Tuesday, August 28, 2012

द्विजेंद्र द्विज जी की एक ताज़ा ग़ज़ल


ग़ज़ल

ये कौन पूछता है भला आसमान से
पंछी कहाँ गए जो न लौटे उड़ान से

‘सद्भाव’ फिर कटेगा किसी पेड़ की तरह
लेंगे ये काम भी वो मगर संविधान से

दंगाइयों की भीड़ थी पैग़ाम मौत का
बच कर निकल सका न वो जलते मकान से

घायल हुए वहाँ जो वो अपने ही थे तेरे
छूटा था बन के तीर तू किसकी कमान से

पागल उन्हें इसी पे ज़माने ने कह दिया
आँखों को जो दिखा वही बोले ज़बान से

`धृतराष्ट्र’ को पसंद के `संजय’ भी मिल गए
आँखों से देख कर भी जो मुकरे ज़बान से

बोले जो हम सभा में तो वो सकपका गया
`द्विज’ की नज़र में हम थे सदा बे—ज़बान—से

10 comments:

Sachin said...

badhiya

Sachin said...

badhiya

सदा said...

वाह ...बहुत खूब।

Rajeev Bharol said...

द्विज जी की एक और बेहद खूबसूरत गज़ल. मतले से लेकर मकते तक लाजवाब शेर...
वाह!

तिलक राज कपूर said...

आनंद आ गया इस खूबसूरत ग़ज़ल को पढ़कर।

रंजन गोरखपुरी said...


‘सद्भाव’ फिर कटेगा किसी पेड़ की तरह
लेंगे ये काम भी वो मगर संविधान से
दंगाइयों की भीड़ थी पैग़ाम मौत का
बच कर निकल सका न वो जलते मकान से
घायल हुए वहाँ जो वो अपने ही थे तेरे
छूटा था बन के तीर तू किसकी कमान से
लाजवाब ग़ज़ल कही है द्विज साहब ने! हर एक शेर मानो तजुर्बे की स्याही में घुला हुआ दर्शन है.... मेरा नमन प्रेषित करें उन्हें!

Ajmer Hotels said...

nice.................

hotels in Nainital said...

show always dis type of comments........

Anonymous said...

Adbhut.....घायल हुए वहाँ जो वो अपने ही थे तेरे
छूटा था बन के तीर तू किसकी कमान से
Kya khoob kaha hai sir...really nice.

Anees

Tech review said...


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