सबको दीपावली की शुभकामनाओं के साथ इस तरही मुशायरे का आगाज़ करते हैं। मिसरा-ए तरह " सोच के दीप जला कर देखो" पर ग़ज़लें मिलनी शुरू हो चुकी हैं और जो शायर रह गए हैं उनसे भी अनुरोध है कि जल्दी ग़ज़ल पूरी करें और भेजें।हमारे पहले शायर हैं- चंद्रभान भारद्वाज । इनके इस खूबसूरत शे’र-
स्याह अमावस पूनम होगी
सोच के दीप जला कर देखो
के साथ लीजिए इनकी ये तरही ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिए-
चंद्रभान भारद्वाज
मन को पंख लगाकर देखो
पार गगन के जाकर देखो
खुद आकाश सिमट जायेगा
बाँहों को फैला कर देखो
इतनी सुंदर बन न सकेगी
दुनिया लाख बना कर देखो
धरती स्वर्ग नज़र आएगी
दीवाली पर आ कर देखो
स्याह अमावस पूनम होगी
सोच के दीप जला कर देखो
आँखों में फुलझड़ियाँ चमकें
प्यार किसी का पा कर देखो
अपना दर्द छिपाकर रखना
औरों का सहला कर देखो
नफ़रत की ऊँची दीवारें
प्यार से आज ढहा कर देखो
'भारद्वाज' रसिक ग़ज़लों का
ग़ज़लें आप सुना कर देखो
दिपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ !
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12 comments:
मन को पंख लगाकर देखो
पार गगन के जाकर देखो
खुद आकाश सिमट जायेगा
बाँहों को फैलाकर देखो
में दायरों के जो दो रूप आपने दिये हैं, अद्वितीय हैं। मन को पंख लगा दिये तो कहीं भी पहुँचा जा सकता है और बॉंहें फैला दीं तो कुछ भी उसमें समटा जा सकता है।
खुद आकाश सिमट जायेगा
बाँहों को फैलाकर देखो....
तरही का आगज बहुत ही शानदार हुआ है
गज़ल बहुत ही सुंदर है, बधाई ...
सभी को दीपवली की बहुत बहुत शुभकामनाये....
नफ़रत की ऊँची दीवारें
प्यार से आज ढहा कर देखो
bahut khoob...sunder
ख़ुद आकाश सिमट जायेगा, बांहों को फैला कर देखो।
सुन्दर शे'र अच्छी ग़ज़ल।
(आंखों में फुलझड़ियां चमके, वाली पंक्ति में मुझे कुछ कमी लग रही है।
सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ. ऽ. ऽ+++++++++++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ. ऽ. ऽ+++++++++++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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खुद आकाश सिमट जाएगा
बाहों को फैला कर देखो
अपना दर्द छिपा कर रखना
औरों का सहला कर देखो
ऐसे नायाब और कामयाब अश`आर कहने वाले
शाइर की खिदमत में हज़ारों सलाम ...
जनाब चन्द्र भारद्वाज जी को पढ़ना
अपने आप में इक अनोखा अनुभव रहता है
उनके लेखन में शाईसत्गी और पुख्तगी दोनों का
अजब और अनुपम मेल देखने को मिलता है
खूबसूरत ग़ज़ल पर ढेरों मुबारकबाद ... !!
बहुत ही अच्छी गज़ल. बधाई.
भारद्वाज साहब की ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी जिसमें दिल को छूने वाले अश्आर हैं।
सभी अश्आर अच्छे लगे लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से लबरेज यह शे'र खास तौर पर भाया :
खुद बाकाश सिमट आएगा
बाहों को फैला कर देखो
खूबसूरत ग़ज़ल
आदरणीय भारद्वाज जी की ग़ज़लों पर क्या कहा जा सकता है सिवा 'वाह' के...छोटी बहर में कमाल के शेर कहे हैं वाह..वा...सारे के सारे शेर बेहतरीन हैं किसे अलग से कोट करूँ?
कमाल का आगाज़ हुआ है तरही का...
नीरज
खुद आकाश सिमट जाएगा
बाहों को फैलाकर देखो
नफ़रत की ऊँची दीवारें
प्यार से आज ढहा कर देखो
बहुत उम्दा शेर
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