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जन्म - 14 Dec 1931 -अमरोहा, उत्तर प्रदेश
निधन - 08 Nov 2002 - कराची, सिंध
हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राब
यही मुमकिन था इतनी उजलत में
जौन एलिया , ग़ालिब के बाद शायद इकलौते शायर हुए जो अन्दर से दार्शनिक भी थे और आप उन्हें वली या औलिया भी कह सकते हैं | ऐसा शायर जो अपनी शायरी जैसा दिखता भी था , अमूमन शायर ,अपनी शायरी से जुदा से ही दिखते हैं | यूं तो उन के कई शे'र मशहूर हुए लेकिन ये शे'र ख़ासा सराहा गया | इस में वो ख़ुदा पर तंज़ करते हुए कहते हैं कि ख़ुदा ने कहा और झट से ,जल्दी से दुनिया पैदा हो गई और यही वज़ह है कि ऐसी बुरी दुनिया वजूद में आई ,अगर ख़ुदा जल्दबाजी न करता तो बेहतर दुनिया बन सकती थी | ये सिर्फ़ तंज़ है और ये तंज़ सिर्फ़ शायर ही कर सकता है |
ये जहाँ 'जौन' इक जहन्नुम है
याँ ख़ुदा भी नहीं है आने का
जौन एलिया
दुनिया से हर शायर जैसा मेरा मानना है ,फ़रार चाहता है जैसे ग़ालिब भी कहते हैं -
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
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और फिर बुद्ध भी इस संसार को दुःख कहते हैं | जिस ने थोड़ी सोच विचार की वो इसी नतीजे पर पहुंचा |
विलियम शेक्सपीयर
भी कहते हैं -"When we are born, we cry that we are come
To this great stage of fools."
(King Lear)
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः
गीता भी यही कहती है कि संसार दुखों का घर है और जो ईश्वर की तरफ़ यात्रा आरंभ करता है वो मुक्त हो सकता है
जौन एलिया भी इसी उहा-पोह में रहे होंगे जब ये शे'र कहा होगा और फिर इसी दुनिया में वो कुछ ऐसी कैफ़ियत से भी गुज़रते हैं -
इतना ख़ाली था अंदरूँ मेरा
कुछ दिनों तो ख़ुदा रहा मुझ में
जौन एलिया
लेखक -सतपाल ख़याल @copyright
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