ki book gazal ka ka kha ha ra pdf download kar lijiye A to z bade aasan lafzo me sikhayenge

Anonymous said...

Bahre Meer hai iska naam
Vedant

अनुपिन्द्र सिंह अनूप said...

पंजाबी जानने वाले मेरी किताब ग़ज़ल
दा गणित मुझसे मंगवा सकते हैं
इसमे फिल्मी गीतों के आधार पर बहरों में लिखना बताया गया hia

n9813646608

Anonymous said...

आदरणीय सर जी सादर प्रणाम करता हूं जी स्वीकार करें जी 🙏🌹🙏 । बेहद खूबसूरत और बेमिसाल मालूमात है जी । इस अभूतपूर्व जानकारी के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं जी स्वीकार करे

Anonymous said...

कुल 69 बहर होती हैं
लेकिन 18 बहरों का इस्तेमाल ही ज़्यादा देखने को मिलता है

Anonymous said...

जी बेशक है

बहर ऐ क़रीब ( 1222 1222 2122 ) मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.

Rahul Kumar said...

बेहतरीन आर्टिकल के लिए धन्यवाद।

khayaal satpal khayaal said...

MY NEW GHAZAL-

https://youtu.be/mm7ZUOUc-1g