द्विजेन्द्र द्विज जी की एक ताज़ा ग़ज़ल आप सब की नज़्र कर रहा हूँ। द्विज जी से तो सब लोग वाकिफ़ ही हैं। आप उनकी ग़ज़लें कविता-कोश पर यहाँ पढ़ सकते हैं। उनकी एक नई ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिए-
ग़ज़ल
मिली है ज़ेह्न—ओ—दिल को बेकली क्या
हुई है आपसे भी दोस्ती क्या
कई आँखें यहाँ चुँधिया गई हैं
किताबों से मिली है रौशनी क्या
सियासत—दाँ ख़ुदाओं के करम से
रहेगा आदमी अब आदमी क्या ?
बस अब आवाज़ का जादू है सब कुछ
ग़ज़ल की बहर क्या अब नग़मगी क्या
हमें कुंदन बना जाएगी आख़िर
हमारी ज़िन्दगी है आग भी क्या
फ़क़त चलते चले जाना सफ़र है
सफ़र में भूख क्या फिर तिश्नगी क्या
नहीं होते कभी ख़ुद से मुख़ातिब
करेंगे आप ‘द्विज’जी ! शाइरी क्या ?
बहरे-हज़ज की मुज़ाहिफ़ शक़्ल
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
एक ग़ज़ल
अश्क़ बन कर जो छलकती रही मिट्टी मेरी
शोले कुछ यूँ भी उगलती रही मिट्टी मेरी
द्विज जी की आवाज़ में सुनिए-
बहुत समय हो गया तरही मुशायरे को,सो तरही मिसरा भी आज दे देते हैं। अब बात करते हैं अगले तरही मिसरे कि सो ये है चार फ़ेलुन का मिसरा-
कौन चला बनवास रे जोगी
रदीफ़- रे जोगी
काफ़िया- सन्यास,वास,रास,आस आदि
पूरा शे’र है
विधवा हो गई सारी नगरी
कौन चला बनवास रे जोगी
राहत इन्दौरी साहब की ये ग़ज़ल है जो पिछली बार शाया हुई है। आप अपनी ग़ज़लें 27 अप्रैल के बाद भेजें ताकि ग़ज़ल मांजने और निखारने का समय सब को मिल सके और अच्छी ग़ज़लों का सब आनंद ले सकें।
22 comments:
हमें कुंदन बना जाएगी आख़िर
हमारी ज़िन्दगी है आग भी क्या...
Dil pe aa lagi, ye she'r.
द्विज साहब की बेहतरीन
ग़ज़ल पढ़वाने के लिये
सरपाल ख्याल आपका शुक्रिया
सियासत—दाँ ख़ुदाओं के करम से
रहेगा आदमी अब आदमी क्या ?
वाह
हमें कुंदन बना जाएगी आख़िर
हमारी ज़िन्दगी है आग भी क्या
बहुत खूब.
बेहतरीन ग़ज़ल और बेहतरीन शाइरी ! सतपाल जी को शुक्रिया कि उन्होंने इतनी अच्छी ग़ज़ल पढने का मौका दिया !
(पहला कमेन्ट हटा दें...)
बस अब आवाज़ का जादू है सब कुछ
ग़ज़ल की बहर क्या अब नग़मगी क्या
वाह ...क्या तंज़ है...लाजवाब...द्विज जी की शायरी कमाल की होती है...उनको पढना एक अनुभव है...ऐसा अनुभव जो और कहीं हासिल नहीं होता...उनकी सोच और कहने का अंदाज़ हम जैसे ग़ज़ल के तालिबे इल्मों के लिए तोहफे से कम नहीं...बहुत कुछ सीखने को मिलता है उनके कलाम से...आपका शुक्रिया उन्हें पढवाने के लिए..
नीरज
its just fabulous!
bahut acha
shkaher kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
एक ओर तीखे कटाक्ष तो दूसरी ओर सोच की परिपक्वता लिये एक बेहतरीन ग़ज़ल।
आदाब सतपाल जी ,
आज तो जैसे एक ख़ाब को हकीक़त होते देख रहा हूँ .. उस्ताद शाईर और मेरे बड़े भाई द्विज जी को पढ़ना इससे कही भी कमतर नहीं ... आपकी ब्लॉग पर वेसे तो बहुत सारे शाईर आते हैं मई पढता भी हूँ मगर अपने विचार से अवगत नहीं करा पता इसके लिए मुआफी चाहूँगा ...
आज द्विज जी की ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ ... आज जी उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ है मेरी एक ग़ज़ल पर और मेरे लिए और मेरी ग़ज़ल के लिए जमानत ही कहूँगा ...
ऐसे सच्चे इंसान की सच्ची ग़ज़लों के बारे में क्या कहूँ ... हर शे'र अचंभित करता है के हाँ ये खयालात भी हो सकते हैं ग़ज़लगो में ... मेरा सादर प्रणाम उनको कहें...
हम जैसे नए सिखने वालों के लिए उनकी ग़ज़ल एक सिख जैसी है
आपका आभार
अर्श
wow !!!!
bahut sundar rachna he
shekhar kumawat
kavyawani.blogspot.com/
द्विज जी की गजल पर हम जो कहेंगे कम ही रहेगा
सतपाल भाई पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
कई आँखें यहाँ चुँधिया गई हैं
किताबों से मिली है रौशनी क्या
यह शेर चौंका गया
Lajawaab gazal hai DWIZ ji ki ... bahut arse ke baad padhi hai DWIZ ji ki koi gazal .. par hamesha ki tarah taazgi liye ...
सतपालजी !
द्विजजी को पढवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
"बस अब आवाज़ का जादू है सब कुछ
ग़ज़ल की बहर क्या अब नग्मगी क्या"
बहुत खूबसूरत तंज किया है आपने द्विज जी.
ग़ज़ल गर है ग़ज़ल तो फिर अमर है
कहो आवाज़ की है ज़िंदगी क्या ?
बहुत अच्छी ग़ज़ल कहते हैं द्विज जी
करें इस पर भला हम टिप्पणी क्या?
बस अब आवाज़ का जादू है सब कुछ
ग़ज़ल की बह्र क्या, अब नग्मगी क्या
फ़क़त चलते चले जाना सफ़र है
सफ़र में भूक क्या, फिर तश्नगी क्या
जिंदगी
और जिंदगी के आस-पास के तमाम हालात को खूबसूरत और आसान अलफ़ाज़ में पिरो कर
जब कोई ग़ज़ल पढने को मिल जाए,,
तो ...
जनाब 'द्विज' जी का नाम
बे-साख्ता ज़बां पर आ जाता है
बातों-बातों में ही उम्दा शेर कह जाना,,
'द्विज' जी का ही कमाल है
और ये ग़ज़ल.....
मिसाल है इस बात की...
मुबारकबाद .
"लोक-नृत्यों के कई ताल सुहाने बन कर
मेरे पैरों में थिरकती रही मिट्टी मेरी"
वाह! ये शेर सिर्फ और सिर्फ द्विज भाई ही लिख सकते हैं और कोई नहीं...ऊपर से उनकी आवाज में सुनना। शुक्रिय...शुक्रिया...शुक्रिया, सरपाल भाई...लाख-लाख शुक्रिया इस बेशकिमती आडियो के लिये।
लेकिन दो-दो ग़ज़लों को एक साथ देकर नाइंसाफी की है आपने। इस मक्ते पे तो जितनी भी दाद मिले, कम है "नहीं होते कभी ख़ुद से मुख़ातिब
करेंगे आप ‘द्विज’जी ! शाइरी क्या ?"
द्विज जी को नमन!
द्विज जी को पढ़ना और सुनना बहुत अच्छा लगा ।
-देवमणि पाण्डेय
है `द्विज' की शाइरी में फ़िक़्रो-फ़न की ताज़गी
उनकी ग़ज़लें और नज़्में हैं हदीसे-दिलबरी
है निहायत ख़ूबसूरत उनका मेयारी कलाम
है सभी अशआर में अस्री अदब की चाशनी
उनका अन्दाज़े-बयाँ `बर्क़ी' है बेहद दिलनशीं
बादा-ए-इशरत का है इक जाम उनकी शायरी
bas ab aawaaz kaa jaadu hai sab kuchh.........
jaan dene ko ji kartaa hai..is she'r par...
धन्यवाद सतपाल जी इस बार हम भी प्रयास करेंगे ताकि आप का आशीर्वाद मिल सकें. और मेरी लेखनी थोड़ी और समृद्ध हो जाए....
umda gazal.. dwiz ji to khud master hain..
Bhai Satpal ji,
Dwij ji ki itani sunder ghazal padwane ke liye hardik dhanyawad aur dwij ji ko bahut bahut badhai.
बस अब आवाज़ का जादू है सब कुछ
ग़ज़ल की बहर क्या अब नग़मगी क्या
वाह क्या बात कह दी :-)
द्विज जी आवाज़ में उनकी ही ग़ज़ल को सुनना भी बहुत रोमांचक रहा
लोक-नृत्यों के .............
मेरे पैरों में थिरकती रही मिट्टी मेरी
और उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ क्या मक्ता है
बहुत शानदार शेर कहे है
हमें कुंदन बना जाएगी आख़िर
हमारी ज़िन्दगी है आग भी क्या...
bahut hi abhibhoot karti anubhuti
जहां पढने से इतना लुत्फ़ मिलता
वहां इन मौन शब्दों की चुपी क्या
daad ke saath
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