Thursday, September 10, 2009

नज़र में सभी की खु़दा कर चले- चौथी किश्त










खुदाया रहेगी कि जायेगी जां
कसम मेरी जां की वो खा कर चले


मनु के इस खूबसूरत शे’र के साथ हाज़िर हैं अगली तीन तरही ग़ज़लें


डी.के. मुफ़लिस

जो सच से ही नज़रें बचा कर चले
समझ लो वो अपना बुरा कर चले

चले जब भी हम मुस्कुरा कर चले
हर इक राह में गुल खिला कर चले

हम अपनी यूँ हस्ती मिटा कर चले
मुहव्बत को रूतबा अता कर चले

लबे-बाम हैं वो मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ सर झुका कर चले

इसे उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले

वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले

हमें तो खुशी है कि हम आपको
नज़र में सभी की खु़दा कर चले

चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले

किताबों में चर्चा उन्हीं की रही
ज़माने में जो कुछ नया कर चले

खुदा तो सभी का मददगार है
बशर्ते बशर इल्तिजा कर चले

कब इस का मैं 'मुफ़लिस' भरम तोड़ दूँ
मुझे ज़िन्दगी आज़मा कर चले

मनु बे-तख़ल्लुस

ये साकी से मिल हम भी क्या कर चले
कि प्यास और अपनी बढा कर चले

खुदाया रहेगी कि जायेगी जां
कसम मेरी जां की वो खा कर चले

चुने जिनकी राहों से कांटे वही
हमें रास्ते से हटा कर चले

तेरे रहम पर है ये शम्मे-उमीद
बुझाकर चले या जला कर चले

रहे-इश्क में साथ थे वो मगर
हमें सौ दफा आजमा कर चले

खफा 'बे-तखल्लुस' है उन से तो फिर
जमाने से क्यों मुँह बना कर चले

आशीष राजहंस

तेरे इश्क का आसरा कर चले
युँ तै उम्र का फ़ासला कर चले

थे आंखों में बरसों सँभाले हुए
तेरे नाम मोती लुटा कर चले

सदा की तरह बात हमने कही
सदा की तरह वो मना कर चले

खुदा ही है वो, हम ये कैसे कहें-
नज़र में सभी की खु़दा कर चले

है रोज़े-कयामत का अब इन्तज़ार
खयाले-विसाल अब मिटा कर चले

कभी भी मिले तो गिला न कहा
हर इक बार खुद से गिला कर चले

26 comments:

सतपाल ख़याल said...

अंतिम किश्त अभी बाकी है। आप अपनी ग़ज़लें भेज सकते हैं।

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

डी.के. मुफ़लिस बे-तख़ल्लुस राजहंस
सबकी ग़ज़लेँ हैँ नेहायत दिल नशीँ

देख कर सत्पाल का सुंदर ब्लाग
मेरा दिल कहता है बर्क़ी आफरीँ
अहमद अली बर्क़ी आज़मी

daanish said...

चुने जिनकी राहों से कांटे वही
हमें रास्ते से हटा कर चले

थे आंखों में बरसों सँभाले हुए
तेरे नाम मोती लुटा कर चले

नायाब शेरों का दीवान मन को chhoo
गया....सभी ने बहुत achhee कोशिश की है
satpal जी को badhaaee

---MUFLIS---

नीरज गोस्वामी said...

डी.के. मुफ़लिस:

इसे उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले

चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
*****
मनु बे-तख़ल्लुस:

खुदाया रहेगी कि जायेगी जां
कसम मेरी जां की वो खा कर चले

रहे-इश्क में साथ थे वो मगर
हमें सौ दफा आजमा कर चले
*****
आशीष राजहंस

थे आंखों में बरसों सँभाले हुए
तेरे नाम मोती लुटा कर चले

सदा की तरह बात हमने कही
सदा की तरह वो मना कर चले
*****

मुफलिस साहब और मनु जी को पहले भी पढ़ा है और जाना है की दोनों बेमिसाल शायरी करते हैं...शायरी करते नहीं शायरी जीते हैं....इसलिए उनके शेर शेर नहीं बब्बर शेर होते हैं...उनकी शान में कुछ कहने लायक मेरे पास लफ्ज़ नहीं हैं...वो लफ्जों से बहुत परे हैं. मुझे मनु जी का वो शेर जिसे आपने ऊपर कोट किया है इस तरही मुशायरे का अब तक का हासिले-मुशायरा शेर लगा.
आशीष जी को पहली बार पढ़ा और मजा आ गया.
इस तरही मुशायरे की सफलता का श्रेय आपको जाता है जो आप इतने कमाल के शायर एक साथ एक मंच पर ले आये हैं...आपने हम जैसे रसिक श्रोताओं पर उपकार किया है.
नीरज

रंजना said...

वाह वाह वाह !!! लाजवाब !!! तीनो गजल लाजवाब !!! आनंद आ गया पढ़कर

बहुत बहुत आभार आपका !!

Yogesh Verma Swapn said...

lajawaab gazalen, mubarak aur aabhaar.

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब,सभी लाजवाब। क्या कहने......

dheer said...
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महेन्द्र मिश्र said...

खूबसूरत शे’र
बहुत बढ़िया रचना....

महेन्द्र मिश्र said...

खूबसूरत शे’र
बहुत बढ़िया रचना....

सतपाल ख़याल said...

रंज की जब गुफ़्तगू होने लगी
आप से तुम तुम से तू होने लगी
दोस्तो ! बात चली है शतुर-गुर्बा की, सो शतुर माने ऊंट और गुर्बा माने बिल्ली. उर्दू शायरी में ये एक ऐब है क्योंकि किसी को आप से तुम और तुम से तू कहना गुफ़्तगू का सलीका नहीं है शे’र के एक मिसरे में किसी को ऊंट(आप ) कहना और उसी शख़्स को दूसरे मिसरे में बिल्ली(तू या तुम) कहना अदब नहीं सो इसलिए ये कायदा इज़ाद हुआ है.
इसकी परिभाषा स्वयं दाग़ साहब ने दी है-
*एक मिसरे में हो तुम दूसरे में हो तू
ये शतुर-गुर्बा हुआ मैने इसे तर्क़ किया
तो एक शे’र में किसी को एक मिसरे में तुम या तू और दूसरे में आप कहना, ये शतुर-गुर्बा नुक़्स है.
*जिसे आप गिनते थे आशना, जिसे आप कहते थे बेवफ़ा
मैं वही हूँ मोमिने-मुब्तिला तुन्हें याद हो कि न याद हो
(पहले मिसरे में "आप" दूसरे में तुम)
(मोमिन)
*मैनें माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
खाक़ हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक
पहले मिसरे में "आप" का छुपा हुआ संबोधन और दूसरे में तुम का संबोधन...
(गा़लिब)

अब सरवर साहब का ये शे’र

ज़रा ये देखिए अहले-ग़रज़ की बे-लुत्फ़ी
किसी भी लब पे तेरी गुफ़्तगू नहीं आई
अब पहले मिसरे में "देखिए"(आप का संबोधन) और दूसरे में तेरी(तू) का अगर पहले मिसरे में "ज़रा ये देख " होता तो ये दोष मुक़्त होता. ऐसे ही
मनु जी के शे’र के पहले मिसरे में "तेरे" का संबोधन है और दूसरे में भी... कि तू बुझा करे चले या जला कर चले, ये संबोधन छुपा हुआ है लेकिन "तू" का ही है तो मेरे हिसाब से तो ये शतुर-गुर्बा से मुक़्त है अगर दूसरे मिसरे में "आप" का संबोधन लगता है तो ये मिसरा ही ग़ल्त होगा क्योंकि "आप"के साथ "हैं" आएगा है नहीं, हाँ शे’र रदीफ़ के साथ इन्साफ़ नहीं करता और बेहतरी की गुंज़ाइश है लेकिन शतुर-गुर्बा नहीं है ऐसा मेरा मानना है।
*तेरे रहम पर है ये शम्मे-उमीद
बुझा कर चले या जला कर चले
बाकी आप लोग विचार करिए हो सकता है कि मैं ग़ल्त होऊं.
सादर
ख़्याल

kavi kulwant said...

bahut khoobsurat gazalen padhane ko milin.. satpaal ji aapka bahut shukriya...

dheer said...
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dheer said...
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सतपाल ख़याल said...

Dear dheer !
radeef singular hi hai
आप गौर से पढ़िए ये "है" है न कि" हैं"
बाकी सरवर साहब के शे’र के लिए जो बात आपने कही, आप हैरान होंगे उन्होंने इस बात को स्वीकारा था और मिसरा में सुधार किया था..लिंक है
http://urduduniya.net/forum/index.php?topic=2145.0%3Bwap2

दूसरा, किसी शायर के मिसरे के साथ ऐसा बेहुदा मिसरा जोड़ना अदब से तल्लुक रखने वाले को शोभा नहीं देता
"keh misre meN adaa ho rahe haiN. maslan "chale" ...

"bujhaa kar chale, yah jalaa kar chale!"

"yahaaN chappal joote utaar kar chale!"...

आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे.
सादर

dheer said...
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सतपाल ख़याल said...

Dear Dheer,
agar apko mere baat ka bura laga to mai maafi chahta hooN.Aur dhanyavaad deta hooN shirkat karne ke liye.

daanish said...

तेरे रहम पर है ये शम्मे-उमीद
बुझाकर चले या जला कर चले

मेरी शम्मा के जलने की उम्मीद अब
"तेरे" रहमो-करम पर ही है......
अब "तू" चाहे तो इसे जला कर चले
और "तू" चाहे तो इसे बुझा कर चले .

बस इतनी सी ही तो बात है ...
कहाँ ऐब नज़र आ रहा है कोई ??
"तू" तो पोशीदा है ही मिस्रा-सानी में ....

और मैं तो विशेष टिप्पणी पढ़ ही नहीं पाया हूँ
सब कुछ डिलीट-डिलीट-सा हो चूका है
लेकिन मोहतरम धीर साहब का शुक्रिया कि वोह इतने गौर से परखते हैं हर बात को ........

बहस-ओ-मुबाहिसे इसी मकसद के लिए ही हुआ करते हैं
और वैसे भी ये "आज की ग़ज़ल"
एक तरह से अदबी नशिस्त के जैसे ही है ...
एक दुसरे को समझाया जा सकता है ....
एक दुसरे से समझा जा सकता है .....

सतपाल 'ख़याल' जी कोशिशें यकीनी तौर पर
काबिले-तारीफ हैं ....काबिले-ज़िक्र हैं ....
ज़िंदाबाद !!!
---मुफलिस---

manu said...

क्या बात है जी...
यहाँ तो सब कुछ डिलीट डिलीट सा हो चुका है.....
बाकि बचे कमेंट्स से जितना कुछ पल्ले पडा है...
उस के आधार पर यही कहना चाहूंगा ... जिस शे'र का ज़िक्र है उस में कम से कम शतुर-गुर्बा दोष तो नहीं है....
हाँ शे'र अच्छा बुरा जैसा भी लगे ...वो पढने वाले की मर्जी....
पर वो कमेंट्स कहाँ गए....
कम से कम शक्ल तो दिखा देते जी...

वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे,,,,,,,???
:)

manu said...

sunder ghazalein...
:)

Anonymous said...

mohataram Manu saHeb!
Namaste!
baat kuchh khaas naheeN thee. mujhe sher meN shuturgurbah kaa shubah thaa so us par adabee bahas chal rahee thee.
ghalatfehmee kee wajh se intazaamiyaa Satpal SaHeb ko lagaa keh maine darj sher kee shaan meN gutaakhee kar dee hai. so adab kee had meN rahnaa mujhe is bahas se ziyadah munaasib lagaa. isliye maine apne jawaab delete kar diyeN.
khair kabhee kabhee yeh ho jaataa hai. Muflis saHeb kaa bahut bahut shukriyaa keh unhone merii nek-niyat ko pahchaanaa!
shukriyaa
Dheeraj Ameta "dheer"

गौतम राजऋषि said...

मनु साब के इस बेमिसाल शेर पर कुछ कह सकूँ, इतनी हैसियत नहीं रखता..आह! ’कसम मेरी जां कि वो खा कर चले.."...वो हर बार अपनी नयी अदाओं से स्तब्ध कर देते हैं।

मनु जी, सलाम!!!

और सतपाल जी आपसे शिकायर रह गयी धीर जी की टिप्पणी हटाने के लिये...कोई बेअदबी थी तो उसे एडीट किया जा सकता था। और धीर जी की बातों से शायद हमें बहस का पूरा अंदाजा हो पाता। यूँ आप पूरी तरह स्पष्ट कर ही चुके हैं...फिर भी..!

"हम अपनी यूँ हस्ती मिटा कर चले / मुहव्बत को रूतबा अता कर चले" और "इसे उम्र भर ही शिकायत रही / बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले" मुफ़लिस जी के इन शेरों पर तो दाद ही दाद...

मनु जी का मक्ता भी ज्बरदस्त है...लेकिन वो शेर तो जैसा कि नीरज जी ने फरमाया वाकई हासिले-मुशायरा शेर है।

राजहंस साब की ग़ज़ल भी खूब भायी...

@ सतपाल जी
गालिब के उस शेर में पहले मिस्रे में "आप" क्या सचमुच में छिपा है? हमने माना कि तगाफ़ुल न करोगे...अब "करोगे’ तो ’तुम’ के साथ ही आता है।

dheer said...

namaste Gautam ji!
aapkee muabbat ke liye mamnoon huN. magar woh Tippa.NiyaaN maine hee haTaayee thee. muaafi chaahtaa huN. mere khayaal se ab ham sab aagey kaa rukh karte to behtar hai.kabhee kabhee baat aayee-gayee ho jaaye to ziyadah achchhaa rahtaa hai!
saadar
Dheer

सतपाल ख़याल said...

गालिब के उस शेर में पहले मिस्रे में "आप" क्या सचमुच में छिपा है? हमने माना कि तगाफ़ुल न करोगे...अब "करोगे’ तो ’तुम’ के साथ ही आता है।"""
Dear gautam,

"करोगे’ tum aur aap dono ho sakte hain lekin jyadatar "करोगे’ ke saath aap" consider kia jata hai, it is kind of respect you know.And poetry is multidimensional,different for different people with different mind set.Mehboob KHuda bhi ho sakta hai aur laRkee bhi...baaki "करोगे’ ke saath aap hi aayega ek she'r mulahiza farmaiye..

हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो के ये अंदाज़े-गुफ़्तगू क्या है..

अब आप समज गए होंगे कि ्गा़लिब ने इसके साथ कौन सा संबोधन लगाया होगा.

manu said...

आप के साथ करोगे भी आ सकता है..बड़े आराम से.....

पर मेरे ख्याल से ...

आप करेंगे..
तुम करोगे...
तू करेगा...

ये संबोधन सही हैं...

आप करोगे हो जाता है...पर सही शब्द करेंगे ही हा आप के साथ...

manu said...

आप के साथ करोगे भी आ सकता है..बड़े आराम से.....

पर मेरे ख्याल से ...

आप करेंगे..
तुम करोगे...
तू करेगा...

ये संबोधन सही हैं...

आप करोगे हो जाता है...पर सही शब्द करेंगे ही हा आप के साथ...