Saturday, September 15, 2012

नवनीत शर्मा जी की ग़ज़ल



ग़ज़ल

मैं जाकर ख्‍वाब की दुनिया में जितना जगमगाया हूँ
खुली है आंख तो उतना ही खुद पे सकपकाया हूँ

मुझे बाहर के रस्‍तों पर नहीं कांटों का डर कोई
वो सब अंदर के हैं बीहड़ मैं जिनपे डगमगाया हूँ

हां अब भी शाम को यादों के कुछ जुगनू चमकते हैं
मैं बेशक सारे खत लहरों के जिम्‍मे छोड़ आया हूँ

तुम्‍हारे ख्‍वाब की ताबीर से वाकिफ हैं सारे ही
मैं अपने ख्‍वाब की सूरत का इक धुंधला सा साया हूँ

मुझे तुमसे नहीं शिकवा मगर "नवनीत" से तो है
मैं बन कर आंख तेरी अब तलक क्‍यों डबडबाया हूँ


-नवनीत शर्मा, समाचार संपादक, दैनिक जागरण हिमाचल प्रदेश

7 comments:

तिलक राज कपूर said...

हां अब भी शाम को यादों के कुछ जुगनू चमकते हैं
मैं बेशक सारे खत लहरों के जिम्‍मे छोड़ आया हूँ
वाह भाई वाह।
नये रंग देखने को मिले।

नीरज गोस्वामी said...

मुझे बाहर के रस्‍तों पर नहीं कांटों का डर कोई
वो सब अंदर के हैं बीहड़ मैं जिनपे डगमगाया हूँ


हां अब भी शाम को यादों के कुछ जुगनू चमकते हैं
मैं बेशक सारे खत लहरों के जिम्‍मे छोड़ आया हूँ


सुभान अल्लाह...क्या खूब शेर कहें हैं...अपने स्व. पूज्य पिता और फिर बड़े भाई के नक़्शे क़दमों पर चलते हुए नवनीत ग़ज़ल को नए आयाम दे रहे हैं...उनकी ग़ज़लें आम इंसान और उसके द्वारा किये जाने वाली जद्दोजेहद की कहानी बयां करती हैं...अपनी बात कहने का निराला ढंग उनका अपना है...सतपाल जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो इस युवा की ग़ज़ल को हम तक पहुँचाया...मेरी ख्वाइश इनकी किसी किताब को पढने की है अगर कहीं छपी है तो जरूर बताएं...

नीरज

Navneet Sharma said...

आदरणीय श्री तिलक राज कपूर जी और आदरणीय भाई श्री नीरज गोस्‍वामी जी, उत्‍साह बढ़ाने के लिए आपका मन की गहराई से आभार व्‍यक्‍त करता हूं। आपको यह प्रयास पसंद आया, यह मेरे लिए खुशी का बायस है। प्रिय साथी सतपाल ख्‍याल जी का आभार कि उन्‍होंने इसे 'आज की ग़ज़ल' जैसे प्रतिष्ठित मंच पर स्‍थान दिया। एक आभार पुन: धन्‍यवाद करता हूं।

PRAN SHARMA said...

NAVNEET JI ,ACHCHHEE GAZAL KE LIYE
BADHAAEE . HAAN , EK MISRE MEIN
` SHAAM ` KEE JAGAH ` RAAT ` KAA
ISTEMAAL HOTAA TO UPYUKT HOTAA .
RAAT KE ANDHERE MEIN HEE JUGNU
CHAMAKTE HAIN .

Navneet Sharma said...

आदरणीय प्राण शर्मा जी, यह मेरा सौभाग्‍य है कि आपका मार्गदर्शन मुझे मिला। मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं। पता नहीं क्‍यों मुझे शाम का आकर्षण घेरे हुए था। मैं इसे रात ही कर लूंगा...उसमें जुगनू की चमक साफ दिखाई देगी। एक बार पुन: आभार। आपने टिप्‍पणी की, इससे मेरा मनोबल बढ़ा है।

Navneet Sharma said...

आदरणीय प्राण शर्मा जी, यह मेरा सौभाग्‍य है कि आपका मार्गदर्शन मुझे मिला। मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं। पता नहीं क्‍यों मुझे शाम का आकर्षण घेरे हुए था। मैं इसे रात ही कर लूंगा...उसमें जुगनू की चमक साफ दिखाई देगी। एक बार पुन: आभार। आपने टिप्‍पणी की, इससे मेरा मनोबल बढ़ा है।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

तुम्‍हारे ख्‍वाब की ताबीर से वाकिफ हैं सारे ही
मैं अपने ख्‍वाब की सूरत का इक धुंधला सा साया हूं.

बहुत अच्छा रूपक इस्तेमाल किया है. बधाई!