राहत इंदौरी साहब ने शायरी को इबादत बना लिया है और इबादत भी किसी पहुँचे हुए फ़क़ीर जैसी।
सब अपनी-अपनी ज़ुबां में अपने रसूल का ज़िक्र कर रहे हैं
फ़लक पे तारे चमक रहे हैं, शजर पे पत्ते खड़क रहे हैं
ऐसे शे’र कहते वक़्त शायर रुहानीयत के शिखर पर पहुँच जाता है और फिर उसके अल्फ़ाज़ सचमुच जी उठते हैं।
मुलाहिज़ा कीजिए -
मेरे पैयंबर का नाम है जो , मेरी ज़बां पर चमक रहा है
गले से किरनें निकल रही हैं,लबों से ज़म-ज़म टपक रहा है
मैं रात के आख़री पहर में, जब आपकी नात लिख रहा था
लगा के अल्फ़ाज़ जी उठे हैं , लगा के कागज़ धधक रहा है
सब अपनी-अपनी ज़ुबां में अपने रसूल का ज़िक्र कर रहे हैं
फ़लक पे तारे चमक रहे हैं, शजर पे पत्ता खड़क रहा है
मेरे नबी की दुआएँ हैं ये , मेरे ख़ुदा की अताएँ हैं ये
कि खुश्क मिट्टी का ठीकरा भी , हयात बनकर खनक रहा है
5 comments:
राहत इंदौरी साहब कि शायरी से रूबरू कराने के लिए आभार
मैं स्वयं राहत इन्दौरी जी का बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ। प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई....
bahut badhiya , aabhaar...
me rahat indori ka bahut bada fan ho...
बेहतरीन ....
मेरे नबी की दुआएँ हैं ये , मेरे ख़ुदा की अताएँ हैं ये
कि खुश्क मिट्टी का ठीकरा भी , हयात बनकर खनक रहा है
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