Saturday, October 11, 2008

श्री ब्रज किशोर वर्मा 'शैदी' की ग़ज़लें और परिचय













परिचय:
3 जून 1941 को अलीगढ़ (उ०प्र०) में जन्में श्री ब्रज किशोर वर्मा 'शैदी' सूचना विज्ञान में एम.एस. सी, व एम.फ़िल हैं और आप दिल्ली-विश्व विद्यालय के पटेल चैस्ट इंस्टीट्यूट से सेवा निवृत हुए हैं। आपने युगोस्लाव छात्रवृत्ति पर युगोस्लाव भाषा का विशेष अध्ययन किया है और इस भाषा की काव्य रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया हैं युगोस्लाव भाषाओं में भारतीय विषयों से संबंधित रचनाओं आदि पर शोध कार्य भी किया है। अमेरिका व यूरोपीय देशों में साहित्यिक, वैज्ञानिक गोष्ठियों व गतिविधियों से संबंधित भ्रमण भी किये।युगोस्लाव दूरदर्शन पर भारत-संबंधित वार्ताएँ, आकाशवाणी पर साक्षात्कार व नियमित काव्य पाठ । आप मुख्य-रूप से उर्दू,खड़ी बोली, ब्रजभाषा व अँग्रेज़ी में काव्य रचते हैं, और काव्य के अच्छे समीक्ष्क भी हैं।
मयख़ाना,दर की ठोकरें, तिराहे पर खड़ा दरख़्त (काव्य संग्रह), तुकी-बेतुकी, तू-तू मैं-मैं (हास्य-व्यंग्य काव्य संग्रह) चूहे की शादी (बाल-गीत संग्रह),हम जंगल के फूल(दोहा सतसई) इत्यादि इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं और इसके अतिरिक्त आप कई दोहा और ग़ज़ल संकलनों में सहयोगी रचनाकार के रूप में संकलित हो चुके हैं।


प्रस्तुत हैं श्री ब्रज किशोर वर्मा 'शैदी' चार ग़ज़लें :


एक.







यारब ये क्या सुलूक किया दिलबरों के साथ
दानिशवरों को छोड़ दिया,सिरफिरों के साथ

संजीदगी की उनसे तवक़्क़ो न कीजिये
जिनकी तमाम उम्र कटी मसख़रों के साथ

तामीर नया घर तो करें शौक़ से, मगर
रिश्ते न तोड़िएगा पुराने घरों के साथ

पत्थर है बासलीक़ा तो हाज़िर है आईना
बस,शर्त ये है, फ़न भी हो शीशागरों के साथ

ऐवाने—शहनशाह ये खँडहर रहे कभी
तारीख़ हमनवा है, इन्हीं पत्थरों के साथ

हुस्ने-अयाँ के सामने हुस्ने—निहाँ फ़िज़ूल
मुश्किल यही है आज के दीदावरों के साथ

ज़ीनत हैं दिल की ज़ख़्म जो बख़्शे हैं आपने
जैसे नई दुल्हन हो कोई ज़ेवरों के साथ

मंज़िल पे ले के जायें जो नफ़रत की राह से
मुझको सफ़र क़ुबूल न उन रहबरों के साथ

'शैदी'! उन्हीं को कर गया बौना कुछ और भी
बौनों का जो सुलूक था,क़द्दावरों के साथ.

बहरे मुज़ारे : 221,2121,1221,2121

दो









अब्र नफ़रत का बरसता है, ख़ुदा ख़ैर करे
हर तरफ़ क़हर-सा बरपा है, ख़ुदा ख़ैर करे

चुन भी पाए न थे अब तक, शिकस्ता आईने,
संग फिर उसने उठाया है, ख़ुदा ख़ैर करे

जो गया था अभी इस सिम्त से लिए ख़ंजर
जाने क्या सोच के पलटा है, ख़ुदा ख़ैर करे

क़ातिले—शहर के हमराह हज़ारों लश्कर
हाकिमे-शहर अकेला है, ख़ुदा ख़ैर करे

लोग इस गाँव के उस गाँव से मिलें कैसे ?
दरमियाँ ख़ून का दरिया है, ख़ुदा ख़ैर करे

किसलिये नींद में अब डरने लगे हैं बच्चे?
ख़्वाब आँखों में ये कैसा है, ख़ुदा ख़ैर करे

उम्रभर आग बुझाता रहा जो बस्ती में
घर उसी शख़्स का जलता है, ख़ुदा ख़ैर करे

जाने उस शख़्स ने देखे हैं हादसे कैसे
आह भर कर वो ये कहता है 'ख़ुदा ख़ैर करे'

कितना पुरशोर था , माहौल शहर का, 'शैदी'
नागहाँ किसलिये चुप-सा है, ख़ुदा ख़ैर करे.

बहर—ए— रमल का एक ज़िहाफ़=2122,1122,1122,112

तीन.










खिलते फूल सलोने देख !
रंगो-बू के दोने देख !

ये पुरख़ार बिछौने देख !
आया हूँ मैं सोने देख

दुख, तन्हाई ,यादें ,जाम
मेरे खेल-खिलौने देख !

जागेगा तो रोयेगा
मत तू ख़्वाब सलोने देख !

वो तो पानी जैसा है
पहुँचा कोने-कोने देख !

हीरे का दिल टूट गया
दाम वो औने-पौने देख !

सब पाने की धुन में हैं
हम आये हैं खोने, देख !

वो तेरे ही अंदर है
मन के सारे कोने देख

लगता वो मासूम मगर
उसके जादू- टोने देख !

22, 22, 22 2(I)

चार.







कैसे ख़ूनी मंज़र हैं
फूलों पर भी ख़ंजर हैं

नाज़ुक़ शीशा तोड़ दिया
पत्थर, कितने पत्थर हैं

बढ़े हौसले बाज़ों के
सहमे हुए कबूतर हैं

बस्ती के सारे दुश्मन
बस्ती के ही अंदर हैं

सारी बस्ती पहन सके
इतने उसके तन पर हैं

दीवाने का सर है एक
दुनिया भर के पत्थर हैं

प्यास किसी की बुझा सके?
माना, आप समंदर हैं

जो ईंटें हैं मंदिर में
वही हरम के अंदर हैं

जिनमें मोती बनने थे
वे ही कोखें बंजर हैं .

22, 22, 22 2

5 comments:

Satish Saxena said...

बहुत खूब !

Anonymous said...

Janaab Braj kishore Verma Shaidee
kee sabhee gazlen padh gaya hoon.
Gazlon ke sabhee ashaar ek se badhkar ek hain.CHotee bahar
mein kahee huee unkee gazlen kabil-
tareef hain.Shaidee sahib ko meree
badhaee.

गौतम राजऋषि said...

वाह सतपाल भाई...क्या बात है.शुक्रिया इस शानदार संकलन का.खास अक्र दोनों छोटी बहर वाली गज़लों ने तो कयामत ढ़ा दिया..

शेरघाटी said...

bhai aap gulistaan se jo intkhab karte hain uski khushboo yaqeenan door tak jati hai.

ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html
अपनी राय भी दें.

Anonymous said...

nazuk sheesha tod diya, patthar kitane patthar hain, wah `shiadi ji shyam skha