Wednesday, September 15, 2021

तरही मुशायरा : अमरीश अग्रवाल "मासूम" की पहली ग़ज़ल (मैं कहां और ये वबाल कहां) -ग़ालिब

 


 अमरीश अग्रवाल "मासूम"

 इश्क़ का अब मुझे ख़याल कहां

मैं कहां और ये वबाल कहां

 इश्क़ का रोग मत लगाना तुम

हिज्र मिलता है बस विसाल कहां

 बिक गया आदमी का इमां जब

झूठ सच का रहा सवाल कहां

बस्तियां जल के ख़ाक हो जायें

हुक्मरां को कोई मलाल कहां

मज़हबी वो फ़साद करते हैं

रहबरों से मगर सवाल कहां

दौर "मासूम" ये हुआ कैसा

खो चुका आदमी जमाल कहां

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9 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 16.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

अनीता सैनी said...

वाह!वाह!गज़ब कहा सर।
सादर

Unknown said...

जी, बहुत आभार आपका।

Unknown said...

जी, बहुत शुक्रिया आपका। कृप्या चर्चा का समय बताएं।

Unknown said...

बेहद शुक्रिया आपका, मोहतरमा।

मन की वीणा said...

उम्दा ग़ज़ल!

Unknown said...

बहुत शुक्रिया आपका।

CA Anup Mukherjee said...

वाह वाह। बहुत अच्छा लगा। खो चुका आदमी, सो गए नेता, सो गया ईमान। और सोए ईमान को जगाने के लिए आप जैसे सशक्त कलमधारकों को एक ज़लज़ला लाना पड़ेगा। और शब्दों का इंतजार रहेगा।