Saturday, February 27, 2010
होली मुबारक
उधर से रंग लिए आओ तुम, इधर से हम
गुलाल अबीर मलें मुँह पे होके खुश हर दम
खुशी से बोलें, हँसे , होली खेल कर बाहम
बहुत दिनों से हमें तो तुम्हारे सर की क़सम
इसी उम्मीद में था इन्तज़ार होली का... नज़ीर अकबराबादी
"आज की ग़ज़ल" की तरफ़ से आप सब को होली मुबारक हो। चंद अशआर आप लोगों की नज़्र हैं-
धर्म क्या औ’ जात क्या, रूप क्या औकात क्या
रंग होली का हो बस, इससे बड़ी सौगात क्या... तिलक राज कपूर
ला के बाज़ार से रगीन गुलाल इतराएँ
हाथ रुख्सारों पे फिसला के मना लें होली...प्रेमचंद सहजवाला
खेलिए होली ब्लागा’इस्पाट पर
रंग में पड़ने न पाए कोई भंग...अहमद अली बर्की
खुशबू को मु्ट्ठियों में क़ैद करके क्या मिलेगा
है मज़ा जब खुशबुओं में क़ैद होकर तुम दिखाओ...दीपक गुप्ता
दुश्मन भी अपना हो जाए,रंगों में ऐसी ताकत है
आज सभी उन रंगों की हमको यार ज़रुरत है..विलास पंडित"मुसाफ़िर"
रंगों की बौछार तो लाल गुलाल के टीके
बिन अपनों के लेकिन सारे रंग ही फीके...चाँद शुक्ला
तन भिगोया मन भिगोया आत्मा भीगी
प्यार ही पिचकारियों का नाम हो जैसे...चन्द्रभान भारद्वाज
ऐसी चली पुरवाई होली में प्यारे
गूँज उठी शहनाई होली में प्यारे
भाग्य खिला फागुन का खूब मज़े लेकर
मस्ती क्या लहराई होली में प्यारे
गले मिले सब भाई -भाई ही बनकर
धन्य हुई हर माई होली में प्यारे
रंग सभी ए "प्राण" लगें सुन्दर-सुन्दर
पाट दिलों की खाई होली में प्यारे ...प्राण शर्मा
मेरा एक शे’र भी आपकी नज़्र है-
आप दीवारों पे अब छिड़को गुलाल
वो तो ग़ैर अब हो चुका है देखिए...सतपाल ख़याल
अब न तो वो संगी-साथी रहे , न ही बचपन की वो गलियां , वो घर, वो शहर, सब कुछ बदल गया है । पड़ोस में रहने वाले मुझे नहीं जानते और न ही मैं उन्हें। अजीब सा माहौल है आजकल,ऐसे में सुरजीत पात्र का लिखा और हंस राज हंस का गाया..
दूर इक पिंड विच निक्का जिहा घर सी
कच्चियां सी कंधा ओहदा दोहरा जिहा दर सी...
सुनिए ये आपको आपके गांव की गलियों तक ले जाएगा।
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9 comments:
वाह सतपाल भाई, आपने तो सभी को एक ही मंच पर ले आये।
सहजवाला साहब इस उम्र में भी बड़े रंगीन हो रहे हैं।
दूर इक पिंड विच निक्का जिहा घर सी
कच्चियां सी कंधा ओहदा दोहरा जिहा दर सी... के लिये विशेष आभार।
सभी ब्लॉग विजिटर्स, मित्रों, बंधु-बाँधवों को होली की शुभकामनायें।
सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
सतपाल जी आपके दर्द को आम जन के ददै के रूप में बयॉं की है 'रास्ते की धूल' पर। अगर हम महात्मा गॉंधी की सोच से चलते रहे होते तो यह मशीनीकरण और भौतिक विकास भले ही नहीं आता लेकिन आदमी मशीन नहीं बनते, रिश्तों में गर्माहट बनी रहती।
अब तो रिश्तों को निभाने से ठंड लगती है,
चलो भुलायें इन्हें और काम पर निकलें।
सभी सन्देश सुन्दर हैं.
आपको होली की रंगीली बधाई.
- रंग बरसे
HOLI ke mubarak mauqe par
itne rangoN ki bauchhaar
bahut bhalee lagee....
bahut bahut shukriyaaaaa
holi ki samast shubhkamanayen.........
arsh
होली के प्यार भरे शेरों के लिये आभार ।
I enjoyed this post, thanks for sharing
Great blog thanks for posting this.
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