Friday, January 30, 2009
दोस्त मोहम्मद खान की ग़ज़लें
जनाब दोस्त मोहम्मद खान राज्य सभा मे डिपटी डायरेक्टर की हैसीयत से काम कर रहे हैं और उर्दू में एम.फ़िल. किया है.शायरी के शौक़ीन हैं और कालेज के ज़माने से लिख रहे हैं. आज हम उनकी दो ग़ज़लें यहाँ पेश कर रहे हैं.
ग़ज़ल
हम को जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद
ज़िन्दगी, हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद
यूँ तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था, वही आया बहुत देर के बाद
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबाँ आप ने फरमाया बहुत देर के बाद
बात अशआर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद
ग़ज़ल
दिल के ज़ख्म को धो लेते हैं
तन्हाई में रो लेते हैं
दर्द की फसलें काट रहे हैं
फिर भी सपने बो लेते हैं
जो भी लगता है अपना सा
साथ उसी के हो लेते हैं
दीवानों -सा हाल हुआ है
हँस देते हैं, रो लेते हैं
'दोस्त' अभी कुछ दर्द भी कम है
आओ थोड़ा सो लेते हैं.
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24 comments:
वाह जी वाह बेहतरीन गजल
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
पढवाने के लिए आपका आभार
दोस्त के अशआर हैँ आईनए नक़दो नज़र
इम्तेज़ाजे फकरो फन हर शेर से है जलवागर
उनकी ग़ज़लोँ से अयाँ है सोज़ो साज़े ज़िंदगी
उनके तर्ज़े फिक्र से ज़हिर है वह है दीदहवर
उनकी अमली ज़िंदगी है मज़हरे हुस्ने अमल
उनके अदबी कारनामे हैँ नेहायत मोतबर
उनकी वेबसाइट नेशाते रूह का सामान है
इस्तेफादह कर रहे हैँ जिस से अरबाबे नज़र
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
"दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें/मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद"
...वाह क्या खूब
दोनों ही गज़लें लाजवाब हैं
दूसरी गज़ल का मक्ता "'दोस्त' अभी कुछ दर्द भी कम है / आओ थोड़ा सो लेते हैं" भी गज़ब का है
तक्ख्ल्लुस का बड़ा सही इस्तमाल
बहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचनाएँ
बहुत बेहतरीन गज़ल प्रेषित की हैं।
बहुत खूबसूरत गजले।
हम को जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद
ज़िन्दगी, हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद
यूँ तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था, वही आया बहुत देर के बाद
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
mushkil zameen par sheroN kee aisee fas'l aapke tajrubaat e sukhan aur tajrubaat e umr kaa aayeenaa hai! meree hazaar_haa daad qabool kijiye!
वेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु बधाईयाँ !
DONO GAZLON KA HAR SHER UMDAA HAI.
दोनों ही ग़ज़लें बेहतरीन है भाई.... आपकी प्रस्तुति को सलाम..
दोनों ही ग़ज़लें बहुत सुंदर हैं, इतनी सीधी सरल भाषा में
गंभीर गज़ल कहना एक अनुभवी शायर के ही बूते की बात है।
इन ग़ज़लों को 'आज की गज़ल' में प्रकाशित करने के लिये
आपको साधुवाद एवं श्री दोस्त मोहम्मद खान साहब को
बधाई।
मोहम्मद खान साहब की दोनों गज़लें बहुत उम्दा लगीं.
दीवानों -सा हाल हुआ है
हँस देते हैं, रो लेते हैं
क्या कहने..
आभार इन्हें प्रस्तुत करने का.
janab-e-Dost sahib ki ghazlon ko padhwane ke liye shukriya.Adab ki khidmat ke liye aaj kee ghazal ka kaam tareekh banega.
Navneet Sharma
वाह जी वाह
बहुत ही खूब, वाकई में लाजवाब थी आपकी गज़ल
रूह तक समा गयी ये तो…
कमाल का लिखते हैं आप
अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि हम भी दोस्त तख़ल्लुस का ही इस्तेमाल करते हैं।
असरदार गज़लें। शुक्रिया सतपाल।
आप सब हज़रात की मोहब्ब्तों का तहे दिल से शुक्रिया. यक़ीनन आप जैसे साहिब ए नज़र हज़रात की राय से मुझ नाचीज़ की बेहद हौसला अफ़ज़ाई हुई है. दोस्त मोहम्म्द.
दीवानों -सा हाल हुआ है
हँस देते हैं, रो लेते हैं
सतपाल जी शुक्रिया ऐसे नायाब शायर से मिलवाने का ,ग़ज़ल का हर शेर बेहद खूबसूरत बन पड़ा है...हमारी ढेरों बधाईयाँ...
नीरज
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
'दिल कशमश और उलझन और बेपरवाह उसको देर से सुलझाने का अंदाजे बयाँ ....ये शेर भा गया दिल को...."
मोहम्मद खान साहब की दोनों गजलो के लिए सलाम .
Regards
ये ब्लॉग तो खूबसूरत गज़लों का शोध स्थल जैसे लगता है...........इतनी बेहतरीन ग़ज़लें एक साथ इसी जगह पर मिलतीं हैं. इस बार भी दोनों प्रस्तुति खूबसूरत हैं...........संवेदन शील हैं
दर्द की फसलें काट रहे हैं
फिर भी सपने बो लेते हैं.................
राजनीति में होते हुवे भी..........समय का सच साथ है दोस्त मुहम्मद जी के.........
बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई
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Taaki ham jaise log sthaai reader ban sake is blog ke.
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बेहद आला और नफ़ीस खयालात हैं। दोनों ही बहुत दिलकश ग़ज़लें हैं। हर लफ़्ज़, हर
शे'र दिल को छूता हुआ लगा। इस नाचीज़ की दाद क़ुबूल कीजिए।
Dear yogesh !
Subscription link Daal dia hai. aur sab doston ka shukrguzar hoon .
दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबाँ आप ने फरमाया बहुत देर के बाद
बात अशआर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद
बहुत ख़ूब दोस्त साहब, बहुत बेहतर। मुद्दतों बाद कोई बात है पैदा हुई। आलातरीन दोग़ज़्ला।
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद
dono khoobsoorat gazalon par badhyee
yeh she`r sbse achha laga
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shyamskha shyam
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