Thursday, February 5, 2009
आर.पी. शर्मा "महरिष" की तीन ग़ज़लें
श्री आर.पी. शर्मा "महरिष" का जन्म 7 मार्च 1922 ई को गोंडा में (उ.प्र.) में हुआ। अपने जीवन-सफर के 85 वर्ष पूर्ण कर चुके श्री शर्मा जी की साहित्यिक रुचि आज भी निरंतर बनी हुई है। ग़ज़ल संसार में वे "पिंगलाचार्य" की उपाधि से सम्मानित हुए हैं।
प्रकाशित पुस्तकें : हिंदी गज़ल संरचना-एक परिचय , ग़ज़ल-निर्देशिका,गज़ल-विधा ,गज़ल-लेखन कला ,व्यहवारिक छंद-शास्त्र ,नागफनियों ने सजाईं महफिलें (ग़ज़ल-संग्रह),गज़ल और गज़ल की तकनीक। पेश हैं उनकी तीन ग़ज़लें.
ग़ज़ल
नाम दुनिया में कमाना चाहिये
कारनामा कर दिखाना चाहिये
चुटकियों में कोई फ़न आता नहीं
सीखने को इक ज़माना चाहिये
जोड़कर तिनके परिदों की तरह
आशियां अपना बनाना चाहिये
तालियाँ भी बज उठेंगी ख़ुद-ब-ख़ुद
शेर कहना भी तो आना चाहिये
लफ्ज़ ‘महरिष’, हो पुराना, तो भी क्या?
इक नये मानी में लाना चाहिये.
बहरे-रमल
ग़ज़ल
सोचते ही ये अहले-सुख़न रह गये
गुनगुना कर वो भंवरे भी क्या कह गये
इस तरह भी इशारों में बातें हुई
लफ़्ज़ सारे धरे के धरे रह गये
नाख़ुदाई का दावा था जिनको बहुत
रौ में ख़ुदा अपने जज़्बात की बह गये
लब, कि ढूँढा किये क़ाफ़िये ही मगर
अश्क आये तो पूरी ग़ज़ल कह गये
'महरिष' उन कोकिलाओं के बौराए स्वर
अनकहे, अनछुए-से कथन कह गये.
चार फ़ाइलुन
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
ग़ज़ल
नाकर्दा गुनाहों की मिली यूँ भी सज़ा है
साकी नज़र अंदाज़ हमें करके चला है
क्या होती है ये आग भी क्या जाने समंदर
कब तिश्नालबी का उसे एहसास हुआ है
उस शख़्स के बदले हुए अंदाज़ तो देखो
जो टूट के मिलता था, तक़ल्लुफ़ से मिला है
पूछा जो मिज़ाज उसने कभी राह में रस्मन
रस्मन ही कहा मैंने कि सब उसकी दुआ है
महफ़िल में कभी जो मिरी शिरकत से ख़फ़ा था
महफ़िल में वो अब मेरे न आने से ख़फा है
क्यों उसपे जफाएँ भी न तूफान उठाएँ
जिस राह पे निकला हूँ मैं वो राहे-वफा है
पीते थे न 'महरिष, तो सभी कहते थे ज़ाहिद
अब जाम उठाया है तो हंगामा बपा है .
बहरे-हजज़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
मफ़ऊल मफ़ाईल मुफ़ाईल फ़लुन
22 11 22 11 22 11 22
एक बहुत महत्वपूर्ण लिंक है: यहाँ आप ग़ज़ल की बारीकियाँ सीख सकते हैं ये धारावाहिक लेख आर.पी शर्मा जी ने ही लिखा है क्लिक करें....ग़ज़ल लेखन..द्वारा आर.पी शर्मा "अभिव्यक्ति" पर .
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19 comments:
तालियाँ भी बज उठेंगी ख़ुद-ब-ख़ुद
शेर कहना भी तो आना चाहिये
इस तरह भी इशारों में बातें हुई
लफ़्ज़ सारे धरे के धरे रह गये
लब, कि ढूँढा किये क़ाफ़िये ही मगर
अश्क आये तो पूरी ग़ज़ल कह गये
wah wah!! Kya baat hai!
Aise laajawaab shero'n ko padhkar to Sharma ji ke shabdo'n mein hi kahunga ki
चुटकियों में कोई फ़न आता नहीं
सीखने को इक ज़माना चाहिये
Behad lazzattareen hai Sharma ji ka andaaz-e-bayaa'n!
Satpal ji ka punh aabhaar jo unhone itne umda shayar ki rachnaye'n pesh ki!
-Ranjan
बहुत उम्दा अशआर !
लब, कि ढूँढा किये क़ाफ़िये ही मगर
अश्क आये तो पूरी ग़ज़ल कह गये
" इन दो शेरो ने लाजवाब कर दिया.....खुबसुरत अंदाजे बयाँ रहा..... बस दिल को भा गये....दो शब्द हम भी कहेंगे..." कौन कहता है बहते अश्क कभी बोल नही पाते...मोहब्बत का राज तो शब्द भी खोल नही पाते.."
उस शख़्स के बदले हुए अंदाज़ तो देखो
जो टूट के मिलता था, तक़ल्लुफ़ से मिला है
" वक्त बदला तो अंदाज तो बदलना ही था...."
आभार इन बेहतरीन गजलो से रूबरू कराने का.."
Regards
चुटकियों में कोई फ़न आता नहीं
सीखने को इक ज़माना चाहिये
लब, कि ढूँढा किये क़ाफ़िये ही मगर
अश्क आये तो पूरी ग़ज़ल कह गये
उस शख़्स के बदले हुए अंदाज़ तो देखो
जो टूट के मिलता था, तक़ल्लुफ़ से मिला है
lajawaab हैं ये, yun to पूरी की पूरी gazalen खूबसूरत हैं
Satpal jii namaste!!
yeh aapkaa karam hai ki itnee umdaa shaairee se roo-ba-roo ho rahaa huN. Sharma ji ke bare meN kuchh bhee kahnaa kam hai.
dil meN hairat hai, zabaaN daad diye jaatee hai!
inkee tahreer jagah dil meN kiye jaatee hai!
R.P . Sharma ki ghazlon mein hai behad dilkashi
Inke ek ek sher mein hai fikr o fan ki chashni
Hai meri Ahmad Ali Barqi dua unke liye
Ge Khuda unko bahut pur kaif o lambi zindagi
hmad Ali Barqi Azmi
http://aabarqi.webs.com
माननीय श्री सतपाल 'ख़याल' जी ,
नमस्कार !
इस में कोई शक नही कि ग़ज़ल कि दुनिया में
आपका नाम बड़े एहतिराम से लिया जाता है ....
आपकी आमद मेरे लिए बाइसे- मसर्रत है.......
और मुझे फ़ख्र है कि मेरा शुमार भी उन खुशनसीब लोगों में है ,जिन्हें उस्तादे-मुह्तारिम जनाब "महरिष" जी कि शफ़क़त हासिल है .. .
उम्मीद करता हूँ कि राबिता बनाये रक्खेंगे .....
---मुफलिस---
बेहतरीन प्रस्तुति है भाई सतपाल जी.......... महरिष जी को नमन.. आप को बधाई..
बेहतरीन प्रस्तुति है भाई सतपाल जी.......... महरिष जी को नमन.. आप को बधाई..
बेहतरीन प्रस्तुति है भाई सतपाल जी.......... महरिष जी को नमन.. आप को बधाई..
भाई सतपाल जी, नमस्कार,
आज की गज़ल के नये अंक में श्री आर पी शर्मा 'महर्षि' की ग़ज़लें पढ़ने
को मिलीं। श्री शर्मा जी तो गज़ल के सशक्त हस्ताक्षर ही नही गज़ल पर साधिकार
लिखने वाले विद्वान हैं, उनकी ग़ज़लों के तो कहना ही क्या। मेरे साथ तो उनका पत्र
व्यवहार भी हुआ है और मेरे गज़ल संग्रह 'हवा आवाज देती है' पर उनका समीक्षात्मक
पत्र भी मिला है। हिन्दी की शायद ही कोई पत्रिका होगी जिसमें उनकी ग़ज़लें प्रकाशित
न हुईं हों। 'आज की गज़ल' में उनकी ग़ज़लें पढ़कर बहुत अच्छा लगा।श्री शर्मा जी को
इन ग़ज़लों के लिये बधाई देना तो सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा लेकिन आपको
बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने इस मनीषी की ग़ज़ल दे कर सभी गज़ल-प्रेमियों
को लाभान्वित किया है। शुभ कामनाओं सहित,
चंद॒भान भारद्वाज
महर्षि जी की किताब- ग़ज़ल निर्देशिका, एक आसान शब्दों में ग़ज़ल सिखाने की किताब है। उनकी ग़ज़लें तो ख़ैर होती ही हैं उम्दा। सतपाल जी, आप का इस पोस्ट के लिये शुक्रिया।
महरिष साब की तमाम गज़लें जाने कितनी बार पढ़ चुका हूँ। अब उनकी तारीफ़ क्या करूं,जिनकी "गज़ल निर्देशिका" ने मुझे पहला कदम रखना सिखाया इस गज़ल की मुश्किल राह पर। शायद महरिष साब को खुद भी ये इल्म न होगा कि अनजाने में वो कितने गज़लकारों के उस्ताद बने हैं...
और सतपाल जी तुस्सी तो बस ग्रेट हो
चुटकियों में कोई फ़न आता नहीं
सीखने को इक ज़माना चाहिये
such kaha
you may visit
http://gazal k bahane.blogspot.com/2009/02/blog-phttp://katha kavita.blogspot.com/2009/02/blog-post.htmlost.html
teenon rachnayen laajawaab hai. wah wah wah bahut sunder.
huzoor !
hauslaa-afzaai ka behadd shukriya
And...mail has been complied with..
-98722MUFLIS11411-
नाम दुनिया में कमाना चाहिये
mujhe ye bataaiye, beher-e-ramal is
2122,2122,2122,212
or
2122,2122,212??
or it can be both?
Mujhe confusion hai? please clear kare.n mera doubt.
My e-mail: yogesh 249@gmail.com
dear yogesh !
2122,2122,2122,212or2122,2122,212??
ye dono ramal ki muzahif(modified forms) shakleN haiN.aap dono me likh sakte hain.
महफ़िल में कभी जो मेरी शिरकत से ख़फ़ा था,महफ़िल में वो अब मेरे न आने से ख़फ़ा है।
बेहतरीन शे'र । मनभावन गज़लियात। आदर्णीय महरिष जी का इस्तेक़बाल।
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