पाकिस्तान के मुलतान शहर के शायर इक़बाल अरशद की एक बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल नज़्र कर रहा हूँ। जब किसी संजीदा शायर की सोच ग़म की खौफ़नाक गहराइयों में डूबती है तभी ऐसी ग़ज़ल की आमद होती है। सच्ची ग़ज़ल वही है जिसमें सुनने वाला तिनके तरह शे’रों के साथ बह जाए।
ग़ज़ल
रगों में ज़हर के नश्तर उतर गए चुप-चाप
हम अहले-दर्द जहाँ से गुज़र गए चुप-चाप
किसी पे तर्के-तअल्लुक का भेद खुल न सका
तेरी निगाह से हम यूँ उतर गए चुप-चाप
पलट के देखा तो कुछ भी न था हमारे सिवा
जो मेरे साथ थे जाने किधर गए चुप-चाप
उदास चहरों में रो-रो के दिन गुजारे मियां
ढली जो शाम तो हम अपने घर गए चुप-चाप
हमारी जान पे भारी था गम का अफ़साना
सुनी न बात किसी ने तो मर गए चुप-चाप
बहरे-मुजतस की मुज़ाहिफ़ शक्ल
म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन
1212 1122 1212 22/ 112
अब इस ग़ज़ल को इक़बाल बानो की दिलकश आवाज़ में सुनिए-
और तरही मुशायरे के मिसरे की एक बार फिर आपको याद दिला देता हूँ-
सोच के दीप जला कर देखो
बहर है- चार फ़ेलुन (22x4)
काफ़िया है- आ, पा, जा, खा , जला आदि। ये स्वर साम्य काफ़िया है।
रदीफ़ है- कर देखो ..आपकी ग़ज़लों का इंतज़ार रहेगा...धन्यवाद
6 comments:
waah.. kya naayaab ghazal hai..
sach mein bah gaye...
इक़बाल साहब की गज़ल से रू-ब-रू कराने के लिये शुक्रिया और बधाई भी।
इकबाल साहेब की शायरी ! वाह कहें या आह कहें ...बात एक ही है ...इतना दर्द है कि नश्तर सा उतर गया दिल में चुपचाप ..
वाह बस निशब्द हूँ तीन बार सुन चुकी हूँ। धन्यवाद इसे सुनवाने और पढवाने के लिये। दिल तक उतर गयी मधुर आवाज़।
bahut khoobsoorat ghazal...
wah zanaab wah..
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