Wednesday, February 26, 2014

नफ़स अम्बालवी साहब की एक ग़ज़ल


















उनकी किताब "सराबों का सफ़र" से एक ग़ज़ल आप सब की नज्र-

उसकी शफ़क़त का हक़ यूँ अदा  कर दिया 
उसको सजदा  किया और  खुदा कर दिया 

उम्र  भर  मैं  उसी  शै  से  लिपटा  रहा 

जिस ने हर शै से मुझको जुदा कर दिया

इस  लिए  ही  तो सर आज  नेज़ों पे है 

हम से जो कुछ भी उसने कहा कर दिया 

दिल की तकलीफ़ जब हद से बढ़ने लगी 

दर्द  को  दर्दे-दिल  कि  दवा  कर  दिया 

ऐसे  फ़नकार की  सनअतों को सलाम 

जिस ने पत्थर को भी देवता कर दिया 

आप  का  मुझपे  एहसान  है  दोस्तो 

क्या था मैं, आपने क्या से क्या कर दिया 

कौन गुज़रा दरख्तों को छू  कर 'नफ़स'

ज़र्द  पत्तों  को  किसने  हरा  कर  दिया 

शफ़क़त=मेहरबानी,सनअतों=कारीगरी



12 comments:

अशोक सलूजा said...

ग़ज़ल आप की पढ़ खाली दिल को भरा कर दिया
मुबारक कबूल करें ....

Nafas Ambalvi said...
This comment has been removed by the author.
Nafas Ambalvi said...

सतपाल ख़याल साहब आपने मेरी ग़ज़ल को जो इज्ज़त अता फ़रमाई है उसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ .....माशा अल्लाह बहुत खूबसूरत ब्लॉग है और आपकी आवाज़ भी सुनने का मौक़ा मिला ...अच्छा लगा
बहुत बहुत शुक्रिया

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

एक और उम्‍दा ग़ज़ल पढ़वाने के लि‍ए शुक्रि‍या.

Unknown said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल

तिलक राज कपूर said...

बहुत खूबसूरत कहन है नफ़स साहब। कभी अम्‍बाला में ही मुलाकात करते हैं।

Neelam said...

Bahut Khoob!!

Neelam said...

Bahut Khoob!!

Vandana Ramasingh said...

कौन गुज़रा दरख्तों को छू कर 'नफ़स'
ज़र्द पत्तों को किसने हरा कर दिया

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

Vinod Tiwari said...

Nice ambalvi sahab

Unknown said...

नफ़स साहब आप की एक और ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढ़कर दिल ख़ुशी से हरा हो गया ...



ऐसे फ़नकार की सनअतों को सलाम
जिस ने पत्थर को भी देवता कर दिया

आप का मुझपे एहसान है दोस्तो
क्या था मैं, आपने क्या से क्या कर दिया

Unknown said...

आप ने अंबाला के नाम को रोशन कर दिया है ! आप पर नाज़ हैं 🙏🙏🙏