Sunday, September 27, 2009
कृष्ण बिहारी 'नूर' की दो ग़ज़लें
इनका जन्म जन्म: 8 नवंबर 1925 लखनऊ में हुआ। इन्होंने शायरी में अपने सूफ़ियाना रंग से एक अलग पहचान बनाई। उर्दू और हिंदी दोनों से एक सा प्रेम करने वाले "नूर" 30 मई 2003 को इस संसार को अलविदा कह गए। इनकी दो ग़ज़लें हाज़िर हैं-
एक
आते-जाते साँस हर दुख को नमन करते रहे
ऊँगलियां जलती रहीं और हम हवन करते रहे
कार्य दूभर था मगर ज्वाला शमन करते रहे
किस ह्रदय से क्या कहें इच्छा दमन करते रहे
साधना कह लीजिए चाहे तपस्या अंत तक
एक उजाला पा गए जिसको गहन करते रहे
दिन को आँखें खोलकर संध्या को आँखे मूँधकर
तेरे हर इक रूप की पूजा नयन करते रहे
हम जब आशंकाओं के परबत शिखर तक आ गए
आस्था के गंगाजल से आचमन करते रहे
खै़र हम तो अपने ही दुख-सुख से कुछ लज्जित हुए
लोग तो आराधना में भी ग़बन करते रहे
चलना आवश्यक था जीवन के लिए चलना पड़ा
’नूर’ ग़ज़लें कह के दूर अपनी थकन करते रहे
दो
बस एक वक्त का ख़ंजर मेरी तलाश में है
जो रोज़ भेस बदल कर मेरी तलाश में है
मैं क़तरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है
मैं देवता की तरह क़ैद अपने मन्दिर में
वो मेरे जिस्म के बाहर मेरी तलाश में है
मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
मैं साज़िशों में घिरा इक यतीम शहज़ादा
यहीं कहीं कोई ख़ंजर मेरी तलाश में है
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8 comments:
lajawaab gazlen. aabhaar.
NOOR SAHEB KI UMDA GAZAL PADHNE KO UPLABDH KARANE KE LIYE DHANYAWAD. BAHUT KHOOB.
बहुत-बहुत आभार नूर साहब की ग़ज़लों के लिये.
भाई सतपाल जी कहां कहां से इतना उम्दा माल खोज कर लाते हो. धन्यवाद.
अभी उस दिन भी आपके इस ब्लाग से शिवकुमार बटालवी की दुनिया में चला गया...कई घंटे यू ही गुजर गए थे...
आते-जाते साँस हर दुख को नमन करते रहे
ऊँगलियां जलती रहीं और हम हवन करते रहे
चलना आवश्यक था जीवन के लिए चलना पड़ा
’नूर’ ग़ज़लें कह के दूर अपनी थकन करते रहे
मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
bahut hi mushkil kaam hota hai
aise nataab ash`aar meiN se kisi ek ya do ash`aar chun`naa...
ek-ek sher umdaa , meaari , aur seedhe rooh ko gehraaee tk utar jane wala ...
'khayaal' bhaai...of course, the credit goes to you....
salaaaaam . . . !!
kripyaa...
oopar tipaanee meiN
(nataab) ko
(naayaab) padheiN
shukriyaa
---MUFLIS---
मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
mera pasandida sher hai ye...krishan ji ko naman
aabhar aapne yahan share ki ye gazal
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं।
सचमुच एक अज़ीम शायर।
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