Saturday, May 23, 2009
जब कोई दूसरा नहीं होता -मोमिन खाँ मोमिन
ये ग़ज़ल आप सब के लिए, इसी ज़मीं पर बशीर बद्र साहेब ने (दिल अगर फूल सा नहीं होता) कही थी.सोचा सब के साथ इसको सांझा किया जाए.
तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता ।
गा़लिब इस शे’र के बदले अपना सारा दिवान देने को तैयार हो गए थे.आप भी इसे पढ़ें और सोचें कि इस ग़ज़ल मे ऐसा क्या है .
ग़ज़ल:
असर उसको ज़रा नहीं होता ।
रंज राहत-फिज़ा नहीं होता ।।
बेवफा कहने की शिकायत है,
तो भी वादा वफा नहीं होता ।
जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम,
हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता ।
तुम हमारे किसी तरह न हुए,
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता ।
उसने क्या जाने क्या किया लेकर,
दिल किसी काम का नहीं होता ।
नारसाई से दम रुके तो रुके,
मैं किसी से खफ़ा नहीं होता ।
तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता ।
हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर,
हाथ दिल से जुदा नहीं होता ।
क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता ।
शब्दार्थ:
राहत फ़िज़ा--शांति देने वाला, ज़िक्र-ए-अग़यार--दुश्मनों की चर्चा,हर्फ़-ए-नासेह--शब्द नासेह (नासेह-नसीहत करने वाला)यार--दोस्त-मित्र, चारा-ए-दिल--दिल का उपचार, नारसाई--पहुँच से बाहर, अर्ज़ेमुज़्तर--व्याकुल मन का आवेदन
बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
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2 comments:
achcha laga in ghazalon se ek bar phir bahut dinon baad guzarna
हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर,
हाथ दिल से जुदा नहीं होता ।
behatareen umda sher hai . badhai.
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