Monday, October 25, 2010

इस बार का तरही मुशायरा

इस बार का तरही मिसरा शायर जनाब मुहम्मद मुनीर ख़ाँ नियाज़ी की ग़ज़ल से लिया गया है। ये रहा मिसरा-

सोच के दीप जला कर देखो

बहर है- चार फ़ेलुन (22x4)
काफ़िया है- आ, पा, जा, खा , जला आदि। ये स्वर साम्य काफ़िया है।
रदीफ़ है- कर देखो ।

पूरा शे’र ऐसे है-

आज की रात बहुत काली है
सोच के दीप जला कर देखो

इस ग़ज़ल को आप गुलाम अली साहब की आवाज़ में सुन भी लीजिए-



तीन दिन के बाद आप ग़ज़लें भेज सकते हैं । बाकी फ़ेलुन की बहर है इसे मात्रिक छंद की तरह इस्तेमाल न करें और लघु से मिसरा न शुरू हो तो बेहतर है। उम्मीद करता हूँ कि ये मुशायरा यादगार होगा और सभी शायर , जो पिछले मुशायरों में हिस्सा ले चुके हैं वो शिरकत करेंगे और नये शायर भी तबअ आज़माई करेंगे।

1 comment:

daanish said...

सोये लफ्ज़ जगा कर देखो
दिल की बात बता कर देखो
बज़्म 'ख़याल' सजी है फिर से
सुर से ताल मिला कर देखो


कोशिश करेंगे हुज़ूर.....!!