ग़ज़ल
दर्द को तह-ब-तह सजाता है.
कौन कमबख्त मुस्कुराता है.
और सबलोग बच निकलते हैं
डूबने वाला डूब जाता है.
उसकी हिम्मत तो देखिये साहब!
आंधियों में दिये जलाता है.
शाम ढलने के बाद ये सूरज
अपना चेहरा कहां छुपाता है.
नींद आंखों से दूर होती है
जब भी सपना कोई दिखाता है.
लोग दूरी बना के मिलते हैं
कौन दिल के करीब आता है.
तीन पत्तों को सामने रखकर
कौन तकदीर आजमाता है?
8 comments:
kya bat hai bhot khub waaaaaaaaah
वाह जी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आपका शुक्रिया
मेरी ग़ज़ल शेयर करने के लिये शुक्रिया सतपाल खयाल साहब!
देवेंद्र जी बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये।
आपने लिखा....
हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 08/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
bahut sundar ..Gautam ji..
बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
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