Monday, September 7, 2009
नज़र में सभी की ख़ुदा कर चले -तीसरी किश्त
नए और पुराने ग़ज़लकारों को एक साथ पेश करने से नए शायरों को सीखने को भी मिलता है और उनका हौसला भी बढ़ता है। इसी प्रयास के साथ हाज़िर हैं अगली तीन ग़ज़लें-
भूपेन्द्र कुमार
वो सर प्रेमियों के कटा कर चले
पुजारी अहिंसा के क्य़ा कर चले
तसव्वुर में तारी ख़ुदा ही तो था
जो रूठे सनम को मना कर चले
था मुश्किल जिसे करना हासिल उसे
निगाहों-निगाहों में पा कर चले
ख़यालों में जिनके थे डूबे वही
इशारों पे अपने नचा कर चले
भगीरथ तो लाया था गंगा यहाँ
धरा हम मगर ये तपा कर चले
तिलक राज कपूर 'राही ग्वालियरी'
जहां को कई तो सता कर चले
कई इसके दिल में समा कर चले।
मसीहा हमें वो बता कर चले
नज़र में सभी की खुदा कर चले
हमें रौशनी की थी उम्मीद पर
वो आये, चमन को जला कर चले
अकेला हूँ, लेकिन मैं तन्हा नहीं
वो यादों को अपनी बसाकर चले
न ‘राही’ को शिकवा शिकायत रही
यहॉं की यहीं पर भुला कर चले।
देवी नांगरानी
जो काँटों से उलझा किये उम्र भर
वो फूलों से दामन बचाकर चले
नहीं रूबरू हैं वो आते कभी
जो आंखें मिलाकर चुराकर चल
नयी रस्में उल्फत की आती रहीं
समय कुछ सलीके सिखाकर चले
मेरा हाल भी कुछ है उनकी तरह
जो हाल अपने दिल में दबाकर चले
जो शबनम की मानिंद बरसते थे कल
वही आज बिजली गिराकर चले
वफ़ा इस कलम ने की देवी से कुछ
तो कुछ लफ्ज़ उससे निभाकर चले
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7 comments:
सभी साहित्य-प्रेमियों से गुज़ारिश है कि वो इस आयोजन में शिरकत करें और अपने सुझाव दें
वाह !! सभी की सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक...कोई किसी से कमतर नहीं....
रचना के भाव और शिल्प सौन्दर्य ने एकदम से मुग्ध कर लिया...हम तो बस रौ में बहे इन्हें गुनगुनाते जा रहे हैं....
प्रकाशित करने हेतु बहुत बहुत आभार.
बढ़िया ख्याल
था मुश्किल जिसे करना हासिल उसे
निगाहों-निगाहों में पा कर चले
.....
हमें रौशनी की थी उम्मीद पर
वो आये, चमन को जला कर चले
.......
नयी रस्में उल्फत की आती रहीं
समय कुछ सलीके सिखाकर चले
जो शबनम की मानिंद बरसते थे कल
वही आज बिजली गिराकर चले
bahut sundar...
वो सर प्रेमियों के कटा कर चले
पुजारी अहिंसा के क्य़ा कर चले
कुमार जी का ये मतला कमाल का बन पड़ा है बहुत ही बेहतरीन बात कही है इन्होने...
राही जी ने गिरह कमाल की लगाई है बहुत ही बढ़िया वाह दिल से करोडो बधाई...
और दीदी नागरानी जी के ग़ज़ल के बारे में मैं कुछ कहूँ ये मजाल नहीं मेरी.... बहुत बहुत बधाई ..
अर्श
सतपाल जी,
आप ये अच्छा कार्य कर रहे हैं,इसे यूं हीं करते रहें....सभी रचनाकारों की रचनाएं बहुत ही अच्छी लगी...
आप से अनुरोध है के`बनारस के शायर' औए `समकालीन ग़ज़ल' का भी अवलोकन करें साथ ही मेरी ग़ज़लों के बारे मे भी अपनी राय दें...
भूपेन्द्र जी का "तसव्वुर में तारी ख़ुदा ही तो था
जो रूठे सनम को मना कर चले"
राही साब का मक्ता
और देवी जी का "समय कुछ सलीके सिखाकर चले" वाले शेर खूब भाये...
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