Friday, May 1, 2009
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेकरार है-पहली किश्त
इस बार बहर कुछ मुश्किल हो गई लेकिन फिर भी २०-२२ शयारों ने ग़ज़लें भेजीं है जिने हम तीन किश्तों मे प्रकाशित करेंगे.पहली किश्त मे हम पाँच ग़ज़लें पेश कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि आपको ये तरही ग़ज़लें पसंद आयेंगी.
मिसरा-ए-तरह : "मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है " पर पाँच ग़ज़लें :
1.देवी नांगरानी की ग़ज़ल
ये कौन आ गया यहाँ कि छा गया ख़ुमार है
बहार तो नहीं मगर नफ़स-नफ़स बहार है
न दोस्तों न दुश्मनों में उसका कुछ शुमार है
क़तार में खड़ा हुआ वो आज पहली बार है
मैं जिस ज़मीं पे हूँ खड़ी ग़ुबार ही ग़ुबार है
सभी के दिल में नफरतें ख़ुलूस है न प्यार है
चमन में कौन आ गया जिगर को अपने थामकर
तड़प रही हैं बिजलियाँ, घटा भी अश्कबार है
मुकर रहे हो किस लिये, है सच तुम्हारे सामने
तुम्हारी जीत, जीत है, हमारी हार, हार है
है कौन जिससे कह सकूँ मैं अपने दिल का माजरा
मैं सबको आज़मा चुकी कोई न राज़दार है
2.पूर्णिमा वर्मन की ग़ज़ल
ये चाँद है धुला धुला ये रात खुशगवार है
जगी जगी पलक में सोए से सपन हज़ार है
ये चांदनी की बारिशों में धुल रहा मेरा शहर
नमी नमी फ़िजाओं में बहक रही बयार है
ये कौन छेड़ता है गीत मौन के सितार पर
सुना सुना सा लग रहा ये कौन गीतकार है
नहीं मिला अभी तलक वो पेड़ हरसिंगार का
हवा हवा में घोलता जो खुशबुएँ हज़ार है
न जाने कौन छा रहा है फिर से याद की तरह
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है
3.प्रेमचंद सहजवाला की ग़ज़ल
ये मोजज़ा है क्या कोई, किसी को मुझ से प्यार है
मेरे लिए भी क्या कोई उदास-ओ-बेकरार है
जो दहशतों से कर रहा खुदा की बंदगी यहाँ
वो आदमी तो मज़हबी जूनून का शिकार है
बहार बे-बहार क्यों हुई ज़रा बताओ तो
बहार कह रही है उस को तेरा इंतज़ार है
बहुत से लोग आ रहे हैं इंतेखाब के लिए
मगर यहाँ पे आज दोस्त किस का ऐतबार है
जो तुझ को दे के ख्वाब ख़ुद खरीदते सुकून है
तुम्हारी मेरी ज़िन्दगी पे उन का इख्तियार है
4.चंद॒भान भारद्वाज की ग़ज़ल
नया नया लिबास है नया नया सिंगार है
नई नई निगाह में नया नया खुमार है
किसी के प्यार का नशा चढ़ा हुआ है इस क़दर
जिधर भी देखती नज़र बहार ही बहार है
लिपे पुते मकान के सजे हैं द्वार देहरी,
दिया जला रही उमर किसी का इंतजार है
लगी हुई है दाँव पर यों प्यार में ये ज़िन्दगी
न जीतने में जीत है न हारने में हार है
न नीद आंख में रही न चैन दिल में ही रहा
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेकरार है
दिलों दिलों की बात है नज़र नज़र का खेल यह
किसी को प्यार फूल है किसी को सिर्फ खार है
सगा रहा मगर वो वार इस तरह से कर गया
भरा है 'भारद्वाज' घाव दर्द बरकरार है
5.अहमद अली बर्क़ी आज़मी की ग़ज़ल
तुम्हीं से मेरी ज़िंदगी में जाने-मन बहार है
बताओ तुम कब आओगे तम्हारा इंतेज़ार है
बताना मेरा फर्ज़ है जो मेरा हाल-ए-ज़ार है
तुम आओ या न आओ इसका तुम को इख़्तियार है
ग़मो-अलम,नेशातो- कैफ,हसरतेँ,उदासियाँ
है जिन से मुझको साबक़ा तुम्हारी यादगार है
पुकारती हैं हम को अब भी वह हसीन वादियाँ
जहाँ कहा था मैने तुम से तुझसे मुझको प्यार है
नहीं है कैफ अब कोई वहाँ किसी भी चीज़ में
जहाँ मिले थे पहले हम यही तो वह दयार है
नहीं हो तुम तो आ रही है मेरे दिल से यह सदा
मेर लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है
जो गुलशन-ए-हयात में नेशात-ए-रूह थी मेरी
अभी भी मेरे ज़ेह्न में वह ज़ुल्फ-ए-मुशकबार है
वह चशम-ए-मस्त जिस से मेरी ऱूह में थी ताज़गी
नशा उतर चुका है उसका हालत-ए-ख़ुमार है
तुम्हारा साथ हो अगर नहीं है मुझको कोई ग़म
मुझे अज़ीज़ बर्क़ी सब से आज वस्ले-यार है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
ग़ज़ल लेखन के बारे में आनलाइन किताबें - ग़ज़ल की बाबत > https://amzn.to/3rjnyGk बातें ग़ज़ल की > https://amzn.to/3pyuoY3 ग़ज़...
-
स्व : श्री प्राण शर्मा जी को याद करते हुए आज उनके लिखे आलेख को आपके लिए पब्लिश कर रहा हूँ | वो ब्लागिंग का एक दौर था जब स्व : श्री महावीर प...
-
आज हम ग़ज़ल की बहरों को लेकर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं | आपके प्रश्नों का स्वागत है | आठ बेसिक अरकान: फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2) मु-त-फ़ा-इ-लुन(...
18 comments:
TARAHEE GAZALEN PASAND AAYEE HAIN.
DEVI NAGRANI,PURNIMA VERMAN,SAARAA
JABEEN,CHANDERBHAN BHARDWAAJ AUR
JANAAB AHMAD ALEE BURQEE SABHEE KEE
GAZALEN EK SE BADHKAR EK HAIN.SABKO
MEREE BADHAAEE.
सुंदर ग़ज़लें
सपन हज़ार है..सपन हज़ार है?
कवि कुलवंत
सपन हज़ार हैं?
बढ़िया पकड़ा है कुलवंत जी, हो गई न गलती? हैं की जगह है लिखकर गुठली देने का इरादा नहीं था दरअसल जल्दी जल्दी में उस ओर ध्यान नहीं गया। आपने याद दिलाया तो याद आया। लीजिए नई पंक्ति बनाई है--
ये चाँद है धुला धुला ये रात खुशगवार है
जगी जगी पलक में सोइ नींद बेकरार है
सतपाल भाई ने मदद की उनकी पंक्ति बेहतर बनी है। वह भी प्रस्तुत है-
ये चाँद है धुला धुला ये रात खुशगवार है
अजीब सी खुशी है ये अजीब सा खुमार है
सारी की सारी गज़लें एक से बढ़ के एक मज़ा आगया मुश्किल बहर में कितनी आसानी से कही गयी है ये सारी की सारी गज़लें यही तो उस्ताद शायरों की निशानी होती है .... सभी शायरों की लेखनी को मेरा सलाम...
अर्श
है सभी ग़ज़लेँ नेहायत शानदार
चाहता है दिल पढेँ हम बार बार
पुर्णिमा वर्मन होँ या सारा जबीन
सब का अंदाज़-ए- बयाँ है ख़ुशगवार
बर्क़ी, देवी नागररानी,चन्द्रभान
बाग़-ए-उर्दू शाएरी की हैँ बहार
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
पुर्णिमा वर्मन जी का मै तहे-दिल से इस कामेंट महिफिल मे स्वागत करता हूँ और ग़ल्ति स्वीकार करने की उनकी इस इमानदारी का मैं कायल हो गया हूँ.उनका यहाँ आना ही बड़ी बात है.
sajaai,y aap ne jo bazm hai yahaaN khayal jee
bahut hee dil pasaNd hai bahut hee shaandaar hai
aap ko bahut bahut badhaai,y ho.
Khurshidul Hasan Naiyer
ek se badhkar ek umda gazal , har gazal jaise man ko chhooti hui. satpal ji ko is mehfil ke liye bahut mubarak.
bahut umda blog ....
gazalen ...unkaa to kahana hi kya ...bahut shandaar....
पाँच उस्तादों की एक-से-बढ़कर-एक तरही पढ़ कर अचंभित हूँ।
कुछ शेर जो बहुत भाये और जिन्हें पढ़कर बस वाह-वाह निकलती जा रही है:-
नागरानी जी का "न दोस्तों न दुश्मनों में उसका कुछ शुमार है/क़तार में खड़ा हुआ वो आज पहली बार है"
पूर्णिमा जी का अद्भुत अंदाज़े-बयां "ये कौन छेड़ता है गीत मौन के सितार पर/सुना सुना सा लग रहा ये कौन गीतकार "
सारा ज़बीन जी का "जुनूँ के रास्तों मे अब गुबार ही गुबार है" वाला तो बस लाजवाब है
और भारद्वाज साब का "दिया जला रही उमर..."
और फिर बर्की साब का मक्ता..तो उफ़्फ़्फ़ !
पूर्णिमा जी की साफ़गोई को नमन!
ek se baRhkar ek ghazleN haiN. harek sukhanwar ke liye meree hazaar_haa daad! qabool keejiye!
Due to some reasons we have to remove ghazal by Madam Sara Jabeen and in place of that one we have published ghazal by Premchand sahazwala.
बहुत बढ़िया सभी बहुत पसंद आई सभी गजलें .बेहतरीन ..
मुश्किल बहर में भी इतनी सुन्दर सुन्दर ग़ज़लें .................... सब की सब गज़लकारों को सलाम है मेरा और सतपाल जी को बधाई है इतनी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए........
ग़ज़ल की क्या कहें ,,,
सब एक से बढ़कर एक,,,,,
इन सबसे बढ़कर कहने वाली बात वही है,,,,,
कुलवंत जी का बड़े मजाकिया लहजे में गलती बताना ,,,और पूर्णिमा जी का और भी हलके फुल्के से,,,एक दम विनम्र भरी सहजता से कबूलना,,,और एक नया शेर गढ़ देना,,,,
काश हर जगह ऐसे ही मंजर देखने को मिलें,,,,,
एक स्वस्थ मिसाल....
sabhi shora hazraat ko kaamyaab ghazlen mubaarak. Yeh Dwij Bhai aur Satpal bhai ki soch hai ki itne umda lekhak aajkee gahzal se jude hain.
Bhai bahut kuch nazar se guzarta hai, jo dil ko bha jaata hai
ये चाँद है धुला धुला ये रात खुशगवार है
अजीब सी खुशी है ये अजीब सा खुमार है
is chandini ko dekhiye kaisi ye bekaraar hai
koi to hai yahan bhi jo uska bhi raazdaar hai
sabhi misre ek se badkar ek hai.
agli gazal ke misre ka intezaar rahega.
Pran sharma ji ki parkhi nazar ek ghoomta hua aina hai, jo sach to kahta hai par parde mein rahkar.
usi fan ki kaayal
Devi Nagrani
सारी ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं पर एक बात खली....
पूर्णिमा वर्मन जी ने अपनी ग़ज़ल वहाँ ख़त्म की
जहाँ प्रेमचंद सहाजवला की ग़ज़ल शुरू होती है...
'मेरे लिए भी क्या कोई उदास -ओ-बेकरार है'
दोनो मे ग़ज़ल मे शामिल है.....कुछ अजीब लगा...
Post a Comment