याद आये हैं मुझे यार पुराने कितने
ढल गया दर्द मेरा शेरों के सांचों में तो फिर
खिल गये फूल दरारों में न जाने कितने
एक है फूल , कई ख़ार , हवाएँ कितनीं
इक मुहब्बत है मगर इसके फ़साने कितने
ग़म के गुंबद पे , कलस चमके हैं यादों के कई
दफ़्न हैं देख मेरे दिल में ख़ज़ाने कितने
बात छिड़ती है मुहब्बत की तो उठ जाते हो
याद आते हैं मेरी जान बहाने कितने
वो मुहल्ला, वो गली, और गली का वो मकां
याद आते हैं मुझे बीते ज़माने कितने
सच को सूली पे चढा देते हैं दुनिया वाले
इस ज़माने के हैं दस्तूर पुराने कितने
बात की जब भी उजालों की ,चरागों की “ख़याल”
आ गये लोग मेरे घर को जलाने कितने
.. satpal khayaal..
1 comment:
वाह!! बेहतरीन ग़ज़ल
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