Thursday, October 1, 2009
मुनव्वर जी की ताज़ा ग़ज़ल
कल रात एक शे’र ऐसा नज़र से गुज़रा कि मैं अंदर तक सिहर उठा और ये शे’र अपने आप में एक फ़लसफ़ा है, आप इस शे’र पर पूरा एक ग्रंथ लिख सकते हैं। ये शे’र हमारे कई सवालों का- कि शे’र कैसा होना चाहिए, ग़ज़ल का मिज़ाज कैसा हो, ये फ़न कैसे सीखा जाए, बात कहने का हुनर कैसा हो आदि का जवाब है। इस शे’र के ज़िक्र से पहले बशीर साहब का ये शे’र देखिए-
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है
ये शे’र ग़ज़ल की नज़ाकत, अदा, खूबसूरती के बारे में कहा गया बेहतरीन शे’र है।बाकई ग़ज़ल शबनमी लहजा चाहती है और फूल का तितली की कहानी बयान करने जैसा ही है ग़ज़ल कहना।लेकिन जो शे’र कल मैनें पढ़ा वो इससे आगे की बात करता है। लीजिए शे’र हाज़िर है जो अपने आप में किसी दीवान से कम नहीं। आप चाहें तो इस पर Ph.d कर सकते हैं।
शे’र है-
ये फ़न कोई फ़क़ीर सिखाएगा आपको
हीरे को एक फूल की पत्ती से काटना
और ये शे’र फ़क़ीर जैसे शायर जनाब मुनव्वर राना का है। बाक़ई शायरी का फ़न किताबों से नहीं इबादतगा़हों से सीखना पड़ता है और हीरे को फूल की पत्ती से काटने जैसा हुनर है शायरी। जो नफरत तक को मुहव्बत से काट देती है और जब आज सुबह उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा कि" मैं तो कहता हूँ कि हर सियासी और सरकारी अफ़सर की तालीम का ये हिस्सा होना चाहिए कि वो पीरों-फ़क़ीरों की मज़ारों पर जाकर इस हुनर की तालीम लें कि कैसे हीरे जैसे सख़्त मुद्दों,.चोरी, दंगा, भूक़,ज़हालत,नफरत, फ़िरकापरस्ती आदि को फूल की पत्ती से काटना है, ख़त्म करना है।" ये बात शायरी पर भी बराबर लागू होती है कोई अच्छा शे’र कहना भी किसी हीरे को फूल की पत्ती से काटने से कम नही और इस इस फ़न के माहिर हैं-मुनव्वर राना। मुनव्वर राना उन शायरों मे शुमार होते हैं जिनकी बदौलत ग़ज़ल और अमीर हुई और मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि शायर होना आसान है लेकिन मुनव्वर राना बनना आसान नहीं और इतनी भीड़ में अपनी शायरी की चमक से वो अलग नज़र आते हैं। उनकी इजाज़त के साथ मुलाहिज़ा फ़रमाइए उनकी ये ग़ज़ल
ग़ज़ल
इतनी तवील उम्र को जल्दी से काटना
जैसे दवा की पन्नी को कैंची से काटना
छत्ते से छेड़छाड़ की आदत मुझे भी है
सीखा है उसने शहद की मक्खी से काटना
इन्सान क़त्ल करने के जैसा तो ये भी है
अच्छे भले शजर को कुल्हाड़ी से काटना
पानी का जाल बुनता है दरिया तो फिर बुने
तैराक जानता है हथेली से काटना
रहता है दिन में रात के होने का इंतज़ार
फिर रात को दवाओं की गोली से काटना
ये फ़न कोई फ़क़ीर सिखाएगा आपको
हीरे को एक फूल की पत्ती से काटना
मुमकिन है मैं दिखाई पड़ूँ एक दिन तुम्हें
यादों का जाल ऊन की तीली से काटना
इक उम्र तक बज़ुर्गों के पैरों मे बैठकर
पत्थर को मैने सीखा है पानी से काटना
बहरे-मज़ारे की मुज़ाहिफ़ शक़्ल
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12
मुझे इस बात खुशी है कि "आज की ग़ज़ल" अब उन अज़ीम शायरों तक पहुँच रही जो अपने आप में एक मिसाल हैं। मुनव्वर जी जैसे क़दावर शायर तक हमारा पहुँचना यकीनन एक दरिया को समंदर मिल जाने जैसा है। इस सब के पीछे द्विज जी का आशीर्वाद और आप मित्रों का स्नेह है।
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21 comments:
मुनव्वर साहब को पढ़ना यकीनन किसी इबादत जैसा है!
"मुनव्वर" सामने माँ के कभी खुलकर नहीं रोना,
जहां बुनियाद होती है नमी अच्छी नहीं होती
उनका ये शेर तो मेरे लिए किसी गीता या कुरान से कम नहीं!!
मुनव्वर साहब को 'आज की ग़ज़ल' में पेश करके सतपाल साहब ने इस ब्लॉग को मुनव्वर कर दिया है!!
ये फ़न कोई फ़क़ीर सिखाएगा आपको
हीरे को एक फूल की पत्ती से काटना
मुमकिन है मैं दिखाई पड़ूँ एक दिन तुम्हें
यादों का जाल ऊन की तीली से काटना
ऐसे शेर कहने वाली कलम को मेरे हज़ार सजदे!!
मुनव्वर जी की ताज़ा ग़ज़ल बेहद अच्छी लगी . बढ़िया प्रस्तुति .
सतपाल जी
मुनव्वर राणा जी की ग़ज़ल साइट पर लाकर आपने ग़ज़ल प्रेमियों को एक अनूठी दावत का मज़ा दिया है। वे शायरों के शायर हैं। इस ग़ज़ल में बहुत से ख़ूबसूरत शेर मौजूद हैं। एक की तरफ़ आपने इशारा किया है, दूसरा शेर बड़ों के महत्व को दर्शाते हुए कहता हैः
इक उम्र तक बज़ुर्गों के पैरों मे बैठकर
पत्थर को मैने सीखा है पानी से काटना
मुनव्वर राणा जी को मैने लंदन में एक मुशायरे में सुना था, आज पढ़ा है - टेलिफ़ोन पर कलकत्ते में बात भी की है। उम्मीद है इस अज़ीम शायर से रिश्ते और मज़बूत होंगे।
तेजेन्द्र शर्मा
महासचिव - कथा यूके
लंदन
waah! saHeb! kyaa heekhoob ghazal kahee hai! phir us par Ranjan saHeb ne jo ashaar pesh kiyaa, dil baagh baagh ho gayaa.
duaa hai keh munavvar saHeb jaisee hastee kaa syaa ham par barkaraar rahe.
-dheer
मुनव्वर जी का हर शेर दिमाग़ से बात करता है...
‘समय के साये’ वाले समय जी की तरह दिमाग़ से रूबरू...
मुनव्वर साहब को पढ़ना यकीनन किसी इबादत जैसा है!
मैं भी इस बात से हम राय हूँ. उनकी : "मां " के हर सेर का हर शब्द एक लोरी सा जन पड़ता है. दिल से दिल तक जो सच छू जाए उस कलम के हकदार है श्री मुनव्वर साहब
इन्सान क़त्ल करने के जैसा तो ये भी है
अच्छे भले शजर को कुल्हाड़ी से काटना
देवी नागरानी
vakai anupam rachna, har sher behatareen/lajawaab, aabhaar,
ये फ़न कोई फ़क़ीर सिखाएगा आपको
हीरे को एक फूल की पत्ती से काटना
मुनव्वर राना साहब की इस बेमिसाल ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए आपको बधाई.
इस शेर में जिस फ़क़ीर की बात 'राना'साहब ने की है , मैं तो राना साहब को ही वो फ़क़ीर मानता हूँ जिससे हीरे को फूल की पत्ती से काटने का हुनर सीखा जा सकता है. लेकिन यह काम भी इतना आसान नहीं हैं. 'मुनव्वर' राना जैसा फ़क़ीर भी तो कोई हो कर दिखाए!
बड़े भाई सतपाल जी नमस्कार,
दिनों बाद ब्लॉग पे लौटा हूँ , मगर आज की ग़ज़ल पे जैसे ही निगाह पड़ी और वो भी मेरे पसंदीदा शाईर जनाब मुनव्वर साहिब ... फिर तो पूछने की बात ही नहीं है ... वाकई राणा साहिब को पढ़ना शायरी में कुरान पढ़ने की तरह है इनके किसी शे'र के तरफ मैं इशारा नहीं करूँगा ... कुछ दिन पहले मेरी भी बात हुई थी मुनव्वर साहिब से .. मुझे ऐसा लगा जैसे शायरी के खुदा से बात कर रहा हूँ... इस अनमोल पेशगी के लिए दिल से आपका आभार ...
और बड़े भाई द्विज जी को सादर प्रणाम .
अर्श
जनाबे ख़याल साहिब
इन्सान के जेहन पे ख़यालात का क़र्ज़ होता है
और वोह उसे शेर की सूरत में अदा कर देता है
सहरा पर अब्र बरस जाता है अंगडाई ले कर फूल खिलने लगते हैं
कानो में मिसरी घुल जाती है दूर गूंजी हो जैसे शहनाई
दिल जो सूना मकान था कल तक उसपे रौनक पलट के फिर आयी
जनाबे मुन्नवर राना साहिब का कलाम पढ़ा दिल बाग बाग हो गया
में आपको सलाम पेश करता हूँ
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
सभी अदब-नवाज़ दोस्तों से इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ
कि मनव्वर राणा को पढ़ना किसी भी तरह
इबादत से कम नहीं है .....
मुझe इस अज़ीम हस्ती से दो बार
मिल पाना नसीब हो चुका है....
फिरोजपुर और पठानकोट के मुशायरों में .....जनाब को रु-ब-रु सुनना
एक अलग ही तरह ki कैफियत से
गुज़रना होता है
ग़ज़ल को jo वक़ार जनाब राणा साहब ने बख्शा है वो अपने आप में एक मिसाल है
पानी का जाल बुनता है दरिया तो फिर बुने
तैराक जानता है हथेली से काटना
इक उम्र तक बज़ुर्गों के पैरों मे बैठकर
पत्थर को मैने सीखा है पानी से काटना
ऐसे ना-जाने कितने nayaab अश`आर
आज हम सब के लिए सरमाया बन चुके हैं
सतपाल जी,,,,
आप यकीनन मुबारकबाद के हक़दार हैं
---मुफलिस---
मैं आपके ब्लाग पर आती जरूर हूँ मगर सच कहूँ तो गज़ल अभी सीख रही हूँ और इतने बडे बडे शायरों को प्रतिक्रिया देना लगता है जैसे सूरज को दीप दिखा रही हूँ बस इन सब को नमन ही कर सकती हूँ बधाई आपको आप ये मशाल जलाये हैं और हम सब को बडे शायरो के दर्शन करवा रहे हैं आभार इस लाजवाब गज़ल के लिये और मुनव्वर जी को नमन्
मुनव्वर साहब to lazwaab hain...
मुनव्वर साहब यूंही गजल के सरताज नहीं कहे जाते हैं।
Think Scientific Act Scientific
उर्दू में निदा फ़ाज़ली जैसे वरिष्ठ शायर ग़ज़ल को मीनाकारी का काम मानते हैं । इससे अलग मुनव्वर राना के यहाँ रिश्तों की ख़ुश्बू, सादगी का जादू और लफ़्ज़ों को बरतने का सलीक़ा कमाल का है। हम हिंदी वालों को उनका एक शेर हमेशा याद रखना चाहिए-
ग़ज़ल तो फूल से बच्चों की मीठी मुस्कराहट है
ग़ज़ल के साथ इतनी रुस्तमी अच्छी नहीं होती
एक अच्छा शायर होने के साथ-साथ वे एक बढ़िया इंसान भी हैं। मुझे उनकी दोस्ती पर फ़ख्र है।
देवमणि पाण्डेय, मुम्बई
वाक़ई मुनव्वर जी की गज़लों से गुज़रना शायरी के एक पूरे इतिहास से गुज़रना है. मैं तो उनका फ़ैन हूं.
शायरी के मैदान में जब कदम रखा था तो कुछ अजीम शायरों के शेर हमेशा जेहन में गूंजते रहते थे उनमे से एक मुनव्वर राना हैं.
ग़ज़ल के बर्रे में कुछ कहूं तो कम ही होगा, हर शेर ख़ुद में मुकम्मल है, वाकई हीरे को फूलों के पट्टी से काटने का हुनर तो उनके पास है ही.
yakinan aapne jo bhi kaha hai ..chirsatya hai.
बहुत खूब भाटिआजी !
मुनव्वर राणा जी की ग़ज़ल पढ़ कर मज़ा आ गया.
"आज की ग़ज़ल" ग़ज़ल प्रेमियों के लिए बहुत उपयोगी और ज्ञान-वर्धक साबित हो रही है.
बधाई एवं साधुवाद !
जोगेश्वर गर्ग
sab doston ka shukria !
"आज की ग़ज़ल" का ये नायाब पन्ना जाने कैसे मुझसे छूट गया था....
मुनव्वर साब तो हमारे लिये खुदा की हैसियत रखते हैं...ये तो स्वर्णिम पन्ना बन गया इस अनूठी ग़ज़ल-पत्रिका का !
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