इस चौथी क़िस्त में हम मिसरा-ए-तरह " सोच के दीप जला कर देखो" पर नवनीत शर्मा और तिलक राज कपूर की ग़ज़लें पेश कर रहे हैं। उम्मीद है कि ये ग़ज़लें आपको पसंद आऐंगी।
नवनीत शर्मा
खुद को शक्ल दिखा कर देखो
शख्स नया इक पा कर देखो
भरी रहेगी यूं ही दुनिया
आकर देखो, जाकर देखो
गा लेते हैं अच्छा सपने
दिल का साज बजा कर देखो
पीठ में सूरज की अंधियारा
उसके पीछे जा कर देखो
आ जाओगे खुद ही सुर में
अपना होना गा कर देखो
क्या तेरा , क्या मेरा प्यारे
ये मरघट में जाकर देखो
मिल जाएं तो उनसे कहना
मेरे घर भी आकर देखो
डूबा है जो ध्यान में कब से
उसके ध्यान में आकर देखो
दूजे के ज़ख्मों पर मरहम
ये राहत भी पा कर देखो
ज़ेहन में कितनी तारीकी है
सोच के दीप जला कर देखो
दूसरे शायर:
तिलक राज कपूर
चोट जिगर पर खाकर देखो
फिर दिल को समझा कर देखो
जाने क्या-क्या सीखोगे तुम
इक बच्चा बहला कर देखो
जिसकी कोई नहीं सुनता है
उसकी पीड़ा गा कर देखो।
कुछ देने का वादा है तो
बदरी जैसे छा कर देखो
जिसको ठुकराते आये हो
उसको भी अपना कर देखो
लड़ना है काली रातों से
सोच के दीप जला कर देखो
खून पसीने की, मेहनत की
रोटी इक दिन खाकर देखो
दर्द लहू का क्या होता है
अपना खून बहा कर देखो
चिंगारी की फि़त्रत है तो
घर में आग लगाकर देखो
अगर दबाने की इच्छा है
चाहत एक दबा कर देखो
‘राही’ नाज़ुक दिल है इसको
ऐसे मत इठला कर देखो
16 comments:
बहुत उम्दा ग़ज़ल है सर जी ....
इन ग़ज़लों में वैचारिकी और संवेदना की युगलबंदी देखने लायक है।
पीठ में सूरज की अँधियारा
उसके पीछे जा कर देखो
गा लेते हैं अछा सपने
दिल का साज़ बजा कर देखो
नवनीत शर्मा जी के अपनी-ही-तरह के
ये अश`आर ... सोचने पर मजबूर करते हैं
उनकी मेहनत को 'ख़याल' जी ने सराहा है
शुक्रिया
जाने क्या-क्या सीखोगे तुम
बच्चों को बहला कर देखो
चोट जिगर पर खा कर देखो
फिर दिल को समझा कर देखो
तिलक राज जी की शाईरी ...
मानो, हर दिल अज़ीज़ शाईरी ......
ग़ज़लियात की हर शर्त को समझ कर,,,मान कर ही
शेर कहते हैं . . . .
उन्हें सलाम
पीठ में सूरज की अँधियारा
उसके पीछे जा कर देखो
नवनीत शर्मा जी, बहुत ही सुंदर गज़ल....
चोट जिगर पर खा कर देखो
फिर दिल को समझा कर देखो
तिलक राज जी, बहुत ही सधे हुए शेर कहे हैं आप ने, बहुत ही उम्दा गज़ल .....
अच्छे ग़ज़लियात , दोनों ग़ज़लगो को मुबारक बाद।
बहुत अच्छी गज़लें..
नवनीत जी के गज़ल बहुत अच्छी लगी.. यह शेर "पीठ में सूरज की अंधियारा.." बेहद पसंद आया.
तिलक जी की तो हर गज़ल ही कबीले तारीफ़ होती है. यह गज़ल भी वैसी ही है. पढ़ कर दिल से वाह निकलती है.
बहुत खूब , एक ही पंक्ति पर शायर कहाँ कहाँ घूम आता है ..
बहुत सुन्दर.. लाजवाब.. सोच के दीप जला के देखो.. मनोज जी ने बहुत सुन्दर लिंक दिया... धन्यवाद..
नवनीत जी और भाई तिलक राज जी दोनो गज़ल उस्ताद हैं ये उनकी गज़लों से झलक ही रहा है दोनो गज़लों के किस किस शेर की तारीफ करूँ? सभी शेर बहुत ही अच्छे हैं। उन्हें बधाई
दोनों ही शायरों ने बहुत शानदार सोच के दीप जलाए हैं. दोनों को बधाई !
मज़ा आ गया!!! क्या दीप जले हैं तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ जाएँ. लाजवाब...
भाई नवनीत और भाई तिलक राज कपूर की ग़ज़लों ने मन मोह लिया। छोटी बहर में शे'र कहना पाँवों में भारी पत्थर बाँधकर उँचे पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करने जैसा होता है पर यहाँ शायरों बहुत कामयाबी मिली है.
दोनों शायरों को बधाई और ख़ूबसूरत ग़ज़लों के लिए आभार.
वीरेंद्र जी, मनोज जी, मुफ़लिस साहब, डा. अजमल खान साहब, संजय जी, राजीव भरोल जी,शारदा अरोड़ा जी, डा. नूतन नीति, निर्मला कपिला जी, जोगेश्वर गर्ग जी, रचना दीक्षित जी और अग्रज भाई द्विज जी एवं सतपाल ख़्याल जी...आप सब संवेदनशील पाठकों का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय तिलक राज कपूर जी की ग़ज़ल मुझे भी बहुत अच्छी लगी।
कोई संदेह नहीं कि आज कह ग़ज़ल एक ऐसा मंच है जहां आप जैसे अदबी लोग हैं।
एक बार फिर शुक्रिया।
नवनीत जी और तिलक राज जी आप दोनों की ही गज़लें लाजवाब हैं। बहुत उम्दा
http://veenakesur.blogspot.com/
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