Saturday, May 4, 2013

देवेंद्र गौतम













 ग़ज़ल

दर्द को तह-ब-तह सजाता है.
कौन कमबख्त मुस्कुराता है.

और सबलोग बच निकलते हैं
डूबने वाला डूब जाता है.

उसकी हिम्मत तो देखिये साहब!
आंधियों में दिये जलाता है.

शाम ढलने के बाद ये सूरज
अपना चेहरा कहां छुपाता है.

नींद आंखों से दूर होती है
जब भी सपना कोई दिखाता है.

लोग दूरी बना के मिलते हैं
कौन दिल के करीब आता है.

तीन पत्तों को सामने रखकर
कौन तकदीर आजमाता है?

8 comments:

ashokkhachar56@gmail.com said...

kya bat hai bhot khub waaaaaaaaah

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आपका शुक्रिया

devendra gautam said...

मेरी ग़ज़ल शेयर करने के लिये शुक्रिया सतपाल खयाल साहब!

तिलक राज कपूर said...

देवेंद्र जी बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये।

yashoda Agrawal said...

आपने लिखा....
हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 08/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!

शारदा अरोरा said...

bahut sundar ..Gautam ji..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ

Tech review said...


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