ग़ज़ल
धूप का जंगल, नंगे पावों इक बंजारा करता क्या
रेत के दरिया, रेत के झरने प्यास का मारा करता क्या
बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को
पत्ता-पत्ता सूख चुका था पेड़ बेचारा करता क्या
सब उसके आँगन में अपनी राम कहानी कहते थे
बोल नहीं सकता था कुछ भी घर-चौबारा करता क्या
तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे,
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
ये है तेरी और न मेरी दुनिया आनी-जानी है
तेरा-मेरा, इसका-उसका, फिर बंटवारा करता क्या
टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये
बींच भंवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या
15 comments:
तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे,
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
ये है तेरी और न मेरी दुनिया आनी-जानी है
तेरा-मेरा, इसका-उसका, फिर बंटवारा करता क्या
बहुत खूब।
bahut khoobsoorat likha hai...
Dhup Ka Van Pag Nirvasan..,
Raj Renu Charanaa Raj Par Jharanaa.....
क्या बेहतरीन ग़ज़ल है!
बहुत खूब..
Agan Lagi..,
Bunde Biharan Bah Chuki Biravan Nyaaraa Karataa Kyaa.....
कुछ तो बात है
टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये
बींच भंवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या
Waah...Waah...Kya ghazal padhvayi hai ...tabiyat khush ho gayi.
Agar Kumbari Sahab ki Koi Kitaab Hindi men shaya hui ho to mujhe use lene ka aasaan tariika jaroor batayen...Pls.
Neeraj
तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे,
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
बहुत खूब
टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये
बींच भंवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या
bahut hi acchi lines....
ये है तेरी और न मेरी दुनिया आनी-जानी है
तेरा-मेरा, इसका-उसका, फिर बंटवारा करता क्या
अपने ही आवेग से तरबतर है यह गजल .हर अश आर एक गत्यात्मकता लिए है धरती धरती परबत परबत गाता जाए बंजारा का राग बांधे रहता है गेयता को .बहुत उम्दा पाए की गज़ल .
बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे,
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
बहुत खूबसूरत लिख दिया
लिखता नहीं तो करता क्या !
बढ़िया गजल|
आशा
awesome hai bole to superb hai .......shabd kam hain taareef ke liye
शब्दों में रस घोल दिया है गीत मिलन का हो जैसे
मैं भी तुझको दाद न देता प्यार का मारा करता क्या
आज़र
टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये
बींच भंवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या
kya bat hai ..bahut khoob
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