
"आज की ग़ज़ल" की पहुँच अब धीरे-धीरे बढ़ रही है और मुझे खुशी है कि अब हम सीधे ग़ज़लकारों से जुड़ रहे हैं । इसका उदाहरण हैं प्रदीप निफाडकर जो मराठी ग़ज़लकार हैं और ब्लाग के प्रशंसक भी। एक मराठी ग़जलकार तक ब्लाग पहुँचना मायने रखता है । इस मंच से हम किसी को कुछ सीखाने की मंशा नहीं रखते और शायरी हुनर ही ऐसा है कि सीखने से नहीं आता । बस ये एक प्रयास है इस फ़न को जानने का,जो धीरे -धीरे सफ़ल हो रहा है।
1962 में जन्में प्रदीप निफाडकर जी का काव्य संग्रह छाया हो चुका है और एक मराठी ग़ज़ल संग्रह जल्द आ रहा है और आप कई साहित्यक सम्मान हासिल कर चुके हैं। शायरी का तर्जुमा बड़ा मुशकिल काम है लेकिन इसे निदा फ़ाज़ली साहब ने और आसिफ़ सय्यद ने किया है जो यक़ीनन क़ाबिले-तारीफ़ है। ये लीजिए दो ग़ज़लें-
एक
याद आई दिया जब जलाया
लौ की सूरत समय थर-थराया
खुशबू आती है शब्दों से मेरे
तेरी आवाज़ का जैसे साया
चाँदनी थी मेरे पीछे-पीछे
कैसे सूरज ने मुझको सताया
जो हुआ सो हुआ सोचकर ये
हमने माज़ी को अपने भुलाया
हमको जिस पल गिला था समय से
वो ही पल लौटकर फिर न आया
हो तुझे जीत अपनी मुबारक
अपनी बाज़ी तो मैं हार आया
मराठी से उर्दू तर्जुमा- निदा फ़ाज़ली
बहरे- मुतदारिक की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़े)
दो
हर महफ़िल में मिलती रहती मेरी बेटी
हर बेटी में मुझको दिखती मेरी बेटी
अम्मी-अब्बू कितने अच्छे मुझको मिले हैं
सखियों से यूँ कहती रहती मेरी बेटी
सुस्त रवी अपना लेती हैं तेज़ हवाएँ
झूले पर जब बैठी रहती मेरी बेटी
सजती है न सँवरती है फिर भी देखो तो
परियों जैसी सुंदर लगती मेरी बेटी
मेरे सर से कर्ज़ के बोझ को हल्का करने
बेटे जैसे मेहनत करती मेरी बेटी
घर आने में जब होती है देर मुझे तो
अम्मी के संग जागती रहती मेरी बेटी
मुझको एक ग़ज़ल जैसी वो लगती है तब
गोद में जब मेरी है सिमटती मेरी बेटी
याद आता है मेरी अम्मी ऐसी ही थी
जब-जब मेरी आँख पोंछती मेरी बेटी
उसको लेने शहज़ादे तुम देर से आना
मुझको अभी बच्ची है लगती मेरी बेटी
मराठी से उर्दू तर्जुमा - आसिफ़ सय्यद
छ: फ़ेलुन