
1947 में जन्में अनवारे इस्लाम द्विमासिक पत्रिका "सुख़नवर" का संपादन करते हैं। इन्होंने बाल साहित्य में भी अपना बहुत योगदान दिया है । साथ ही कविता, गीत , कहानी भी लिखी है। सी.बी.एस.ई पाठयक्रम में भी इनकी रचनाएँ शामिल की गईं हैं। आप म.प्र. साहित्य आकादमी और राष्ट्रीय भाषा समिती द्वारा सम्मान हासिल कर चुके हैं। लेकिन ग़ज़ल को केन्द्रीय विधा मानते हैं। इनकी चार ग़ज़लें हाज़िर हैं-
एक
ख़ैरीयत इस तरह बताता है
हाल पूछो तो मुस्कुराता है
कैसे बच्चों को खेलते देखूँ
दिन तो दफ़्तर में डूब जाता है
ज़िक्र करता है हर जगह मेरा
सामने आके भूल जाता है
कल तलक सर छुपाके रखता था
आज वो जिस्म भी छुपाता है
किससे क़ौलो-क़रार कीजेगा
कोई वादा कहाँ निभाता है
तन के चलता है भाई के आगे
सर दरे-ग़ैर पर झुकाता है
बहरे-खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन
2122 1212 22
दो
असल में मुस्कुराना चाहता है
जो बच्चा रूठ जाना चाहता है
हमारी प्यास की गहराइयों में
समंदर डूब जाना चाहता है
वो आना चाहता है पास लेकिन
मुनासिब सा बहाना चाहता है
नहीं मालूम क्या चाहत है उसकी
मगर उसको ज़माना चाहता है
कहीं मिल जाए थोड़ी छांव उसको
वो बंजारा ठिकाना चाहता है
नई तहज़ीब का बेटा हमारा
हमें अब भूल जाना चाहता है
हज़ज की मुज़ाहिफ़ शक्ल
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
तीन
दुनिया की निगाहों में ख़यालों में रहेंगे
जो लोग तेरे चाहने वालों में रहेंगे
हम लोग बसायेंगे कोई दूसरी दुनिया
मस्जिद में रहेंगे, न शिवालों में रहेंगे
ऐ वक़्त तेरे ज़ुल्मो-सितम सहके भी खुश हैं
हम लोग हमेशा ही मिसालों में रहेंगे
शैरों में मेरे आज धड़कता है मेरा वक़्त
अशआर मेरे कल भी हवालों में रहेंगे
गुलशन के मुक़द्दर में जो आए नहीं अब तक
वो नक़्श मेरे पाँव के छालों में रहेंगे
हज़ज की मुज़ाहिफ़ शक्ल
मफ़ऊल मफ़ाईल मुफ़ाईल फ़लुन
22 1 1 22 11 221 122
चार
ये धुआँ जो कि जलते मकानों का है
सब करिश्मा तुम्हारे बयानों का है
तुमको ज़िद्द ही अगर पर कतरने की है
शौक़ हमको भी ऊँची उड़ानों का है
जानता हूँ हवा है मु्ख़ालिफ़ मेरे
पर भरोसा मुझे बादबानों का है
बाँधकर हम परों में सफ़र उड़ चले
इम्तिहान आज फिर आसमानों का है
बहरे-मुतदारिक सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
इ-मेल
sukhanwar12@gmail.com