परिचय:
4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे देवमणि पांडेय लोकप्रिय कवि और मंच संचालक हैं। अब तक दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- "दिल की बातें" और "खुशबू की लकीरें"। मुम्बई में एक केंद्रीय सरकारी कार्यालय में कार्यरत पांडेय जी ने फ़िल्म 'पिंजर', 'हासिल' और 'कहां हो तुम' के अलावा कुछ सीरियलों में भी गीत लिखे हैं। आपके द्वारा संपादित सांस्कृतिक निर्देशिका 'संस्कृति संगम' ने मुम्बई के रचनाकारों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई है। पेश हैं उनकी दो गज़लें-
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ग़ज़ल १
उदासी के मंज़र मकानों में हैं
कि रंगीनियाँ अब दुकानों में हैं
मोहब्बत को मौसम ने आवाज़ दी
दिलों की पतंगें उड़ानों में हैं
इन्हें अपने अंजाम का डर नहीं
कई चाहतें इम्तहानों में हैं
न जाने किसे और छलनी करें
कई तीर उनकी कमानों में हैं
दिलों की जुदाई के नग़मे सभी
अधूरी पड़ी दास्तानों में हैं
वहां जब गई रोशनी डर गई
वो वीरानियाँ आशियानों में हैं
ज़ुबाँ वाले कुछ भी समझते नहीं
वो दुख दर्द जो बेज़ुबानों में हैं
परिंदों की परवाज़ कायम रहे
कई ख़्वाब शामिल उड़ानों में हैं
{वज़न है:122,122,122,12 }
ग़ज़ल २
बसेरा हर तरफ़ है तीरगी का
कहीं दिखता नहीं चेहरा ख़ुशी का
अभी तक ये भरम टूटा नहीं है
समंदर साथ देगा तिश्नगी का
किसी का साथ छूटा तो ये जाना
यहां होता नहीं कोई किसी का
वो किस उम्मीद पर ज़िंदा रहेगा
अगर हर ख़्वाब टूटे आदमी का
न जाने कब छुड़ा ले हाथ अपना
भरोसा क्या करें हम ज़िंदगी का
लबों से मुस्कराहट छिन गई है
ये है अंजाम अपनी सादगी का
{वज़न है: 1222,1222,122}
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Devmani Pandey (Poet)
A-2, Hyderabad Estate
Nepean Sea Road, Malabar Hill
Mumbai - 400 036
M : 98210-82126 / R : 022 - 2363-2727
Email : devmanipandey@gmail.com
8 comments:
दिल को छू गए देवमणि पाण्डेय की ग़ज़लों के शेर !
उदासी के मंज़र मकानों में हैं
कि रंगीनियाँ अब दुकानों में हैं
मोहब्बत को मौसम ने आवाज़ दी
दिलों की पतंगें उड़ानों में हैं
क्या बात है ! बहुत खूब !
देवमणि जी को मिलना अपने आप में एक अनुभव है जो मुझे प्राप्त हो चुका है. उनकी रचनाएँ और मंच संचालन लाजवाब है. उनकी ये दोनों ग़ज़लें उनके इस रूप को भली भांति दर्शाती है. जिंदगी के कितने की घूसर और चटकदार रंगों को दर्शाने वाले शेरों से सजी ये ग़ज़लें देर तक जेहन में रहेंगी. आप को कोटिश धन्यवाद उन्हें पढने का अवसर प्रदान करने पर.
नीरज
Dilon ko chhu lene wali gazlen
aur unki parstuti kamaal rahi
Devmani ji ko padhna aur unke bare main jaanna achha laga
aap ki gazale mili.....abhi puri tarah padh nahi paya hun.....aap se mil ker bataunga......
chandrapal
Demaney ji ki gazalein bahut achi lagi khas kar unka beher har gazal ke neeche , isse navodit logon ko sahara mil jata hai
वो किस उम्मीद पर ज़िंदा रहेगा
अगर हर ख़्वाब टूटे आदमी का
Umda sher hai
Daad ke saath
Devi Nangrani
wah wah Devmani ji..
bahut khoob hain gazale aapki..
aap hi ki tarah..
aap ke vyaktitva ki tarah..
aap ke sanchalan ki tarah..
zald phir se mulakat ki ummeed me..
kavi kulwant singh
http://kavikulwant.blogspot.com
उदासी के मंज़र मकानों में हैं
कि रंगीनियाँ अब दुकानों में हैं
ऎसे लाजवाब मतले से शुरु हुई गज़ल तो बेशक ही अज़ल की तरफ़ ही रुख करेगी!
खूबसूरती जैसे सादगी के पैरहन ओ़डे हो...
इन्हें अपने अंजाम का डर नहीं
कई चाहतें इम्तहानों में हैं
दिलों की जुदाई के नग़मे सभी
अधूरी पड़ी दास्तानों में हैं
ज़ुबाँ वाले कुछ भी समझते नहीं
वो दुख दर्द जो बेज़ुबानों में हैं
पाण्डेय साहब को तहे दिल से दाद हाज़िर है!
देवमणि पांडेय की ग़ज़लेँ
अहदे हाज़िर की तर्जुमानी हैँ
ग़मे जानाँ के साथ यह अशआर
ग़मे दौराँ की भी कहानी हैँ
तबसरा हालात पर है बरमहल
है नेहायत ख़ूबसूरत यह ग़ज़ल
लिखते रहिए हम पढेँगे शौक़ से
तर्जुमाने दर्दे दिल है यह ग़ज़ल
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
नई दिल्ली-110025
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