Wednesday, November 16, 2011

राशिद आमीन की दो ग़ज़लें









पाकिस्तान के मशहूर शायर राशिद आमीन की दो ग़ज़लें हाज़िर हैं। उम्मीद है कि आप पसंद करेंगे।










ग़ज़ल

घुग्गू ,घोड़े ,ढोले,माहिए छोड़ आया हूँ
रिज़्क की खातिर कितने रिश्ते छोड़ आया हूँ

दोनों आँखें क़ैद न कर लें शह्र की रौनक
इसी लिए तो गाँव में बच्चे छोड़ आया हूँ

सिट्टों पर चिड़ियों का लश्कर वार न कर दे
खेतों में लकड़ी के बावे छोड़ आया हूँ

बाग़ में जिस की मर्ज़ी जैसा फूल लगाए
मैं तो मट्टी भर के गमले छोड़ आया हूँ

शह्र की हर चौखट पर अब हिजरत से पहले
आज़ादी के परचम, नारे छोड़ आया हूँ

ग़ज़ल

पत्थर पड़े हुए कहीं रस्ता बना हुआ
हाथों में तेरे गाँव का नक़्शा बना हुआ

सहरा की गर्म धूप में बाग़े-बहिश्त में
तिनकों से तेरे हाथ का पंखा बना हुआ

संदल की इत्र में तेरी मेंहदी गुँधी हुई
सोने के तार से मेरा सेहरा बना हुआ

यादों से ले रहा हूँ हिना-ए-महक का लुत्फ़
टेबल पे रख के लौंग का काहवा बना हुआ

मेले में नाचती हुई जट्टी के रक्स पर
यारों के दरमियान है घगरा बना हुआ

17 comments:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत उम्दा गज़लें....
सादर आभार...

नीरज गोस्वामी said...
This comment has been removed by the author.
नीरज गोस्वामी said...

दोनों आँखें क़ैद न कर लें शह्र की रौनक
इसी लिए तो गाँव में बच्चे छोड़ आया हूँ

***
यादों से ले रहा हूँ हिना-ए-महक का लुत्फ़
टेबल पे रख के लौंग का काहवा बना हुआ

मेले में नाचती हुई जट्टी के रक्स पर
यारों के दरमियान है घगरा बना हुआ



क्या कहूँ मैं तो ग़ज़ल की ताजगी पर फ़िदा हो गया हूँ...ऐसे ऐसे लफ्ज़ इन ग़ज़लों में आयें हैं के पढ़ कर मज़ा आ गया...शायर की सोच और ख्यालों की उड़ान को मेरा सलाम...रशीद साहब की शायरी बेजोड़ है...मेरी भरपूर दाद उनतक पहुंचा सकें तो जरूर पहुंचा दें...उन्हें और और पढने की तमन्ना है...काश इनकी कोई किताब अगर हिंदी में शाया हुई होती और हुई होती तो मुझे मिली होती ,तो बात ही कुछ और होती...सतपाल जी इस में आप मेरी कोई मदद करेंगे?


नीरज

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

राशिद साहब की इन बेमिसाल गजलों को पढवाने के लिए आपका आभार.

Purshottam Abbi 'Azer' said...

जनाब
सहरा जंगल को कहते हैं (रेगिस्तान )

इस पंक्ति में सहरा लफ्ज़ का इस्तमाल सही हुआ है
सहरा की गर्म धूप में बाग़े-बहिश्त में

किन्तु इस मिसरे में इस्तमाल सही नहीं है
सोने के तार से मेरा सहरा बना हुआ
सेहरा सही शब्द है यदि सेहरा लिखते है तो ग़ज़ल बहर से खारिज हो जाएगी


लिक्खी ग़ज़ल कमाल कि राशिद जी है जनाब
सहरा में सेहरा का है खटका बना हुआ
आज़र

सतपाल ख़याल said...

Neeraj ji,

Rashid sb is on FB and he himself send these ghazals on my request , I will convey ur message and you can also contact him thru FB.

सतपाल ख़याल said...

शुक्रिया आज़र साहब,"सहरा" के अर्थ से वाक़िफ़ करवाने के लिए । इसे "सेहरा" कर दिया है बाकी
हमें किसी शे’र को बह्र से खारिज़ करने से पहले अच्छी तरह परख लेना चाहिए, वो भी जब शायर
कोई नामी-गिरामी हो, मेरे जैसा हो तो कोई बात नहीं।

ज़ौक़ का एक शे’र-

जिनको दावा हो सुख़न का ये सुना दो उनको
देख इस तरह से कहते हैं सुख़नवर सेहरा

"सेहरा" फ़ालुन के वज़्न में लिया जाता है शायर को नहीं मुझे लिखने में ग़ल्ती हो गई।
मुआफ़ी चाहता हूँ।

सतपाल ख़याल said...

"सेहरा" और "सहरा" की बात चली तो एक और शब्द है-
"चेहरा" जो "चहरा" के वज़्न में लिया जाता है और
दोनों तरह से लिखा जाता है। यक़ीनन जब हिंदी की
बात करेंगे तो " चेहरा" ही लिखा जायेगा । ..for information only

Anonymous said...

सहरा की गर्म धूप में बाग़े-बहिश्त में
तिनकों से तेरे हाथ का पंखा बना हुआ


संदल की इत्र में तेरी मेंहदी गुँधी हुई
सोने के तार से मेरा सेहरा बना हुआ

bahut khoobsoorat aur gahri lines hain.

Thanks for putting these lines on the blog.

Anees

Purshottam Abbi 'Azer' said...

जनाब सतपाल जी
आपने कम से कम नामी-गिरामी शायर के हवाले से जवाब तो दिया !
इसमें माफ़ी की कोई बात नहीं त्रुटियाँ तो किसी से भी हो सकती हैं !
आज़र

Purshottam Abbi 'Azer' said...

हिंदी वाले सेहरा को दो एक दो दीर्घ लघु दीर्घ में भी गिनते हैं इसी प्रकार आवश्कता अनुसार चेहरे को भी दीर्घ लघु दीर्घ में !

तिलक राज कपूर said...

दो अच्‍छी ग़ज़लें ताज़गी भरे शब्‍द लिये। दो शब्‍दों पर अच्‍छी व्‍याख्‍या। सेहरा, चेहरा या इसी तरह के शब्‍दों में यह 'ह' की उच्‍चारण प्रकृति है जो अनुमति देती है कि इसे 'ह' पढ़ा जाये या 'ह्'। जैसे कि तेहरान को भी 221 पढ़ा जायेगा। देहरादून 2221 पढ़ा जायेगा। बेहतरीन 'बहतरीन' हो जायेगा या 'बेह्तरीन' 2121 ही रहेगा।

सतपाल ख़याल said...

Kapoor sahab! You are right and one major difference between urdu and hindi prosody is that urdu prosody is based on how the words are pronounced and Hidi, is based how the words are written and as for as ghazal is concerned , poet has to decide what to follow. Most of the poets have made it mess , they are using" matrik Chand" and dropping the vowels also.

kanu..... said...

kya kahu...gahri batein ahin bahut hi sundar shabd....

Pawan Kumar said...

उम्दा गज़लें....
दोनों आँखें क़ैद न कर लें शह्र की रौनक
इसी लिए तो गाँव में बच्चे छोड़ आया हूँ

बेजोड़ शायरी

Vandana Ramasingh said...

बाग़ में जिस की मर्ज़ी जैसा फूल लगाए
मैं तो मट्टी भर के गमले छोड़ आया हूँ

दोनों आँखें क़ैद न कर लें शह्र की रौनक
इसी लिए तो गाँव में बच्चे छोड़ आया हूँ

behtreen gazaleN

avanti singh said...

बहुत उम्दा गज़लें....