Wednesday, February 12, 2025

शब के पहलू में | अमर दीप सिंह अमर

 




बात शुरू करता हूँ जौन एलिया साहब के शे’र से –

हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राब
यही मुमकिन था इतनी उजलत में
ख़ुदा पे तंज़ कसा है कि जल्दबाज़ी में बनी हुई दुनिया बेहतर कैसे हो सकती है लेकिन दुनिया जैसी भी है ..वो है | शायर अपने अन्दर एक ख़ूबसूरत दुनिया बना के जीता है , यहाँ फ़रेब नहीं है ,सिर्फ़ इश्क़ है ,प्रेम है , ईमान है ,भाईचारा है | परन्तु बाहर दुनिया में सब कुछ इससे उलट है | शायर इस अन्दर और बाहर के दरमियान, देहरी पे खड़ा रहता है और तवाज़ुन बनाने की कोशिश करता है और बाहर जाने के बजाए अन्दर की ओर ज़्यादा मुड़ता है और हमारे प्रिय शायर अमरदीप सिंह अमर कहते हैं –
खींचती रहती है इक चाह मगर फ़र्क ये है
तुझको बाहर की तरफ़ और मिरे अन्दर मुझको
ज़िंदगी के उतार -चढ़ाव में समता बनाए रखने का बेहतरीन फ़लसफ़ा यूं बताता है शायर –
सूरज को देख कर ही तवाज़ुन बनाए रख
रंगत है जिस पे एक उरूज-ओ-ज़वाल की
ये फ़लसफ़ा और शायरी का ये रंग जब भी कैनवास पे आयेगा हमेशा ताज़ा लगेगा ,इसे आप जदीद या रिवायती शायरी के तराज़ू में नहीं तौल सकते और यही रंग है अमरदीप सिंह अमर साहब का | जैसे पंजाब के उम्दा शायर जनाब मुकेश आलम साहब , अमरदीप साहब के बारे में कहते हैं कि उदासी इस बर्तन की तह में बैठी हुई है | सही कहा है उन्होंने , उदासी को पंजाब के शायर, अमरदीप सिंह अमर साहब, कैंठे की तरह पहनते है और ये उदासी कोई आम उदासी नहीं है ये सूफ़ियों का वैराग है जो उनकी शायरी में तसव्वुफ़ का रंग पैदा करता है और अमरदीप साहब का ये शेर इस बात की तस्दीक़ करता है -
अपनी हैरत गंवा चुका हूँ मैं
चाहे जितना करे कमाल कोई
ये रंग मोजूदा दौर की शायरी से लगभग ग़ायब है लेकिन भाजी इस रंग के बादशाह हैं –
ख़त्म हो रूह का सफ़र या रब ,
रूह थकती है आने -जाने में
मैं अदाकार भले अच्छा नहीं हूँ लेकिन
आप मायूस न होंगे कभी पढ़ कर मुझको
मेरा कुछ कहना सूरज के आगे चराग़ जलाने जैसा है | आपको इस शेरी मजमूए की आपके इस शे’र के साथ दिली मुबारकबाद 💐
आप भी उदास हैं
जानकर ख़ुशी हुई
..✍️सतपाल ख़याल

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