Wednesday, September 2, 2009
नज़र में सभी की खु़दा कर चले - पहली किश्त
ग़ज़ल कह के हम हजरते मीर को
ख़िराज—ए—अक़ीदत अदा कर चले
इस तरही का आगाज़ हम स्व: साग़र साहब की ग़ज़ल से कर रहे हैं। हाज़िर हैं पहली तीन ग़ज़लें-
मनोहर शर्मा’साग़र’ पालमपुरी
इरादे थे क्या और क्या कर चले
कि खुद को ही खुद से जुदा कर चले
अदा यूँ वो रस्म—ए—वफ़ा कर चले
क़दम सूए—मक़्तल उठा कर चले
ये अहले-सियासत का फ़र्मान है
न कोई यहाँ सर उठा कर चले
उजाले से मानूस थे इस क़दर
दीए आँधियों में जला कर चले
करीब उन के ख़ुद मंज़िलें आ गईं
क़दम से क़दम जो मिला कर चले
जिन्हें रहबरी का सलीक़ा न था
सुपुर्द उनके ही क़ाफ़िला कर चले
ग़ज़ल कह के हम हजरते मीर को
ख़िराज़—ए—अक़ीदत अदा कर चले
गौतम राजरिषी
हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले
कदम-दर-कदम हौसला कर चले
उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले
लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले
वो आये जो महफ़िल में मेरी, मुझे
नजर में सभी की खुदा कर चले
बनाया, सजाया, सँवारा जिन्हें
वही लोग हमको मिटा कर चले
खड़ा हूँ हमेशा से बन के रदीफ़
वो खुद को मगर काफ़िया कर चले
उन्हें रूठने की है आदत पड़ी
हमारी भी जिद है, मना कर चले
जो कमबख्त होता था अपना कभी
उसी दिल को हम आपका कर चले
जोगेश्वर गर्ग
कदम से कदम जो मिला कर चले
वही चोट दिल पर लगा कर चले
न लौटे, न देखा पलट कर कभी
कसम आपकी जो उठा कर चले
सज़ा दे रहा यूँ ज़माना हमें
कि जैसे फ़क़त हम खता कर चले
उठायी, मिलाई, झुकाई नज़र
हमें इस अदा पर फना कर चले
न सोचा, न समझा मगर हम उसे
नज़र में सभी की खुदा कर चले
नहीं चाहिए वो तरक्की हमें
अगर आदमीयत मिटा कर चले
उन्हें चैन कैसे मिलेगा भला
किसी का अगर दिल दुखा कर चले
न "जोगेश्वरों" की जरूरत रही
यहाँ से उन्हें सब विदा कर चले
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17 comments:
अभी गजले एक से बढ़ कर एक ...वाह सकुन मिला पढ़ कर आभार
regards
और हाँ ये सफेद प्रतिमा बेहद मन मोहक है .....
regards
ग़ज़ल कह के हम हजरते मीर को
ख़िराज़—ए—अक़ीदत अदा कर चले
वाह, बहुत अच्चा आग़ाज़ है। तीनों ही ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं। सागर साहब के ये शेर भी लाजवाब हैं-
उजाले से मायूस थे इस क़दर
दिए आँधियों में जला कर चले
करीब उन के ख़ुद मंज़िलें आ गईं
क़दम से क़दम जो मिला कर चले
गौतम राजरिषी के ये शेर बहुत अच्छे लगे-
उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले
लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले
खड़ा हूँ हमेशा से बन के रदीफ़
वो खुद को मगर काफ़िया कर चले
जो कमबख्त होता था अपना कभी
उसी दिल को हम आपका कर चले
जोगेश्वर गर्ग के ये शेर काबिले तारीफ हैं-
नहीं चाहिए वो तरक्की हमें
अगर आदमीयत मिटा कर चले
उन्हें चैन कैसे मिलेगा भला
किसी का अगर दिल दुखा कर चले
बधाई।
bahot achhi ghazlein...
सारी गजले दिल को छु गयी। बेहतरिन
सभी गज़लें एक से बढ कर एक हैं समझ नहीं आता किस किस शेर का कहूँ गौतम जी को तो पहले बहुत पढा है हर बार कमाल दिखाते हैं। मगर बाकी गज़लें भी लाजवाब हैं सब को बहुत बहुत बधाई
LAJAWAAB HAMESHA KI TARAH ...... SAB KI SAB GAZLEN EK SE BADH KAR EK ....
bahut khoob GhazleiN Satpal jee bahut khoob dil khush huwaa asha'aar paRh kar.
KHNaiyer
ये अहले-सियासत का फ़र्मान है
न कोई यहाँ सर उठा कर चले
उजाले से मानूस थे इस क़दर
दीए आँधियों में जला कर चले
*****
उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले
लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले
********
न सोचा, न समझा मगर हम उसे
नज़र में सभी की खुदा कर चले
नहीं चाहिए वो तरक्की हमें
अगर आदमीयत मिटा कर चले
आदरणीय सागर साहब के कलाम की क्या तारीफ़ करूँ...वो बेमिसाल शायर थे...उनकी हर ग़ज़ल अलग रंग लिए होती है...कमाल की सादगी से कहे उनके अशार सीधे दिल में उतर जाते हैं...वाह...
गौतम जी उभरते हुए शायर हैं...उनकी शायरी में दिनों दिन निखर आता जा रहा है...जिन परिस्तिथियों में वो काम करते हैं उनमें शायरी के लिए समय निकलना जीवत का काम है..लेकिन वो समय निकलते है और क्या खूब कहते हैं...
गर्ग साहब की ग़ज़ल ने बहुत प्रभावित किया है...सारे शेर बेहद खूबसूरती से कहे गए हैं...
आपका ये मुशायरा जरूर कामयाब होगा इसमें कोई शक नहीं...मेरी पहले से ही मुबारकबाद कबूल करें.
नीरज
वाह वाह वाह !!!
behatareen gazalon ke liya aabhaar.
करीब उन के ख़ुद मंज़िलें आ गईं
क़दम से क़दम जो मिला कर चले
waah kya sher kaha hai palampuri ji ne
लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले
खड़ा हूँ हमेशा से बन के रदीफ़
वो खुद को मगर काफ़िया कर चले
Goutam sir ji ka likha padhna to nemat hai khuda ki
kamaal ke sher
उन्हें चैन कैसे मिलेगा भला
किसी का अगर दिल दुखा कर चले
Jogeshwar ji ka ye sher dilfareb tha
bahut shaandaar hui hai sabhi gazlen
सभी गज़लें अच्छी हैं
http://tanhaaiyan.blogspot.com
सभी गजलें लाजवाब करती हैं।
( Treasurer-S. T. )
जिन्हें रहबरी का सलीक़ा न था
सुपुर्द उनके ही क़ाफ़िला कर चले
उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले
लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले
न सोचा, न समझा मगर हम उसे
नज़र में सभी की खुदा कर चले .
हर बार की तरह इस बार भी बहुत खूब महफिल सजी है
सागर साहब का पुख्ता कलाम असर छोड़ता है
और गौतम से तो मुझे रश्क होने लगा है ,,,
वो अश`आर कहता कहाँ है ,,,,उसके यहाँ तो अश`आर खुद होने लगते हैं
जोगेश्वर जी ने गिरह बहुत अच्छी और माकूल लगाई है
सभी हज़रात को मुबारकबाद
और "ख़याल" भाई ...आपकी मेहनत
क़ाबिले-ज़िक्र , क़ाबिले-sataaiish ....
खैर-ख्वाह
---मुफलिस---
वो आये जो महफ़िल में मेरी, मुझे
नजर में सभी की खुदा कर चले
कमाल.....!!!!!!
इसे गिरह करने में बड़ी टेंशन हो रही थी....
क्या लगाये हो साब.....!!!!!
तीनो गजलें लाजवाब....
...तो एक और महफ़िल का आगाज़ हो चुका है।
देर से आने की मुआफ़ी चाहता हूँ।
सागर साब की ग़ज़ल ने क्या कहूँ क्या किया। "जिन्हें रहबरी का सलीक़ा न था / सुपुर्द उनके ही क़ाफ़िला कर चले" आह!
और गर्ग जी का "उठायी, मिलाई, झुकाई नज़र
हमें इस अदा पर फना कर चले" ये वाला शेर तो सुभानल्लाह !
मुफ़लिस जी, नीरज जी, मनु जी, श्रद्धा जी और नीर्मला जी का हृदय से शुक्रिया इस हौसलाअफ़जाई पर!
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