अगले तरही मुशायरे के लिये ये "मिसरा-ए-तरह" चुना गया है:
"मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है "
बहरे- हज़ज मसम्मन मक़बूज़ ( मुज़ाहिफ़ शक्ल)
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 X4
काफ़िया : बेकरार
रदीफ़ : है
शायर : शहरयार
फ़िल्म उमराव जान की मशहूर ग़ज़ल)
अपना नाम पता और परिचय ज़रूर भेजें और ग़ज़लें satpalg.bhatia@gmail.com या dwij.ghazal@gmail.com पर भेजें और भेजेने से पहले ग़ज़ल को अच्छी तरह जाँच परख लें, ज़ल्दबाजी न करें.
अपके लिए शहरयार की पूरी ग़ज़ल :
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है
ये किस मुकाम पर हयात मुझ को लेके आ गई
न बस ख़ुशी पे है जहाँ न ग़म पे इख़्तियार है
तमाम उम्र का हिसाब माँगती है ज़िन्दगी
ये मेरा दिल कहे तो क्या ये ख़ुद से शर्मसार है
बुला रहा क्या कोई चिलमनों के उस तरफ़
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है
न जिस की शक्ल है कोई न जिस का नाम है कोई
इक ऐसी शै का क्यों हमें अज़ल से इंतज़ार है
इस बहर में और भी खूबसूरत ग़ज़लें हैं जैसे:
चरागो-आफ़ताब गुम बड़ी हसीन रात थी और जवां है रात साकिया, शराब ला शराब ला और निकाह की मशहूर ग़ज़ल
फिज़ा भी है जवां जवां, हवा भी है रवाँ रवाँ सुना रहा है ये समां सुनी सुनी सी दास्ताँ .
पिछले मुशायरे मे 26 शायरों ने एक मिसरा-ए-तरह"कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में" को इस तरह निभाया :
मुनीर अरमान नसीमी
हमारे रहनुमाओं के अजब *अतवार हैं अरमाँ
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में
मोहम्मद वलीउल्लाह वली
सितम कैसा यह करते हो मेरे सरकार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी
दिगम्बर नासवा
समझ पाया नहीं मैं अब तलक तेरे इरादों को
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में
जोगेश्वर गर्ग
सुना मैंने तुम्हारे शह्र की ऐसी रिवायत है
कभी इन्कार चुटकी में , कभी इकरार चुटकी में
विजय धीमान
हमारा दिल निकलता है , हमारी जान जाती है
कभी इन्कार चुटकी में ,कभी इकरार चुटकी में
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
बदलता रहता है हर दम मिज़ाजे-यार चुटकी में ,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
चंद्रभान भारद्वाज
हुआ है प्यार 'भारद्वाज' अब इक खेल गुड़ियों का,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
नवनीत शर्मा
अजब उलझन का ये मौसम कि जानम भी सियासी है
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
पुर्णिमा वर्मन
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
कभी सर्दी ,कभी गर्मी, कभी बौछार चुटकी में
ख़ुर्शीदुल हसन नय्यर
वह शोख़ी याद है जाने तमन्ना तुमसे मिलने की
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
पवनेन्द्र पवन
पहाड़ी मौसमों-सा रँग बदलता है तेरा मन भी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
डी. के मुफ़लिस
किया, जब भी किया उसने, किया इज़हार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
दर्पण शाह ‘दर्शन’
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मरासिम का किया फिर इस तरह इज़हार चुटकी में।
मनु 'बेतख़ल्लुस'
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हज़ारों रंग बदले है निगाहे-यार चुटकी में
योगेश वर्मा स्वप्न
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़माना आ गया ऐसा , करो अब प्यार चुटकी में
कवि कुलवंत सिंह
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
कनखियों से जो देखा तो हुआ फिर प्यार चुटकी में.
गौतम राजरिषि
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
रजनीश सचान
बदल देता है मेरे दिल का वो आकार चुटकी में,
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
अमितोश मिश्रा
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
किये मरघट हसीनों ने , कई घर-बार चुटकी में
अबुल फ़ैज़ अज़्म सहरयावी
अजब पारा सिफ़त है उसको मैं अब तक नहीं समझा
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
जगदीश रावतानी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़रा चुटकी उसे काटी पड़ी दीवार चुटकी में
प्रेम भारद्वाज
बड़ी बेताबियाँ देकर बढ़ाई प्रेम की ज्वाला
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
प्रेमचंद सहजवाला
तुम्हारी इस हसीं आदत का दीवाना हुआ हूँ मैं
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी में
द्विजेन्द्र ‘द्विज’
कभी अँधियार चुटकी में कभी उजियार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
प्रकाश "अर्श":
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हमारे प्यार में लटकी है ये तलवार चुटकी में
सतपाल ‘ख़याल’:
भरोसा क्या करें तुझ पर तेरी फ़ितरत कुछ ऐसी है
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
सियासी लोग हैं इनकी ‘ख़याल’ अपनी सियासत है
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
Monday, April 6, 2009
Friday, April 3, 2009
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे-अंतिम भाग

मिसरा-ए-तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर कही गई शेष ग़ज़लें हम पेश कर रहे हैं. बहुत ही बढ़िया आयोजन रहा. ये सारा कुछ श्री द्विज जी के आशीर्वाद से हुआ और आप सभी शायरों के सहयोग से जिन्होंने इस मिसरे पर इतनी अच्छी ग़ज़लें कही. मै चाहता हूँ कि तमाम पाठक थोड़ा समय देकर इतमिनान से सारी ग़ज़लें पढ़े और पसंदीदा अशआर पर दाद ज़रूर दें.ये तरही मुशायरा "नसीम भरतपुरी" को आज की ग़ज़ल की तरफ़ से श्रदाँजली है.
1.पवनेन्द्र पवन
उछल कर आसमाँ तक जब गिरा बाज़ार चुटकी में
सड़क पर आ गए कितने ही साहूकार चुटकी में
जो कहते थे नहीं होता कभी है प्यार चुटकी में
चुरा कर ले गये दिल करके आँखें चार चुटकी में
कभी है डूब जाती नाव भी मँझधार चुटकी में
घड़ा कच्चा लगा जाता कभी है पार चुटकी में
पहाड़ी मौसमों-सा रँग बदलता है तेरा मन भी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
नहीं कोई करिश्मा कर दिखाती है यहाँ बुल्लेट
बदल जाती है बैलेट से मगर सरकार चुटकी में
रहा बरसों पड़ा बीमार बिन तीमारदारी के
मरा तो बन के वारिस पहुँचे रिश्तेदार चुटकी में
यहाँ दो जून रोटी भी जुटाना खीर टेढ़ी है
मगर उपलब्ध हैं बन्दूक बम तलवार चुटकी में
बड़ा अर्सा है गहराती मनों में उग रही खाई
खड़ी होती नहीं आँगन में है दीवार चुटकी में
बना वो ही सिकन्दर वो ही जीता है लड़ाई में
झपट कर जिसने कर डाला है पहला वार चुटकी में
मुकम्मल इनको करने के लिए इक उम्र छोटी है
नहीं बनते ग़ज़ल के हैं ‘पवन’ अशआर चुटकी में.

2.डी. के मुफ़लिस
उठो,आगे बढो कर लो समुन्दर पार चुटकी में
वगरना ग़र्क़ कर देगा तुम्हें मँझदार चुटकी में
किया, जब भी किया उसने, किया इज़हार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
अगर होता रहा यूँ फ़ैसला हर बार चुटकी में
तो बनता काम भी हो जाएगा बेकार चुटकी में
रहा मुझ पर कुछ ऐसा ही असर उसकी मुहब्बत का
इधर दिल में ख़याल आया, उधर दीदार चुटकी में
बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सर
फिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी में
ख़ुदा की ज़ात पर जिसको हमेशा ही भरोसा है
उसी का हो गया बेडा भंवर से पार चुटकी में
परख ली जब वसीयत गौर से ,बीमार बूढे की
टपक कर आ गये जाने कई हक़दार चुटकी में
विदेशों की कमाई से मकाँ अपने सजाने को
कई लोगों ने गिरवी रख दिये घर-बार चुटकी में
किया वो मोजिज़ा नादिर नफस-दमसाज़ ईसा ने
मुबारक हो गये थे अनगिनत बीमार चुटकी में
खयालो-सोच की ज़द में तेरा इक नाम क्या आया
मुकम्मिल हो गये मेरे कई अश`आर चुटकी में
सफलता के लिए 'मुफ़लिस' कड़ी मेहनत ज़रूरी है
नहीं होता यूँ ही सपना कोई साकार चुटकी में

3.दर्पण शाह ‘दर्शन’
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मरासिम का किया फिर इस तरह इज़हार चुटकी में।
वही मौसम, वही मंज़र,वही मैकश, वही साकी,
हुई है फिर मेरी यारों, कसम बेकार चुटकी में।
कभी वो प्याज़ के आँसू, कहीं पर अल्पमत होना,
बदलती है हमारे देश की सरकार चुटकी में।
मेरा ये देश 'वन्दे मातरम्' के गीत से जागा,
उठा गाण्डीव झटके से, उठी तलवार चुटकी में।
बहुत सी लज्ज़तें ऐसीं, भुलाई जो नहीं जाती,
उतरता है ख़ुमारे-मय, ख़ुमारे-यार चुटकी में।
तेरी इस रुह की ये आग, सदियों तक नहीं बुझती,
लगी है जुस्तजू-ए-लौ मगर, हर बार चुटकी में।
मुझे जो आरज़ू है मौत की, ता-ज़िन्दगी-सी है,
मगर ये मौत देती है मुझे दीदार चुटकी में।
कहाँ है, कोई भी इस शहर में, अंजान सी बातें ?
बिके हैं रोज़ ही सारे, यहाँ अख़बार चुटकी में।
लगे है सरहदें 'दर्शन', घरों के बीच की दूरी,
मिला तू हाथ हाथों से, गिरा दीवार चुटकी में।

4.मनु 'बेतख़ल्लुस'
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हज़ारों रंग बदले है निगाहे-यार चुटकी में
मैं रूठा सौ दफ़ा लेकिन मना इक बार चुटकी में
ये क्या जादू किया है आपने सरकार चुटकी में
बड़े फ़रमा गए, यूँ देखिये तस्वीरे-जाना को,
ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में
कहो फिर सब्र का दामन कोई थामे भला कैसे,
अगर ख़्वाबों में हो जाए विसाले-यार चुटकी में
ग़ज़ल का रंग फीका हो चला है धुन बदल अपनी
तराने छेड़ ख़ुशबू के, भुलाकर ख़ार चुटकी में
न होना हो तो ये ता-उम्र भी होता नहीं यारो
मगर होना हो तो होता है ऐसे प्यार चुटकी में
वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन
वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में
जो मेरे ज़हन में रहता था गुमगश्ता किताबों-सा
मुझे पढ़कर हुआ वो सुबह का अखबार चुटकी
कभी बरसों बरस दो काफ़िये तक जुड़ नहीं पाते
कभी होने को होते हैं कई अश'आर चुटकी में

5.योगेश वर्मा स्वप्न
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़माना आ गया ऐसा , करो अब प्यार चुटकी में
हुई जब बात फ़िल्मों की, दिखाने की तो बेगम-सा
हुई तैयार चुटकी में, किया सिंगार चुटकी में
जो आती बेलनों के संग देखीं , पत्नियाँ अपनी
उठे मयख़्वार चुटकी में, भगे सब यार चुटकी में
है उनकी आँख का जलवा , या साँसों का है ये जादू
कि चंगे हो गए देखो सभी बीमार चुटकी में
ग़ज़ल कहते न थे कल तक न कोई नज़्म लिखते थे
बनाया ब्लॉग चुटकी में, बने फ़नकार चुटकी में
असर है टिप्पणी का हम वगरना थे कहाँ काबिल
कलम ली हाथ चुटकी में , ग़ज़ल तैयार चुटकी में

6.कवि कुलवंत सिंह
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
कनखियों से जो देखा तो हुआ फिर प्यार चुटकी में.
कहाँ खोजेंगे मतलब आप भी माडर्न पेंटिंग का,
बना देते हैं आड़े तिरछे वो आकार चुटकी में ।
कभी भी जिंदगी में तुम न फिर इनका यकीं करना,
सियासत में बदलते हैं सभी किरदार चुटकी में ।
अहं में भर के जिसने भी दुखाया दिल है अपनों का,
बिखरते देखे हैं ऐसे कई परिवार चुटकी में ।
दुखों के भार से है दब गया इंसान हे भगवन !
करो भक्तों का अब तो आप ही उद्धार चुटकी में ।
हुआ है आदमी इस दौर का अब बेरहम देखो,
जो पाले, नोचता उसको ही बन ख़ूँखार चुटकी में ।
बढ़े हैं पाप, अत्याचार इस दुनिया में अब कितने,
हे शिव ! अब आँख खोलो नष्ट हो संसार चुटकी में ।

7.गौतम राजरिषि
निगाहों से जरा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी, गिरे सरकार चुटकी में
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से,
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
झटककर ज़ुल्फ़ को अपनी, कभी कर के नज़र नीची
सरे-रस्ता करे वो हुस्न का व्योपार चुटकी में
नहीं दरकार है मुझको, करूँ क्यों सैर दुनिया की
तेरे पहलु में देखूँ जब, दिशाएँ चार चुटकी में
कई रातें जो जागूँ मैं तो मिसरा एक जुड़ता है
उधर झपके पलक उनकी, बने अशआर चुटकी में
हुआ अब इश्क ये आसान बस इतना समझ लीजे
कोई हो आग का दरिया, वो होवे पार चुटकी में.

8.रजनीश सचान
बदल देता है मेरे दिल का वो आकार चुटकी में,
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
न उकसाओ इसे, आवाम की ताक़त न यूँ परखो,
उखड़ जाते हैं महलों के सभी आधार चुटकी में
ख़ुदा ! तेरे जहाँ में कुछ भी तो क़ायम नहीं रहता ,
कभी है जीत चुटकी में कभी है हार चुटकी में
ख़ुदा से भी ज़ियादा ख़ौफ़ इनका आजकल सबको ,
बना सकते हैं खलनायक तुम्हें अख़बार चुटकी में
मैं माँ की सब दुआएँ ओढ़ के निकला था दुनिया में ,
इरादे ख़ुद-ब-ख़ुद होते गये साकार चुटकी में
मिला हमदम न जिसको उम्र भर, उसकी वसीयत को ,
कुकुरमुत्ते से उग आते हैं दावेदार चुटकी में
सियासत की अँगीठी में धरम के नाम पे जलते,
कहीं दस्तार चुटकी में कहीं ज़ुन्नार चुटकी में
शिकायत क्या कि बदला है फक़त इक फ़ैसला तुमने,
बदल जाते हैं लोगों के यहाँ किरदार चुटकी में
है कितनी कश्मकश देखो,के कितनी हाय-तौबा है,
यहीं पर छूट जाना है ये सब संसार चुटकी में
जो इतनी सरहदें धरती के सीने पर नुमाया हैं,
न थम जाए कहीं इंसान की रफ़्तार चुटकी में
ग़ज़ल ये नीम सी मेरी सज़ा ले तू जो होठों पे ,
शहद हो जाएँगे मेरे सभी अश’आर चुटकी में

9.अमितोश मिश्रा
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
किये मरघट हसीनों ने , कई घर-बार चुटकी में
उठाये थे कभी मैंने , जो उसके नाज़ हँस-हँस के
मिलेगा अब कहाँ उसको , भी ऐसा यार चुटकी में
ज़माने ने लगाये हैं, हमारे इश्क पर पहरे
न जाने कब मुझे होगा, तेरा दीदार चुटकी में
सताया करते हैं अक्सर जो मज़लूमों ग़रीबों को
वही खोले हुये बैठे , यहाँ दरबार चुटकी में

10.अबुल फ़ैज़ अज़्म सहरयावी
करम हो जाए जो मुझ पर मेरे दिलदार चुटकी में
तो फिर हो जाएगा मेरा भी बेड़ा पार चुटकी में
पस-ए पर्दा भी होता है कभी दीदार चुटकी में
लगावट भी वह रखता है कभी तकरार चुटकी में
मुहब्बत की हदों को फाँद जाता है वो जब चाहे
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में
सियासत की अभी बाज़ीगरी आई नहीं मुझको
वगरना मैं बदल देता तेरी सरकार चुटकी में
मुझे ई मेल भी करना नहीं आता मेरे हमदम
तो मैं फिर किस तरह पहुँचूँ समुन्दर पार चुटकी में
तकब्बुर मालो दौलत पर कभी दिल में नहीं लाते
तवंगर को बना देता है वह नादार चुटकी में
कोई क़ूवत को उसकी जान ले यह कैसे मुमकिन है
बना देता है मुफ़लिस को भी जो ज़रदार चुटकी में
अजब -सी कशमकश में ख़ुद को पाया उस घड़ी मैंने
मुहब्बत का जो उसने कर दिया इज़हार चुटकी में
वह तोता चश्म है उससे सदा बचकर ही रहना तुम
निगाहें फेर लेता है वह मेरे यार चुटकी में
अजब पारा सिफ़त है उसको मैं अब तक नहीं समझा
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मईशत का अजब बोहरान है अक़साए आलम में
हज़ारों लोग उस ने कर दिए बेकार चुटकी में
मेरी औक़ात क्या है यह बता देता है वह अकसर
निगाहों से झटक देता है वो हर बार चुटकी मेँ
हद-ए-उलफ़त की अकसर फ़िक्र ही होती नहीं उसको
झपकते ही पलक है अज़्म वह उस पार चुटकी में

11.जगदीश रावतानी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़रा चुटकी उसे काटी पड़ी दीवार चुटकी में
तुम्हारी सोच का अंजाम है अच्छा बुरा होना
तुम्हारी सोच मैं ढलता है हर किरदार चुटकी में
मुझे तो एक ही सुन्दर सा तोहफा चाहिए था बस
मेरे क़दमों में ले आया है वो बाज़ार चुटकी में
ज़माने में किसी से भी कभी कड़वा ही क्यों बोलें
किसी को ख़ामख़्वाह क्यों हम करें बेज़ार चुटकी में
कली थी शोख़ थी चंचल थी नाज़ुक गुलबदन यारो
मुहब्बत माँगने पर वो हुई तलवार चुटकी में
उन्हें कह दो सरे-बाज़ार यूँ घूमें न बेपर्दा
शरारत कर न बैठे फिर कोई दिलदार चुटकी में
ग़ज़ल कहने में लगता वक़्त है दिखता है बस आसाँ
कभी होते न ग़ालिब-से युँ ही तैयार चुटकी में
ग़ज़ल कहना शुरू ही था किया ‘जगदीश’ महफ़िल में
दुआ देने लगे छोटे बड़े फ़नकार चुटकी में

12.प्रेम भारद्वाज
बिगड़ता और बनता है यहाँ संसार चुटकी में
कभी तो ख़ार चुटकी में गले का हार चुटकी में
जुड़ें टूटें ख़ुशामद में कई सुर-तार चुटकी में
अभी है राग दीपक तो अभी मल्हार चुटकी में
समझ दुनिया का आए ख़ाक़ कारोबार चुटकी में
बदल जाए न जाने कब कहाँ व्यवहार चुटकी में
हिकारत की जड़ें तो जम चुकीं गहरे में होती हैं
भले बाहर से लगता है हुआ तकरार चुटकी में
बना डाले यहाँ इक दूसरे की जान के दुश्मन
सियासत की ज़रूरत ने हैं पक्के यार चुटकी में
यक़ीनन ख़ास ही कोई शराफ़त का मुख़ालिफ़ था
हुई नीलाम वो जैसे सरे- बाज़ार चुटकी में
सफल इन्सान ही होगा मियाँ उस्ताद गिरगिट का
कभी धुँधला, कभी उजला, कहीं रँगदार चुटकी में
नई तख़लीक़ होनी थी यहाँ जिसके भरोसे पर
वही औज़ार उसका हो गया हथियार चुटकी में
तवक़्क़ो तो है भक्तों से चढ़ाएँ झोलियाँ भर कर
बड़ी तक़लीफ़ से बाबा करें प्रतिकार चुटकी में
किसी को बुद्ध होने के लिए इक उम्र लगती है
नहीं है छूटता यूँ ही कभी घर-बार चुटकी में
मुसल्सल इक तरद्दुद है कहानी ज़िन्दगानी की
कभी होता नहीं देखा ये बेड़ा पार चुटकी में
गया योद्धा, मरा हाथी शिनाख़त जब नहीं होती
महाभारत में बनती जीत भी है हार चुटकी में
ख़बरची पर भरोसा एहतियातन हो ज़माने का
हवा का रुख़ बदल देता है जब अख़बार चुटकी में
ज़बाँ तो बात को कहने की हिम्मत कर नहीं पाई
नयन नीचे हुए बस हो गया इज़हार चुटकी में
बड़ी बेताबियाँ देकर बढ़ाई प्रेम की ज्वाला
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे

13.प्रेमचंद सहजवाला
दिखा दो आज जलवा बख़्श दो दीदार चुटकी में
वगरना हैं शहादत के मेरी आसार चुटकी में
यहाँ मिल जाएँगे लाखों हुए सिक्के जो अंटी में
बना लेंगे जहाँ भी जाएँगे हम यार चुटकी में
अगरचे कैस से नाता है जाने कितने जन्मों से
मोहब्बत को बना लेंगे ये सब बाज़ार चुटकी में
मुहब्बत के फ़रिश्ते हैं यहाँ कितने बताओ तो
सुना दें इश्क पर जो सैंकड़ों अशआर चुटकी में
बहुत अच्छी है बीबी खुश रहा करता हूँ मैं अक्सर
बना लेती है वो 'चौमिन' मसालेदार चुटकी में
लगी जब नौकरी तो खुश हुआ बे-इन्तहा मजनू
किया लैला ने फ़ौरन प्यार का इज़हार चुटकी में
बहुत ही ख़ूब था नक्शा हसद-क़ाबिल इमारत थी
इमारत गिर गई तो गुम था ठेकेदार चुटकी में
बहुत घूमा किए खेला किए यूँ तो शहर भर में
जब आए इम्तिहाँ के दिन पड़े बीमार चुटकी में
मुक़दमा जीतने वाला था मैं ऐलान बाकी था
अदालत में उसी दिन बम फटा था यार चुटकी में
रहा करता हूँ ख़ुश अक्सर अगरचे जिंदगी में मैं
कभी करता है आँखें नम ख़याले-यार चुटकी में
तुम्हारी इस हसीं आदत का दीवाना हुआ हूँ मैं
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी में

14.द्विजेन्द्र ‘द्विज’
मिटा दे तू मेरे खेतों से खरपतवार चुटकी में
तो फ़स्लें मेरे सपनों की भी हों तैयार चुटकी में
हवा के रुख़ से वो भी हो गये लाचार चुटकी में
हवा का रुख़ बदल देते थे जो अख़बार चुटकी में
कभी अँधियार चुटकी में कभी उजियार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
भले मिल जाएगा हर चीज़ का बाज़ार चुटकी में
नहीं बिकता कभी लेकिन कोई ख़ुद्दार चुटकी में
बहुत थे वलवले दिल के मगर अब सामने उनके
उड़न-छू हो गई है ताक़त-ए-गुफ़्तार चुटकी में
अजब तक़रीर की है रहनुमा ने अम्न पर यारो !
निकल आए हैं चाकू तीर और तलवार चुटकी में
तरीक़ा, क़ायदा, क़ानून हैं अल्फ़ाज़ अब ऐसे
उड़ाते हैं जिन्हें कुछ आज के अवतार चुटकी में
कभी ख़ामोश रहकर कट रहे रेवड़ भी बोलेंगे
कभी ख़ामोश होंगे ख़ौफ़ के दरबार चुटकी में
वो जिनकी उम्र सारी कट गई ख़्वाबों की जन्न्त में
हक़ीक़त से कहाँ होंगे भला दो-चार चुटकी में
नतीजा यह बड़ी गहरी किसी साज़िश का होता है
नहीं हिलते किसी घर के दरो-दीवार चुटकी में
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
परिन्दे और तसव्वुर के लिए सरहद नहीं होती
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में.
बस इतना ही कहा था शहर का मौसम नहीं अच्छा
सज़ा का हो गया सच कह के ‘द्विज’ हक़दार चुटकी में

15.प्रकाश "अर्श"
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हमारे प्यार में लटकी है ये तलवार चुटकी में
अदाएँ उसकी भी देखो मिरा दिलदार है फिर भी
चलाये तीर आँखों से जिगर के पार चुटकी में
मसलते है जो फूलों को कली की अहमियत क्या हो
बना देंगे मगर हम भी नया गुलज़ार चुटकी में
हमारे प्यार पे पहरा लगाया है ज़माने ने
दिखा देंगे सभी को हम दीवाने यार चुटकी में
सियासी खेल में यारो नया कुछ भी नहीं होता
बदलते हों खिलाड़ी दल भले हर बार चुटकी में
ज़रूर आज 'अर्श' सूरज भी कहीं निकला है पच्छिम से
मेरे महबूब ने भी कर लिया इज़हार चुटकी में

16.सतपाल ‘ख़याल’
तेरे छूने से सहरा हो गया गुलज़ार चुटकी में
ख़ुशी से झूम उट्ठा ये दिले-बीमार चुटकी में
भरोसा क्या करें तुझ पर तेरी फ़ितरत कुछ ऐसी है
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मुसीबत में मदद माँगी जो अपनों से तो सब के सब
रफ़ू-चक्कर हुए पकड़ी ग़ज़ब रफ़्तार चुटकी में
जो बदक़िस्मत थे उनकी कश्तियाँ साहिल पे डूबी थीं
जो किस्मत के धनी थे हो गये वो पार चुटकी में
है सिक्कों की खनक में बात कुछ ऐसी कि इसने तो
किया रिश्तों को कैसे देखिये बाज़ार चुटकी में
हमारा ज़िक्र जब छेड़ा किसी ने उसकी महफ़िल में
हुए हैं सुर्ख़ तब उसके लबो-रुख़सार चुटकी में
मिले गैरों से हँस-हँस कर तू मेरा जी जलाने को
मज़ा इस बात का लेते हैं मेरे यार चुटकी में
जुआख़ाना है इक बाज़ार सट्टेबाज़ है दुनिया
किसी की जीत चुटकी में किसी की हार चुटकी में
मेरे मौला , मेरे साईं, मेरे दाता मेरी सुन ले
ग़रीबों दर्द-मंदों का तू कर उद्वार चुटकी में
‘नसीम’ उनका था नाम उस्ताद मिर्ज़ा दाग़ थे उनके
उन्होंने ही कहे चुटकी पे थे अशआर चुटकी में
सियासी लोग हैं इनकी ‘ख़याल’ अपनी सियासत है
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
नोट: अगर किसी शायर की ग़ज़ल रह गई हो तो दुबारा भेज सकते हैं.उसे इसी पोस्ट मे शामिल कर लिया जायेगा. अगला मिसरा-ए-तरह ज़ल्द दिया जायेगा. आज की ग़ज़ल पढ़ते रहें.
Sunday, March 29, 2009
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में-भाग एक
नसीम भरतपु्री जो कि मिर्ज़ा दा़ग के प्रिय शाग्रिद थे उन्हीं की ग़ज़ल से ये मिसरा लिया था.उस ग़ज़ल कुछ अशआर पेश हैं:
नहीं करते उन्हें कुछ देर लगती है न हाँ करते
कभी इन्का़र चुटकी मे कभी इक़रार चुटकी मे
लिया था इस ज़मीं मे इम्तिहाने-तबअ यारों ने
किये मौजूं ये हमने ए नसीम अशआर चुटकी में.
इन तरही ग़ज़लों का पहला भाग पेश कर रहे हैं दूसरा जल्द ही प्रकाशित करेंगे.पेश है 10 तरही ग़ज़लें :
मिसरा -ए-तरह : "कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में"
सबसे पहले पेश है ख़ुर्शीदुल हसन नय्यर(सऊदी अरब)की ग़ज़ल :
किए हैं आज मौज़ूँ मैंने कुछ अशआर चुटकी में
दिली जज़बात का होने लगा इज़हार चुटकी में
कभी बरसों गुज़र जाता है देखे प्यार का मौसम
कभी आ जाती है फ़स्ले-बहारे-प्यार चुटकी में
मसीहा बन के तुम आ जाओ जो ख़्वाबों की दुनिया में
*शफ़ा पा जाएगा मेरा दिले-बीमार चुटकी में
वह शोख़ी याद है जाने तमन्ना तुमसे मिलने की
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
किया है *किश्ते दिल की *आबयारी अश्क से बरसों
नहीं होता है कोई भी चमन गुलज़ार चुटकी में
नहीं है साथ कोई मुफलिसी में पर यकीं जानो
जो माल आया तो बन जाएँगे कितने यार चुटकी में
तुम्हारी बेरुख़ी पर हो गया बेचैन पल भर में
मगर फिर गुफ़्तगू से हो गया *सरशार चुटकी में
कहीं टूटे न यह दिल आइना है यह मोहब्बत का
सो उसकी बात का नय्यर किया इक़रार चुटकी में
*शफ़ा पा जाएगा-अच्छा हो जाएगा,*किश्ते दिल-दिल की खेती,आबयारी-सिंचाई,सरशार-खुश

अब पेश है पुर्णिमा वर्मन की ये ग़ज़ल:
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
कभी सर्दी ,कभी गर्मी, कभी बौछार चुटकी में
ख़ुदाया कौन-से बाटों से मुझको तौलता है तू
कभी तोला, कभी माशा, कभी संसार चुटकी में
कभी ऊपर ,कभी नीचे ,कभी गोते लगाता सा
अजब बाज़ार के हालात हैं लाचार चुटकी में
ख़बर इतनी न थी संगींन अपने होश उड़ जाते
लगाई आग ठंडा हो गया अख़बार चुटकी में
न चूड़ी है, न कंगन है, न पायल है ,न हैं घुँघरू
मगर बजती रही फिर भी कोई झनकार चुटकी में

मेरे प्रिय मित्र नवनीत शर्मा की ये ग़ज़ल:
बदल दी चोट खाए बाज़ुओं ने धार चुटकी में
छिना था मेरे हाथों से जहाँ पतवार चुटकी में
उन्हें तुमने कहा था एक दिन बेकार चुटकी में
चढ़े आते हैं टी.वी. पे जो अब फ़नकार चुटकी में
जगाई याद की तूने अजब झंकार चुटकी में
लो मेरे दिल के फिर से बढ़ गए आज़ार चुटकी में
मोहब्बत, चैन या एतमाद की मंजिल नहीं मुश्किल
मेरे कदमों को तू बख़्शे अगर रफ़्तार् चुटकी में
न माथे पर शिकन कोई, न दिल में हूक, हैरत है
यही हैं लोग क्या, जिनका छिना घर-बार चुटकी में
यह दुनिया हाट हो जैसे, है बिकवाली ज़रूरत की
कि सर पर से हथेली ले गई दस्तार चुटकी में
अजब उलझन का ये मौसम कि जानम भी सियासी है
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
सुनो, जागो, उठो, देखो कि बरसों बाद मौका है
अभी तुमको गिराने हैं कई सरदार चुटकी में
'नहीं' कहना हुनर ऐसा जिसे हम सीख न पाए
जो हमसे खाल भी माँगी, कहा, 'सरकार! चुटकी में'
अकेले जूझना है जीस्त नदिया, मौत सागर से
यहाँ कोई नहीं ले जाए जो उस पार चुटकी में
है बहरो-वज़्न कैसा ये तो द्विज उस्ताद ही जाने
कहा सतपाल ने तो कह दिए अश्आर चुटकी में

चंद्रभान भारद्वाज की ये ग़ज़ल :
सुलझ जाते हैं उलझे प्रश्न कितनी बार चुटकी में;
सफलता पर नहीं मिलती किसी को यार चुटकी में।
कभी होता नहीं तो ज़िन्दगी भर तक नहीं होता,
कभी होता किसी की बात का एतबार चुटकी में।
कई मझधार में डूबे, कई डूबे किनारे पर,
हमारी नाव पर उसने लगाई पार चुटकी में।
उठी टेढ़ी नज़र तो छा गई माहौल में चुप्पी,
मधुर मुसकान से महफिल हुई गुलज़ार चुटकी में।
पड़ा इक इस किनारे पर, पड़ा इक उस किनारे पर,
अचानक जोड़ जाता वक्त टूटे तार चुटकी में।
करें भी तो करें कैसे भरोसा दोमुहों पर हम,
कभी तो प्यार चुटकी में, कभी तकरार चुटकी में।
हुआ है प्यार 'भारद्वाज' अब इक खेल गुड़ियों का,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे

डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी की ग़ज़ल
बदलता रहता है हर दम मिज़ाजे-यार चुटकी में ,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
कहीं ऐसा न हो हो जाए वह बेज़ार चुटकी में
तुम उस से कर रहे हो दिल्लगी बेकार चुटकी में
दिले नादां ठहर, अच्छी नहीं यह तेरी बेताबी
नहीं होती है राह-ए-वस्ल यूँ हमवार चुटकी में
अगर चशमे -इनायत हो गई उसकी तो दम भर में
वह रख देगा बदल कर तेरा हाल-ए-ज़ार चुटकी में
अगर मर्ज़ी नहीं उसकी तो तुम कुछ कर नहीं सकते
अगर चाहे तो हो जाएगा बेड़ा पार चुटकी में
बज़ाहिर नर्म दिल है ,वो कभी ऐसा भी होता है
वो हो जाता है अकसर बर-सरे पैकार चुटकी में
कभी भूले से भी करना न तुम उसकी दिल आज़ारी
बदल जाती है उसकी शोख़ी -ए -गुफ़्तार चुटकी में
सँभल कर सब्र का तुम लेना उसके इम्तिहाँ वरना
पलट कर वो कहीं कर दे न तुम पर वार चुटकी में
हमेशा याद रखना वो बहुत हस्सास है 'बर्क़ी'
अगर ख़ुश है तो हो जाएगा वो तैयार चुटकी में

मेरे प्रिय मित्र विजय धीमान(हमीरपुर से):
ग़ज़ल
जो आँखें बंद कर लो तो मिटे संसार चुटकी में
जो आँखे खोल कर देखो तो सब साकार चुटकी में
कभी है प्यार चुटकी में , कभी इनकार चुटकी में
हमारी जीत चुटकी में, हमारी हार चुटकी में
हमारा दिल निकलता है , हमारी जान जाती है
कभी इन्कार चुटकी में ,कभी इकरार चुटकी में
चली जब पेट पर छुरियाँ हुआ मालूम तब हमको
कि साज़िश थी बड़ी ग़हरी घटी जो यार चुटकी में
तुम्हारी जिन अदाओं पर हमारी ज़िंदगी कुरबां
मरे है उन अदाओं पर सकल संसार चुटकी में
जो मीठे बोल हों साथी तो रस घुलता है आलम में
अखरते बोल पर भैया तने तलवार चुटकी में
कभी हँसना, कभी रोना ,कभी पाना, कभी खोना
ये जीवन एक उलझन है न सुलझे यार चुटकी में

जोगेश्वर गर्ग(राजस्थान से)
ग़ज़ल
बदलता है भला ऐसे कभी व्यवहार चुटकी में
लड़ो भी एक पल में और कर लो प्यार चुटकी में
दिलों का मेल होना और वह भी ज़िंदगी भर का
नहीं होता कभी इतना बड़ा व्यापार चुटकी में
सुना मैंने तुम्हारे शह्र की ऐसी रिवायत है
कभी इन्कार चुटकी में , कभी इकरार चुटकी में
बदलने का अगर है शौक़ तो बदलो ज़रा मुझको
बदलते हो वतन मे जिस तरह सरकार चुटकी में
कहो नाराज़ क्यों हो पूछता है आज "जोगेश्वर"
उसे भी तो किसी दिन तुम करो स्वीकार चुटकी में

दिगम्बर नासवा की ग़ज़ल
चले अब छोड़ कर तेरा ये हम संसार चुटकी में
कि जोगी बन गए हम छोड़ कर घर बार चुटकी में
समझ पाया नहीं मैं अब तलक तेरे इरादों को
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में
तुम्हारे प्यार के जादू ने कैसा खेल खेला है
अभी आया था मंगल, आ गया इतवार चुटकी में
वो जिसके हाथ में इन्साफ़ के मंदिर की चाबी है
वही कातिल है बैठा है जो बन अवतार चुटकी में
ये घर का राज़ है तुम दफ़्न सीने मे करो इसको
नहीं तो टूट जायेंगे दरो-दीवार चुटकी में
किसी बादल के टुकड़े पर लगे हैं पंख खुशियों के
कहीं बरसेगा बन के गीत की झंकार चुटकी में

ग़ज़ल : मोहम्मद वलीउल्लाह वली
सितम कैसा यह करते हो मेरे सरकार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी
हुई जिस दम किसी से मेरी आँखें चार चुटकी में
ख़िज़ाँ दीदह मेरा दिल हो गया गुलज़ार चुटकी में
न जाने क्या अजब अंदाज़ है उशवा तराज़ों का
कभी तो वाद-ए-उलफ़त कभी तकरार चुटकी में
तुम्हारे इश्क़ ने मुझको बना डाला है सौदाई
तुम्हीं करते हो यूँ मुझको ज़लीलो- ख़्वार चुटकी में
मेरे हाथों में है बस इक इसी उम्मीद का दामन
बदल देती है क़िस्मत इक निगाह-ए-यार चुटकी में
जनाबे- हज़रते -वाइज़ हक़ीक़त से हैं नावाक़िफ
मैं दीवाना हूँ मैं जाउँगा सूए-दार चुटकी में
*शेफाअत जिस को हो उनको मुयस्सर रोज़-ए-महशर में
वली बन जाएगा जन्नत का वह हक़दार चुटकी में
उशवा तराज़ों- नाज़ नख़रा करने वाले,शेफाअत-सिफारिश,पैरवी

ग़ज़ल :मुनीर अरमान नसीमी(उडीसा)
पिलाया उसने जब से शर्बत-ए- दीदार चुटकी में
नुमायाँ है तभी से इश्क़ के आसार चुटकी में
*ख़िज़ाँ- दीदह था इस से पहले मेरा गुलशने हस्ती
मेरा बाग़-ए-तमन्ना हो गया गुलज़ार चुटकी में
किया अर्ज़े तमन्ना मैंने जब वह हँस के यह बोला
नहीं करते किसी से इश्क़ का इज़हार चुटकी में
तुम्हारी इक निगाहे नाज़ के सदक़े मैं ऐ जानाँ !
हुए हैं *ख़म न जाने कितने ही सरदार चुटकी में
गया वह दौर जब फ़रहाद चट्टानों से लड़ ता था
मगर अब चाहते हैं सब यह पा लें प्यार चुटकी में
हमारे रहनुमाओं के अजब *अतवार हैं अरमाँ
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में
अतवार-तौर-तरीके ,ख़िज़ाँ दीदह-मुर्झाए हुए, ख़म-झुकना
नहीं करते उन्हें कुछ देर लगती है न हाँ करते
कभी इन्का़र चुटकी मे कभी इक़रार चुटकी मे
लिया था इस ज़मीं मे इम्तिहाने-तबअ यारों ने
किये मौजूं ये हमने ए नसीम अशआर चुटकी में.
इन तरही ग़ज़लों का पहला भाग पेश कर रहे हैं दूसरा जल्द ही प्रकाशित करेंगे.पेश है 10 तरही ग़ज़लें :
मिसरा -ए-तरह : "कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में"
सबसे पहले पेश है ख़ुर्शीदुल हसन नय्यर(सऊदी अरब)की ग़ज़ल :
किए हैं आज मौज़ूँ मैंने कुछ अशआर चुटकी में
दिली जज़बात का होने लगा इज़हार चुटकी में
कभी बरसों गुज़र जाता है देखे प्यार का मौसम
कभी आ जाती है फ़स्ले-बहारे-प्यार चुटकी में
मसीहा बन के तुम आ जाओ जो ख़्वाबों की दुनिया में
*शफ़ा पा जाएगा मेरा दिले-बीमार चुटकी में
वह शोख़ी याद है जाने तमन्ना तुमसे मिलने की
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
किया है *किश्ते दिल की *आबयारी अश्क से बरसों
नहीं होता है कोई भी चमन गुलज़ार चुटकी में
नहीं है साथ कोई मुफलिसी में पर यकीं जानो
जो माल आया तो बन जाएँगे कितने यार चुटकी में
तुम्हारी बेरुख़ी पर हो गया बेचैन पल भर में
मगर फिर गुफ़्तगू से हो गया *सरशार चुटकी में
कहीं टूटे न यह दिल आइना है यह मोहब्बत का
सो उसकी बात का नय्यर किया इक़रार चुटकी में
*शफ़ा पा जाएगा-अच्छा हो जाएगा,*किश्ते दिल-दिल की खेती,आबयारी-सिंचाई,सरशार-खुश

अब पेश है पुर्णिमा वर्मन की ये ग़ज़ल:
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
कभी सर्दी ,कभी गर्मी, कभी बौछार चुटकी में
ख़ुदाया कौन-से बाटों से मुझको तौलता है तू
कभी तोला, कभी माशा, कभी संसार चुटकी में
कभी ऊपर ,कभी नीचे ,कभी गोते लगाता सा
अजब बाज़ार के हालात हैं लाचार चुटकी में
ख़बर इतनी न थी संगींन अपने होश उड़ जाते
लगाई आग ठंडा हो गया अख़बार चुटकी में
न चूड़ी है, न कंगन है, न पायल है ,न हैं घुँघरू
मगर बजती रही फिर भी कोई झनकार चुटकी में

मेरे प्रिय मित्र नवनीत शर्मा की ये ग़ज़ल:
बदल दी चोट खाए बाज़ुओं ने धार चुटकी में
छिना था मेरे हाथों से जहाँ पतवार चुटकी में
उन्हें तुमने कहा था एक दिन बेकार चुटकी में
चढ़े आते हैं टी.वी. पे जो अब फ़नकार चुटकी में
जगाई याद की तूने अजब झंकार चुटकी में
लो मेरे दिल के फिर से बढ़ गए आज़ार चुटकी में
मोहब्बत, चैन या एतमाद की मंजिल नहीं मुश्किल
मेरे कदमों को तू बख़्शे अगर रफ़्तार् चुटकी में
न माथे पर शिकन कोई, न दिल में हूक, हैरत है
यही हैं लोग क्या, जिनका छिना घर-बार चुटकी में
यह दुनिया हाट हो जैसे, है बिकवाली ज़रूरत की
कि सर पर से हथेली ले गई दस्तार चुटकी में
अजब उलझन का ये मौसम कि जानम भी सियासी है
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इक़रार चुटकी में
सुनो, जागो, उठो, देखो कि बरसों बाद मौका है
अभी तुमको गिराने हैं कई सरदार चुटकी में
'नहीं' कहना हुनर ऐसा जिसे हम सीख न पाए
जो हमसे खाल भी माँगी, कहा, 'सरकार! चुटकी में'
अकेले जूझना है जीस्त नदिया, मौत सागर से
यहाँ कोई नहीं ले जाए जो उस पार चुटकी में
है बहरो-वज़्न कैसा ये तो द्विज उस्ताद ही जाने
कहा सतपाल ने तो कह दिए अश्आर चुटकी में

चंद्रभान भारद्वाज की ये ग़ज़ल :
सुलझ जाते हैं उलझे प्रश्न कितनी बार चुटकी में;
सफलता पर नहीं मिलती किसी को यार चुटकी में।
कभी होता नहीं तो ज़िन्दगी भर तक नहीं होता,
कभी होता किसी की बात का एतबार चुटकी में।
कई मझधार में डूबे, कई डूबे किनारे पर,
हमारी नाव पर उसने लगाई पार चुटकी में।
उठी टेढ़ी नज़र तो छा गई माहौल में चुप्पी,
मधुर मुसकान से महफिल हुई गुलज़ार चुटकी में।
पड़ा इक इस किनारे पर, पड़ा इक उस किनारे पर,
अचानक जोड़ जाता वक्त टूटे तार चुटकी में।
करें भी तो करें कैसे भरोसा दोमुहों पर हम,
कभी तो प्यार चुटकी में, कभी तकरार चुटकी में।
हुआ है प्यार 'भारद्वाज' अब इक खेल गुड़ियों का,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे

डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी की ग़ज़ल
बदलता रहता है हर दम मिज़ाजे-यार चुटकी में ,
कभी इन्कार चुटकी मे, कभी इक़रार चुटकी मे
कहीं ऐसा न हो हो जाए वह बेज़ार चुटकी में
तुम उस से कर रहे हो दिल्लगी बेकार चुटकी में
दिले नादां ठहर, अच्छी नहीं यह तेरी बेताबी
नहीं होती है राह-ए-वस्ल यूँ हमवार चुटकी में
अगर चशमे -इनायत हो गई उसकी तो दम भर में
वह रख देगा बदल कर तेरा हाल-ए-ज़ार चुटकी में
अगर मर्ज़ी नहीं उसकी तो तुम कुछ कर नहीं सकते
अगर चाहे तो हो जाएगा बेड़ा पार चुटकी में
बज़ाहिर नर्म दिल है ,वो कभी ऐसा भी होता है
वो हो जाता है अकसर बर-सरे पैकार चुटकी में
कभी भूले से भी करना न तुम उसकी दिल आज़ारी
बदल जाती है उसकी शोख़ी -ए -गुफ़्तार चुटकी में
सँभल कर सब्र का तुम लेना उसके इम्तिहाँ वरना
पलट कर वो कहीं कर दे न तुम पर वार चुटकी में
हमेशा याद रखना वो बहुत हस्सास है 'बर्क़ी'
अगर ख़ुश है तो हो जाएगा वो तैयार चुटकी में

मेरे प्रिय मित्र विजय धीमान(हमीरपुर से):
ग़ज़ल
जो आँखें बंद कर लो तो मिटे संसार चुटकी में
जो आँखे खोल कर देखो तो सब साकार चुटकी में
कभी है प्यार चुटकी में , कभी इनकार चुटकी में
हमारी जीत चुटकी में, हमारी हार चुटकी में
हमारा दिल निकलता है , हमारी जान जाती है
कभी इन्कार चुटकी में ,कभी इकरार चुटकी में
चली जब पेट पर छुरियाँ हुआ मालूम तब हमको
कि साज़िश थी बड़ी ग़हरी घटी जो यार चुटकी में
तुम्हारी जिन अदाओं पर हमारी ज़िंदगी कुरबां
मरे है उन अदाओं पर सकल संसार चुटकी में
जो मीठे बोल हों साथी तो रस घुलता है आलम में
अखरते बोल पर भैया तने तलवार चुटकी में
कभी हँसना, कभी रोना ,कभी पाना, कभी खोना
ये जीवन एक उलझन है न सुलझे यार चुटकी में

जोगेश्वर गर्ग(राजस्थान से)
ग़ज़ल
बदलता है भला ऐसे कभी व्यवहार चुटकी में
लड़ो भी एक पल में और कर लो प्यार चुटकी में
दिलों का मेल होना और वह भी ज़िंदगी भर का
नहीं होता कभी इतना बड़ा व्यापार चुटकी में
सुना मैंने तुम्हारे शह्र की ऐसी रिवायत है
कभी इन्कार चुटकी में , कभी इकरार चुटकी में
बदलने का अगर है शौक़ तो बदलो ज़रा मुझको
बदलते हो वतन मे जिस तरह सरकार चुटकी में
कहो नाराज़ क्यों हो पूछता है आज "जोगेश्वर"
उसे भी तो किसी दिन तुम करो स्वीकार चुटकी में

दिगम्बर नासवा की ग़ज़ल
चले अब छोड़ कर तेरा ये हम संसार चुटकी में
कि जोगी बन गए हम छोड़ कर घर बार चुटकी में
समझ पाया नहीं मैं अब तलक तेरे इरादों को
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में
तुम्हारे प्यार के जादू ने कैसा खेल खेला है
अभी आया था मंगल, आ गया इतवार चुटकी में
वो जिसके हाथ में इन्साफ़ के मंदिर की चाबी है
वही कातिल है बैठा है जो बन अवतार चुटकी में
ये घर का राज़ है तुम दफ़्न सीने मे करो इसको
नहीं तो टूट जायेंगे दरो-दीवार चुटकी में
किसी बादल के टुकड़े पर लगे हैं पंख खुशियों के
कहीं बरसेगा बन के गीत की झंकार चुटकी में

ग़ज़ल : मोहम्मद वलीउल्लाह वली
सितम कैसा यह करते हो मेरे सरकार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी
हुई जिस दम किसी से मेरी आँखें चार चुटकी में
ख़िज़ाँ दीदह मेरा दिल हो गया गुलज़ार चुटकी में
न जाने क्या अजब अंदाज़ है उशवा तराज़ों का
कभी तो वाद-ए-उलफ़त कभी तकरार चुटकी में
तुम्हारे इश्क़ ने मुझको बना डाला है सौदाई
तुम्हीं करते हो यूँ मुझको ज़लीलो- ख़्वार चुटकी में
मेरे हाथों में है बस इक इसी उम्मीद का दामन
बदल देती है क़िस्मत इक निगाह-ए-यार चुटकी में
जनाबे- हज़रते -वाइज़ हक़ीक़त से हैं नावाक़िफ
मैं दीवाना हूँ मैं जाउँगा सूए-दार चुटकी में
*शेफाअत जिस को हो उनको मुयस्सर रोज़-ए-महशर में
वली बन जाएगा जन्नत का वह हक़दार चुटकी में
उशवा तराज़ों- नाज़ नख़रा करने वाले,शेफाअत-सिफारिश,पैरवी

ग़ज़ल :मुनीर अरमान नसीमी(उडीसा)
पिलाया उसने जब से शर्बत-ए- दीदार चुटकी में
नुमायाँ है तभी से इश्क़ के आसार चुटकी में
*ख़िज़ाँ- दीदह था इस से पहले मेरा गुलशने हस्ती
मेरा बाग़-ए-तमन्ना हो गया गुलज़ार चुटकी में
किया अर्ज़े तमन्ना मैंने जब वह हँस के यह बोला
नहीं करते किसी से इश्क़ का इज़हार चुटकी में
तुम्हारी इक निगाहे नाज़ के सदक़े मैं ऐ जानाँ !
हुए हैं *ख़म न जाने कितने ही सरदार चुटकी में
गया वह दौर जब फ़रहाद चट्टानों से लड़ ता था
मगर अब चाहते हैं सब यह पा लें प्यार चुटकी में
हमारे रहनुमाओं के अजब *अतवार हैं अरमाँ
कभी इन्कार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में
अतवार-तौर-तरीके ,ख़िज़ाँ दीदह-मुर्झाए हुए, ख़म-झुकना
Saturday, March 21, 2009
जगदीश रावतानी की एक ग़ज़ल

1956 मे जन्मे जगदीश रावतानी प्रसिद्व कवि हैं और इन्होंने छोटे पर्दे पर कई धारावाहिकों मे अभिनय भी किया है.कई प्रतिभाओं के मालिक हैं जगदीश जी. आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए उनकी एक ग़ज़ल पेश है:
ग़ज़ल
गो मैं तेरे जहाँ मैं ख़ुशी खोजता रहा
लेकिन ग़मों-अलम से सदा आशना रहा
हर कोई आरजू में कि छू ले वो आसमां
इक दूसरे के पंख मगर नोचता रहा
यादों मैं तेरे अक्स का पैकर तराश कर
आईना रख के सामने मैं जागता रहा
कैसे किसी के दिल में खिलाता वो कोई गुल
जो नफरतों के बीज सदा बीजता रहा
आती नज़र भी क्यूं मुझे मंजिल की रौशनी
छोडे हुए मैं नक्शे कदम देखता रहा
सच है कि मैं किसी से मुहव्बत न कर सका
ता उम्र प्रेम ग्रंथ मगर बांचता रहा
बहरे-मज़ारिअ
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12
शायर का पता
BS-19 Shiva Enclave, A/4 Pashchim Vihar, New Delhi -110063
Ph. 011-25252635,98111-50638
jagdishrawtani@rediffmail.com
Sunday, March 15, 2009
तरही ग़ज़लें
द्विज जी के परामर्शानुसार हम आज की ग़ज़ल पर तरही ग़ज़लों का प्रकाशन करेंगे. महीने मे एक बार तरही ग़ज़लें प्रकाशित की जायेंगी. इसमें नये और स्थापित सभी शायर हिस्सा लेंगे. इस बार हम ने दा़ग़ के शागिर्द नसीम का ये मिसरा चुना है. आप ग़ज़ल कहें और ज़ल्द भेजें.
कभी इन्कार चुटकी में , कभी इक़रार चुटकी में.
काफ़िया : इनकार
रदीफ़ : चुटकी में
और बहर : हज़ज
मुफ़ाईलुन X 4
1222 1222 1222 1222
आप अपनी ग़ज़लें २० दिन के अंदर हमें भेजें लेकिन आप अपनी सहमती ज़रूर भेज दें कि आप भाग ले रहे हैं या नहीं.हर कोई ग़ज़ल भेज सकता है बशर्ते कि बहर-वज़्न सही हो. हर तरह से सही ग़ज़लें ही प्रकाशित की जायेंगी.
सादर
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कभी इन्कार चुटकी में , कभी इक़रार चुटकी में.
काफ़िया : इनकार
रदीफ़ : चुटकी में
और बहर : हज़ज
मुफ़ाईलुन X 4
1222 1222 1222 1222
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ग़ज़ल लेखन के बारे में आनलाइन किताबें - ग़ज़ल की बाबत > https://amzn.to/3rjnyGk बातें ग़ज़ल की > https://amzn.to/3pyuoY3 ग़ज़...
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ग़ज़ल हर घड़ी यूँ ही सोचता क्या है? क्या कमी है ,तुझे हुआ क्या है? किसने जाना है, जो तू जानेगा क्या ये दुनिया है और ख़ुदा क्या है? दर-बदर खाक़ ...
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आज हम ग़ज़ल की बहरों को लेकर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं | आपके प्रश्नों का स्वागत है | आठ बेसिक अरकान: फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2) मु-त-फ़ा-इ-लुन(...