
14 जनवरी 1931 को पाकिस्तान मे जन्मे अहमद फ़राज़
( वास्तविक नाम: सैय्यद अहमद शाह)
25 अगस्त 2008 को इस दुनिया से विदा हो गए.आज पूरा भारत इस शख्स के जाने से गमज़दा है. सन 2004 मे हिलाले-इम्तियाज़ से नवाजे गए थे फ़राज़.ये शायर अपनी अमिट शाप छोड़कर इस फ़ानी दुनिया से विदा हो गया.

तेरी बातें ही सुनाने आये
दोस्त भी दिल ही दुखाने आये
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आये

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों
मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों

बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा
अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा

अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें के जो
रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जायेंगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जायेंगे
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बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है
बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

उसने कहा सुन
अहद निभाने की ख़ातिर मत आना
अहद निभानेवाले अक्सर मजबूरी या
महजूरी की थकन से लौटा करते हैं
तुम जाओ और दरिया-दरिया प्यास बुझाओ
जिन आँखों में डूबो
जिस दिल में भी उतरो
मेरी तलब आवाज़ न देगी
लेकिन जब मेरी चाहत और मेरी ख़्वाहिश की लौ
इतनी तेज़ और इतनी ऊँची हो जाये
जब दिल रो दे
तब लौट आना
यादें
3 comments:
इंसानियत और रूमानियत से भरपूर साबका रखती थी... फराज साहब की कलम। कुछ चुनिंदा अंशों को पढ़कर मेंहदी हसन साहब की भी याद आ गई।
शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!
फ़राज़ साहब अपनी सोच के दायरे, इंसानी जज्बातों की बारीकियों की पकड़ और बुलंद हौसलों भरे अल्फाज़ से लबरेज़ शायरी के लिए हमेशा हमेशा याद किये जायेंगे! बेशक हम सभी ने उर्दू शायरी के एक रौशन चिराग को खो दिया है!
पर इन शेरों में आज भी हमारे बेहद करीब हैं वो....
कितना आसां था तेरे इश्क में मरना जाना,
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
कौन कहता है की मौत आई तो मर जाऊँगा,
मैं तो दरया हूँ समंदर में उतर जाऊँगा
उनकी शान में यही कहूँगा की..
तेरी तहरीर में हर शक्स का चेहरा है "फ़राज़",
तेरे सागर में हर इक बूंद है गौहर कोई...
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